रांची : छात्रों को स्कॉलरशिप दिलाने के नाम पर एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है. यह रैकेट विद्यार्थियों का फिंगर प्रिंट लेकर जालसाजी करता है. ‘राइट टू फूड’ टीम के लोगों ने यह अध्ययन रांची और खूंटी में किया है. टीम ने अध्ययन का वीडियो भी तैयार किया है. रांची और खूंटी के करीब एक दर्जन से अधिक प्रभावितों के बीच जाकर पूरी प्रक्रिया की जानकारी ली है. कैंपेन के सदस्य ज्यां द्रेज और विपुल पाइकरा ने यह जानकारी सबूत के साथ राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को दी है.
सरकार से जांच कराने और कार्रवाई करने का आग्रह किया है. विपुल ने बताया कि झारखंड के अल्पसंख्यकों को टारगेट कर बड़ा रैकेट काम कर रहा है. इसने भारत सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की स्कीम में गड़बड़ी की है. इसमें कई निजी स्कूल भी शामिल हैं. दलाल, बैंकिंग कॉरस्पोंडेंट और झारखंड स्टेट माइनॉरिटी फाइनांस एवं डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की भूमिका भी संदिग्ध है.
सऊदी से पैसा आने को झूठी कहानी बताते हैं दलाल : टीम ने पाया है कि दलाल विद्यार्थियों को झूठी सूचना देते हैं. कहते हैं कि सऊदी अरब की सरकार यहां के युवाओं को पैसा दे रही है. इस कारण युवा यह समझ नहीं पाते हैं कि दलाल सरकार के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं. टीम का दावा है कि अधिक स्कॉलरशिप के लिए दलाल जिन स्कूलों में हॉस्टल नहीं है, वहां हॉस्टल दिखाते हैं.
एनजीओ के सदस्यों ने छात्रों को 2400 रुपये दिया, रसीद निकला 5700 का : खूंटी के जन्नत नगर में रहनेवाली कुलसुम 11वीं की छात्रा है. वह लोयला इंटर कॉलेज में पढ़ती है. रानी नाम की महिला ने स्कूल जानेवाली सभी लड़कियों को आधार कार्ड और फोटो के साथ स्कॉलरशिप के लिए आवेदन जमा करने के लिए बुलाया था. एक सप्ताह के बाद कुलसुम को बताया गया कि ओटीपी आयेगा.
वह प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए योग्य नहीं थी. वह पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप चाहती थी. मई में दो आदमी पॉश मशीन के साथ आये. कहा हमलोग एनजीओ से हैं. विद्यार्थियों को एक कमरे में बुलाया. फिंगर प्रिंट लेने के बाद 2400 रुपये दिया. 5700 रुपये का रिसिप्ट निकला था. रसीद मांगने पर, कहा कि यह बैंक में जमा होगा.
छात्रा का फिंगर प्रिंट लेकर 2500 रुपये दिया, लेकिन रसीद नहीं दी : तसलीम अंसारी गवर्नर्मेंट जनता प्लस टू स्कूल खलारी में पढ़ता है. वह हुटाप पंचायत में रहता है. उसने अध्ययन दल को बताया कि जब 2018 में कक्षा नौ में था, तब तबरेज अंसारी नामक एक आदमी आया था. वह पड़ोस के एक गांव में रहता था. उसने पॉश मशीन से फिंगर प्रिंट लिया था. उसने इसका कारण नहीं बताया. अप्रैल 2019 में तबरेज दूसरी बार पॉश मशीन लेकर आया. फिंगर प्रिंट लेने के बाद 2500 रुपये दिया. लेकिन उसने कोई रसीद नहीं दी.
Posted by : Pritish Sahay