24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

My Mati: ग्रीन पालिटिक्स झारखंड के लिए बेहतर विकल्प

मुंडा लोगों की एक कहावत है: ‘ससनदिरी को, होड़ो होन कोआ: पटा’ - (कब्र-शिला ही मुंडाओं का पट्टा है). शरत चंद्र रॉय की बुक “द मुंडा एंड देयर कंट्रीज” में ने चोकाहातु के साथ बारेंदा ससनदिरी का उल्लेख मिलता है.

डॉ शालिनी साबू

सहायक प्राध्यापिका, इंस्टिट्यूट आफ लीगल स्टडीस, रांची विश्वविद्यालय, रांची

प्रदर्शन यदि शांतिपूर्ण हो तो अपने दायरे में माना जा सकता है किंतु जरूरी नहीं कि वो अपने उद्देश्यों को पूरा करें, मगर यही प्रदर्शन यदि किसी नकारात्मक पहल पर प्रश्न उठाए, तो वह अंततः अपना ध्येय प्राप्त कर ही लेता है. कुछ ऐसे ही उद्गार मेरे सहयोगी व झारखंड उच्च न्यायालय के युवा अधिवक्ता सोनल तिवारी ने बातचीत के क्रम में मुझसे व्यक्त किये. सोनल विगत 25 जून 2023 को स्विटजरलैंड के बासिल शहर में थे, जहां उन्हें पर्यावरण के मुद्दों पर काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था की ओर से भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया था.

असल में यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की बैठक थी, जिसका सीधा संबंध पर्यावरण और उस पर आश्रित जनजातियों से जुड़ा हुआ है. एक कानून की प्राध्यापिका होने के नाते, मैं अक्सर सोनल से झारखंड के जनजातियों को प्रभावित करने वाले पर्यावरण से संबंधित मसलों पर अकादमिक चर्चा करती रहती हूं, मगर जिस विषय पर हम बात कर रहे थे, वह बेहद गंभीर ही नहीं, अपितु क्रियान्वयन उन्मुख कदम है, जिसे आत्मसात किये जाने पर एक बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है.

सोनल बताते हैं कि 25 जून 2023 को बासिल में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआइएस) नाम की संस्था की वार्षिक आमसभा की बैठक रखी गयी थी. बीआइएस वह संस्था है, जो दुनिया भर की बैंकिंग संस्थाओं को नियंत्रित करती है. भारत किकी केंद्रीय बैंकिंग संस्थान रिजर्व बैक आफ इंडिया (आरबीआइ) भी बीआइएस का हिस्सा है. इस वर्ष कि बीआइएस की वार्षिक बैठक खास थी, क्योंकि पूरे विश्व के सामुदायिक संगठन बीआइएस के पास एक विशेष गुहार लेकर पहुंचे थे. उनकी मांग यह थी कि बीआइएस एक ऐसा कानून बनाये, जिससे फॉसिल फिनांस (जीवाश्म वित्त) बंद हो.

बीआइएस, जिसका उद्देश्य केंद्रीय बैंकों को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से वित्तीय स्थायित्व प्रदान करना है, बैंकिंग संस्थाओं की नोडल एजेंसी है. इसमें विश्व के एक सौ से अधिक देश सदस्य हैं. कनाडा, लैटिन अमरीका, दक्षिण अफ्रीका और भारत से आये सामुदायिक संगठन, जो पर्यावरण के मुद्दों पर काम कर रहे हैं, ने बीआइएस को इस बात से अवगत कराया कि बढ़ते औद्योगीकरण के दौर में जहां बहुराष्टीय कंपनियां विकासशील देशों में तेजी से उद्योग स्थापित कर रही है, में यह समझना जरूरी है कि इनके वित्त का स्रोत क्या है. निःसंदेह, वे बैंक ही हैं, जो इन्हें भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने वाले कारखाने स्थापित करने में वित्त सहायता प्रदान करते हैं.

बासिल में उपस्थित सामुदायिक संगठनों ने बीआइएस के समक्ष मुख्यतः दो मांगें रखीं. पहला यह कि वह फॉसिल फिनांस को क्रिप्टो करेंसी की तर्ज पर देखे. कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह क्रिप्टो करेंसी का समान हिस्सा रिस्क निवेश में जाता है, उसी तरह फॉसिल फिनांस का बराबर हिस्सा भी रिस्क निवेश में जाए अर्थात जितना पैसा फॉसिल परियोजनाओं को दिया जा रहा है, समान भाग पर्यावरण को होने वाली क्षति की भरपाई के लिए भी दिया जाय. उदाहरण के लिए, यदि सौ करोड़ फॉसिल फिनांस में निवेश किया जा रहा है तो उतनी ही राशि रिस्क निवेश में डाली जाय.

इससे पूरा निवेश दो सौ करोड़ का होगा, जिससे फॉसिल फिनांस बैंकों के लिए एक महंगा सौदा सिद्ध होगा. इसी प्रक्रिया ने क्रिप्टो करेंसी का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिराया था. इनकी दूसरी मांग यह थी कि बीआइएस कोई ऐसा क़ानून लेकर आए जो पूरी तरह से फासिल फिनांस पर रोक लगा दें. यह कानून बीआइएस के प्रत्येक सदस्य के लिए अनिवार्य हों.

झारखंड में स्थित भूखंड और उसका यहां की आदिवासी आबादी से पारस्परिक संबंध, हम वकीलों के बीच हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. यह और भी दिलचस्प हो जाता है जब हम इसे प्रथागत कानून के दायरे में देखते हैं, जहां भूमि आदिवासियों के लिए एक सामुदायिक संपत्ति है. बीआइएस से समुदायों की अपील को हमने जब इस परिप्रेक्ष्य में देखा, तो हमारा ध्यान प्रदेश में चल रही बहुत-सी औद्योगिक परियोजना पर पड़ी, जिससे न सिर्फ हमारी प्राकृतिक संपदाओं का हनन हुआ है, बल्कि उसका लाभ भी किसी और को है.

मिसाल के तौर पर हम वर्तमान में चल रहे अडाणी-गोड्डा 1600 मेगावाट पावर प्लांट को देखें. इस परियोजना के लिए झारखंड सरकार ने 400 मेगावाट बिजली आपूर्ति करने का समझौता किया है. बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कोयला आस्ट्रेलिया से आयात होकर ओडिशा होता हुआ झारखंड के गोड्डा जिले में आता है, जहां इसे बिजली उत्पादन के लिए प्रयोग किया जा रहा है. ये सारी बिजली बांग्लादेश भेजी जा रही है. आस्ट्रेलिया के चार्माईकल खदान से आनेवाले इस कोयला का सारा अनुदान भारत के एक बैंक ने किया है.

आज गोड्डा जो पहले से सुखाड़ग्रस्त जिलो की श्रेणी में आता है, प्रदेश का सबसे गर्म जिला है. गर्मियों में इसका तापमान अन्य जिलों कि तुलना में सबसे ज्यादा होता है. यहां के वायु प्रदूषण का स्तर भी अधिक है तथा जलस्तर भी काफी कम रिकार्ड किया गया. आप स्वतः आकलन कर सकते हैं कि ऐसी छोटी-बड़ी परियोजनाओं का सम्मिलित असर हमारे प्राकृतिक संपदा संपन्न झारखंड पर कैसा हो रहा होगा.

निजी अनुभवों को साझा करते हुए सोनल ने मुझे बताया कि बासिल में हो रही इस बैठक के दौरान उनकी मुलाकात स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग से हुई. बीस वर्षीय ग्रेटा दुनिया की ख्यातिप्राप्त पर्यावरण आंदोलनकारी हैं और साल 2020 में नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित हो चुकी हैं. ग्रेटा जिसने ‘फ्यूचर फार फ़्राईडेस’ नामक मुहिम से दुनिया भर के राजनेताओं को कार्बन उत्सर्जन कम करने पर विवश किया, को जब यह पूछा गया कि क्या वह क्लाइमेट चेंज के प्रति जागरूकता बढ़ने के लिए भारत आना चाहेंगी तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि ऐसा तभी संभव है जब भारत सरकार उन्हें यहां आने का वीसा प्रदान करेंगी.

तो आखिर बेसल में हुई इस बैठक का निष्कर्ष क्या हुआ? जब बीआइएस ने इस मामले में यह कहते हुए असमर्थता जतायी कि वह केंद्रीय बैंकों को नियंत्रित करने वाली महज एक संस्था है, तो समुदायों ने एक सुझाव दिया कि बीआइएस एक माड्यूल बनाए, जिसमें क्लाइमेट फंडिंग से संबंधित नियम और निर्देश हों. इनका पालन बैंक सख्ती से करे. सिर्फ एक ऐसा कदम पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत सशक्त सिद्ध हो सकता है. परियोजनाओं में आर्थिक सहयोग ही महत्वपूर्ण है, जहां से इनका उद्गम होता है. यदि इन्हीं को बंद कर दिया जाय तो ऎसी परियोजनाए जन्म ही नहीं ले सकेंगी. अब वक्त आ गया है जब झारखंड में राजनीतिक दल जलवायु परिवर्तन को अपनी पार्टी के घोषणा पत्र का मुख्य एजेंडा बनाएं. क्यों न हम सब ‘ग्रीन पालिटिक्स’ पर बात करना शुरू करें?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें