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झारखंड : कभी खुद 12 किमी चल कर डॉ सुफल जाती थीं पढ़ने, आज गांव में खोल दिया बोर्डिंग स्कूल

परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने और कम उम्र में शादी हो जाने के बावजूद अपनी जिद से डॉ सुफल एक्का ने सफलता की नयी कहानी लिखी. इनमें उच्च शिक्षा हासिल करने की जिद थी. यही कारण है आज गांव में बोर्डिंग स्कूल खोलकर बच्चों के भविष्य को निखारने में जुटी है.

रांची, राजेश झा : मुश्किलों से घबरा कर हार मान लेनेवालों और अपनी किस्मत को कोसनेवालों के लिए डॉ सुफल एक्का किसी मिसाल से कम नहीं. डॉ एक्का ‘डब्ल्यू जॉन मल्टीपरपस बोर्डिंग स्कूल’ की प्राचार्या हैं और सफलता पूर्वक इसका संचालन कर रही हैं. शिक्षा का मोल इन्हें बचपन में ही समझ आ गया था, इसलिए परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने और कम उम्र में शादी हो जाने के बावजूद अपनी जिद से इन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की. हालांकि, इस राह में इन्हें अपने पिता व पति दोनों का बराबर सहयोग और उत्साहवर्धन मिलता रहा.

12 किलोमीटर पैदल चलकर जाती थीं स्कूल

डॉ सुफल एक्का का जन्म रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड के खिजरी टोली रेचेद गांव में 20 नवंबर, 1960 को किसान परिवार में हुआ. तीन बहनों के बाद डॉ सुफल एक्का का जन्म हुआ. प्रारंभिक शिक्षा गांव के एसपीजी मिशन स्कूल, खेरवाकोचा में हुई. यह स्कूल भी इनके घर से लगभग तीन किमी दूर था. पूरे साल जंगल, नदी-नाला और कंकड़-पत्थर से भरे रास्ते पर आना-जाना होता था. आठवीं पास करने के बाद मां ने कहा, अब आगे नहीं पढ़ना है, क्योंकि पिताजी लकवाग्रस्त थे. इन्होंने अपनी मां से कहा कि घर का जो भी काम है, आप मुझे एक दिन पहले बता दीजिये. उसे मैं स्कूल जाने से पहले या स्कूल से आकर पूरा कर दिया करूंगी. मां सहमत हो गयीं और इनका दाखिला हाइस्कूल में कर दिया गया, लेकिन इस स्कूल में जाने के लिए भी इन्हें 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. पर मां से किये वादे को पूरा करते हुए प्रतिदिन पैदल आना-जाना शुरू कर दिया. गर्मी के दिनों में या हर शनिवार की सुबह में स्कूल होता था, तो अंधेरे में ही उठ कर निकलना पड़ता था. तब पिताजी लकवाग्रस्त होने के बाद भी सूर्य निकलने के पहले आधा रास्ता तक साथ आते थे. शरीर से लाचार होकर भी उनकी तम्मन्ना थी कि उनके बच्चे पढ़ें.

पति ने साथ दिया

वर्ष 1978 में मैट्रिक पास करने के बाद उसी वर्ष उनकी शादी डॉ मसीह प्रकाश एक्का से हो गयी. लड़के की ओर से वादा किया गया कि सुफल जितना पढ़ना चाहेंगी, वह पढ़ायेंगे. इसी करार के साथ उनकी शादी हुई. कॉलेज की पढ़ाई के लिए संत जेवियर्स कॉलेज में चयन हुआ, पर, पारिवारिक स्थिति के कारण प्रात:कालीन महाविद्यालय में दाखिला कराना पड़ा और मारवाड़ी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की.

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बड़े बेटे के जन्म के कारण दूसरे वर्ष दी परीक्षा

इंटर की परीक्षा से पहले डॉ सुफल के बड़े बेटे का जन्म हुआ. इस कारण पढ़ाई में एक वर्ष का नुकसान हुआ. दूसरे वर्ष परीक्षा देकर सफलता पायी. स्नातक की परीक्षा में 25 दिन बचे हुए थे, तब दूसरे बेटे का जन्म हुआ है, लेकिन 14 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी. 10 दिन के बाद स्नातक की वार्षिक परीक्षा होनेवाली थी. इस कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने परीक्षा दी और सेकेंड डिवीजन से पास हुईं. परिवार को संभालते हुए उन्होंने स्नातकोत्तर की परीक्षा भी पास की. इसके बाद पति ने पीएचडी की सलाह पर ही उन्होंने पीएचडी भी की.

पति कर रहे थे स्कूल का संचालन, लगातार देती रहीं योगदान

डॉ सुफल पढ़ाई के साथ पति के स्कूल में भी योगदान देती थीं. स्कूल चलाने के लिए भी उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा. नौ बार गिरते-उठते दसवीं बार पुन: अपने गांव में आकर स्कूल को स्थिर होकर चलाने लगीं. एक समय स्कूल बंद हो गया. दूसरी जगह फिर से स्कूल चलाने लगीं. 1990 में डब्ल्यू जॉन मल्टीपरपज बोर्डिंग स्कूल के लिए जमीन खरीदी और नींव रखी. 1996 में भवन बन कर तैयार हो गया. 2003 में स्कूल को प्रोविजनल संबद्धता और 2016 में स्कूल को सीआइएससीइ बोर्ड नयी दिल्ली से स्थायी संबद्धता मिली. डॉ सुफल एक्का ने बताया कि स्कूल के कई विद्यार्थी देश-विदेश में उच्च पदों पर कार्यरत हैं. डॉ एक्का ने बताया कि 11 अप्रैल 2021 को दिल का दौरा पड़ने से उनके पति का निधन हो गया. उनके सपने को साकार रूप देना अब उनकी जिम्मेवारी है.

Prabhat Khabar News Desk
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