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असली हीरो : रक्तदान की पिच पर लगायी सेंचुरी

आज रक्तदाता दिवस है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से वर्ष 2004 में 14 जून को रक्तदाता दिवस घोषित किया गया है. इसका उद्देश्य सुरक्षित रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदाताओं को प्रोत्साहित करते हुए आभार व्यक्त करना है. रक्तदान करना जीवनदान के समान है. इसकी अहमियत का पता तब चलता है, जब हमारा कोई अपना रक्त के लिए मौत से जूझ रहा होता है. उस वक्त हमें ऐसे शख्स की जरूरत पड़ती है, जो रक्तदान करे. जब किसी रहनुमा के रक्त से जान बच जाती है, तो रक्तदान की अहमियत का अहसास होता है. आज हम आपके बीच ऐसे ही कुछ रक्तदाताओं की बानगी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने रक्तदान का शतक पूरा कर लिया. इन शतकवीरों में एक हैं गढ़वा के राकेश केसरी और दूसरे हैं रामगढ़ जिले के गिद्दी के रहनेवाले गौतम बनर्जी.

आज रक्तदाता दिवस है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से वर्ष 2004 में 14 जून को रक्तदाता दिवस घोषित किया गया है. इसका उद्देश्य सुरक्षित रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदाताओं को प्रोत्साहित करते हुए आभार व्यक्त करना है. रक्तदान करना जीवनदान के समान है. इसकी अहमियत का पता तब चलता है, जब हमारा कोई अपना रक्त के लिए मौत से जूझ रहा होता है. उस वक्त हमें ऐसे शख्स की जरूरत पड़ती है, जो रक्तदान करे. जब किसी रहनुमा के रक्त से जान बच जाती है, तो रक्तदान की अहमियत का अहसास होता है. आज हम आपके बीच ऐसे ही कुछ रक्तदाताओं की बानगी पेश कर रहे हैं, जिन्होंने रक्तदान का शतक पूरा कर लिया. इन शतकवीरों में एक हैं गढ़वा के राकेश केसरी और दूसरे हैं रामगढ़ जिले के गिद्दी के रहनेवाले गौतम बनर्जी.

कई की जान बचा चुके हैं गढ़वा के राकेश

गढ़वा : रक्तदान के क्षेत्र में गढ़वा शहर के केसरवानी मोहल्ला निवासी राकेश केसरी (49) जाना-पहचाना नाम हैं. गढ़वा केशरवानी महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष राकेश केशरी स्वैच्छिक और नियमित रक्तदाता हैं. वह वर्षों से रक्तदान करते आ रहे हैं. वह अब तक 100 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं.

वह न सिर्फ गढ़वा शहर में रक्तदान करते हैं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर रक्तदान के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, वाराणसी और लखनऊ जैसे शहर भी चले जाते हैं. रक्तदान करना इनके लिए जुनून है. एक बार राकेश केसरी बाइक से गिर कर घायल हो गये थे. तभी किसी जरूरतमंद ने रक्तदान के लिए फोन कर दिया. राकेश ने उसे दुर्घटना के बारे में कुछ नहीं बताया और लंगड़ाते हुए किसी तरह ब्लड बैंक पहुंच गये. फिर रक्तदान किया. रक्तदान के लिए वह न ही दूरी देखते हैं और न ही समय. वह बताते हैं कि किसी को रक्त देकर जान बचाता हूं, तो मन को बड़ी शांति मिलती है.

स्कूल के दिनों से ही गौतम कर रहे रक्तदान

गिद्दी : रक्तदान महादान है. इस कथन को गिद्दी के गौतम बनर्जी ने 16-17 वर्ष की आयु में ही आत्मसात कर लिया था. उनकी उम्र अभी 55 वर्ष हो चुकी है. वह अब तक 101 लोगों को रक्तदान कर चुके हैं. उनके रक्त से कई लोगों की जिंदगी पटरी पर दौड़ रही है. वह खुद भी निरोग हैं. वह फिलहाल बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के अरगडा क्षेत्रीय सचिव और रोटरी सामुदायिक संगठन गिद्दी के सदस्य हैं.

स्कूली जीवन में ही उनका जुड़ाव रोटरी क्लब से हो गया था. पारिवारिक और सामाजिक परिवेश ने उनके अंदर रक्तदान करने की सोच विकसित कर दी. वर्ष 1983-84 में उन्होंने सबसे पहले गिद्दी के सीसीएलकर्मी दर्शन सिंह को रक्त दिया था. गौतम बनर्जी का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव है. रक्त देने के लिए वह मुंबई और वेल्लोर तक चले गये. गौतम बनर्जी का कहना है कि रक्त देने के बाद किसी की जिंदगी बच जाती है और उनकी खुशियां लौटती हैं, तो हमें भी खुशी की अनुभूति होती है.

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