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Ranchi news : झारखंड में प्राकृतिक खेती को मिलेगा बढ़ावा, किसानों की बढ़ेगी कमाई

राज्य में पतरातू का पायलट प्रोजेक्ट सफल, शामिल किये गये नये जिले. झारखंड में 4400 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देंगे बैंक.

बिपिन सिंह, रांची.

राज्य में खेती को पोषणयुक्त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए जैव-रासायनिक क्रांति का विकल्प ढूंढा जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकार कृषि विभाग के साथ ही बैंकों के साथ समन्वय कर 4400 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की योजना बना रही है, जिससे लगभग 1100 किसान लाभान्वित होंगे. किसान को यह बताना पड़ेगा कि वे अपने खेतों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करेंगे और पूरी तरह से प्राकृतिक खेती करेंगे. यह चार हजार से ज्यादा हेक्टेयर भूमि अन्य गांवों के लिए सीखने और इसे आगे बढ़ाने के मंच के तौर पर काम करेगी. रामगढ़ के पतरातू में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सफल रहने के बाद अन्य जिलों में इसे आजमाया जायेगा. यह पूरी तरह से एग्रो इकोलॉजी पर आधारित होगा, जहां रसायन और उर्वरकों के लिए कोई जगह नहीं होगी. 11 राज्यों में मौजूदा वाटरशेड और बाड़ी कार्यक्रमों के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाना है. इस कार्यक्रम के तहत प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये का निवेश की शुरुआती योजना है.

प्राकृतिक खेती को अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी

सरकार के इस काम में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने कृषि-पारस्थितिकी आधारित कार्यक्रम ”जीवा” को शुरू भी कर दिया है. नाबार्ड ने वर्ष 2023-24 में पतरातू (रामगढ़ क्लस्टर) में प्राकृतिक खेती का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है. प्राकृतिक खेती को अपनाने से मिट्टी की उर्वरता और गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है. किसानों की आय बढ़े, इसके लिए मछली पालन और देसी पॉल्ट्री पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है.

पांच जिलों में परियोजना को मिली स्वीकृति

राज्य में पतरातू (रामगढ़ क्लस्टर) में प्राकृतिक खेती का सफलतापूर्वक परीक्षण के बाद पश्चिमी सिंहभूम, दुमका, हजारीबाग और लोहरदगा जिलों में इन परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की गयी है. राज्य में जहां इसे शुरू किया जा रहा है, वहां 86 प्रतिशत से ज्यादा जमीन छोटे और सीमांत किसानों के पास है. ग्रामीण अर्थतंत्र को सशक्त बनाने के उद्देश्य से राज्य में 51 वाटरशेड विकास परियोजनाएं तैयार की गयी हैं, जिनसे लगभग 58,000 हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बनाकर कृषि योग्य बनाया गया है.

मिट्टी की सेहत सुधरी

मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाने और इसकी नमी बनाये रखने के लिए गोबर खाद का अधिक इस्तेमाल किया जाता है. हरा खाद का इस्तेमाल किया जाता है और सालों भर खेत में कुछ न कुछ लगा रहता है. इससे खेत की नमी बनी रहती है. साथ ही फसलों के अवशेष जैसे पुआल से मल्चिंग करने के लिए कहा जाता है. किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए इनपुट मुहैया कराया जा रहा है और साथ ही साथ उस उत्पाद को बेचने के लिए मार्केटिंग की भी व्यवस्था की गयी है.

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