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बिना ऑडिट के रिम्स ने मेडाल को किया 30.86 करोड़ का भुगतान

रिम्स में बिना ऑडिट के ही पीपीपी मोड पर कार्यरत पैथोलोजिकल लैब मेडॉल स्कैन्स एंड लैब्स प्राइवेट लिमिटेड को 30 करोड़ 86 लाख 89 हजार 890 रुपये का भुगतान किया गया है.

रांची : रिम्स में बिना ऑडिट के ही पीपीपी मोड पर कार्यरत पैथोलोजिकल लैब मेडॉल स्कैन्स एंड लैब्स प्राइवेट लिमिटेड को 30 करोड़ 86 लाख 89 हजार 890 रुपये का भुगतान किया गया है. तत्कालीन निदेशक डॉ डीके सिंह पर यह भुगतान करने का आरोप है. स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव डॉ नितिन कुलकर्णी ने रिम्स निदेशक को पत्र भेजकर इस मामले की जांच कर एक सप्ताह में रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया है.

सचिव ने लिखा है कि विभागीय मंत्री बन्ना गुप्ता ने 1.9.2020 को पत्र के माध्यम से सूचित किया है कि 18.6.19 के आदेश द्वारा ही मेडाल लैब्स के बिल के भुगतान के पूर्व स्पेशल ऑडिट अनिवार्य किया गया है. जिसके प्रतिकूल पूर्व निदेशक डॉ डीके सिंह ने 16 सितंबर, 26 नवंबर 2019 तथा 15 अप्रैल 2020 को क्रमश: 14.82 करोड़, 8.31 करोड़ तथा 7.73 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.

फर्जी बिल के बावजूद भुगतान किया गया : सचिव ने लिखा है कि मंत्री द्वारा उक्त पत्र में दिये गये निर्देश के आलोक में उक्त बिल की आंतरिक जांच में बड़ी सख्या में फर्जी बिल पाये गये. इसके बावजूद लगभग 30 करोड़ रुपये का भुगतान किये जाने के बिंदु पर रिम्स निदेशक अपने स्तर से जांच कर मंतव्य के साथ एक सप्ताह में रिपोर्ट उपलब्ध कराएं.

  • तत्कालीन निदेशक डॉ डीके सिंह पर भुगतान करने का आरोप

  • रिम्स की आंतरिक जांच में भी बड़ी संख्या में फर्जी बिल पाये जाने के बाद भी भुगतान किया गया

क्या है मामला : मेडॉल के समझौता शर्तों व जांच दर पर पहले से सवाल उठते रहे हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के पूर्व निदेशक वित्त नरसिंह खलखो ने जनवरी 2020 में ही जांच एजेंसी मेडॉल हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड से कहा था कि यदि वह शर्तें पूरी कर आगे काम करना चाहती है, तो बताएं.

दरअसल सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी जांच का काम करने वाली चेन्नई की कंपनी मेडॉल से दो मुद्दों पर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए 29 जनवरी तक जवाब देने को कहा गया था. इनमें एमओयू की शर्त के मुताबिक रियल टाइम मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (एमआइएस) यानी डैशबोर्ड तथा वेबसाइट बनाये जाने सहित जांच की वाजिब दर भी शामिल थी.

सरकार के साथ हुए एमओयू के अनुसार, कंपनी को डैशबोर्ड व वेबसाइट शुरुआत में ही तैयार कर लेना चाहिए था, पर चार साल बाद भी यह काम हुआ हैै या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है. दरअसल डैशबोर्ड कंपनी के काम व बिल चेक करने के लिए जरूरी है. इधर, बगैर इस सिस्टम के मेडॉल को भुगतान होता रहा था.

इसके बाद करीब 41 करोड़ का बिल जनवरी 2020 में ही रोका गया. कंपनी को भेजे गये ई-मेल में कहा गया था कि काफी बड़ी संख्या में मरीजों के इलाज से संबंधित बिल मैनुअली चेक कर पाना मुश्किल है. इससे मरीजों के ब्योरा, उनकी जांच रिपोर्ट तथा इनवॉयस का निरीक्षण नहीं किया जा सकता.

बोरों में रखे गये हैैं बिल : रांची (रिम्स) सहित विभिन्न जिलों में ऐसे बिल बोरों में भर कर रखे गये हैं. कंपनी को स्पष्ट कर दिया गया था कि इन बिलों की न जांच हो सकती है और न ही भुगतान संभव है. उधर जांच दर को लेेकर मेडॉल को याद दिलाया गया था कि उसके लैब में बीपीएल मरीजों की बड़ी संख्या में जांच होती है. यह भी सूचित किया गया था कि भारत सरकार ने मेडॉल की जांच दर पर आपत्ति जतायी है तथा वर्तमान दर पर फंड उपलब्ध कराने से मना कर दिया है.

12 जिलों में कार्यरत है मेडॉल : चेन्नई की कंपनी मेडॉल को राज्य के 12 जिलों रांची (रिम्स), खूंटी, गुमला, सिमडेगा, पलामू, गढ़वा, चतरा, लातेहार, लोहरदगा, पू सिंहभूम, प सिंहभूम व सरायकेला में पैथोलॉजी टेस्ट का काम मिला है. शेष 12 जिलों में एसआरएल यह काम कर रही है. रांची व जमशेदपुर जैसे बड़े जिले मेडॉल के पास हैं तथा इसका बिल भी एसआरएल से अधिक होता है.

Post by : Pritish Sahay

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