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खनन फंड की राशि खर्च नहीं होने से झारखंड का विकास हो रहा प्रभावित, डीएमएफ फंड से मात्र खर्च हुए 3000 करोड़

2016 में प्राधिकार का गठन हुआ था. डीएमएफ की राशि उसी जिले में खर्च होनी है, जहां के लिए वह आवंटित है. राशि खर्च करने के लिए गाइडलाइन है. इसका पालन करना भी जरूरी है.

Jharkhand mining fund resources रांची : राज्य के जिलों में विशेषज्ञ अभियंताओं की कमी है, जो बड़ी-बड़ी योजना बना सकें या काम करा सकें. इस कारण छोटी-छोटी योजनाएं ही बन पा रही हैं और जिला खनन फंड से राशि खर्च नहीं हो पा रही है. इससे विकास की गति भी प्रभावित हो रही है. कई जिलों में एक या दो अभियंता ही पदस्थापित हैं. 2016 से अब तक प्राधिकार गठन के बाद से आवंटित 6855.81 करोड़ रुपये में से झारखंड मात्र 3000 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया है. प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के तहत खननवाले जिलों को राशि मिलती है.

2016 में प्राधिकार का गठन हुआ था. डीएमएफ की राशि उसी जिले में खर्च होनी है, जहां के लिए वह आवंटित है. राशि खर्च करने के लिए गाइडलाइन है. इसका पालन करना भी जरूरी है.

ग्राम सभा के बिना नहीं तय होनी है योजना :

डीएमएफ से मिलनेवाली योजना का निर्माण ग्रामसभा के स्तर से होना है. स्कीम तय करने की जिम्मेदारी प्रभावित गांव की है. ग्राम सभा जो तय करेगी, वह प्रबंध समिति के पास जायेगी. प्रबंध समिति इसका मूल्यांकन कर सकती है. इसके अतिरिक्त प्रबंध समिति को स्कीम जोड़ने का अधिकार नहीं है. अगर प्रबंध समिति को कोई आपत्ति हो तो वह इसे फिर ग्राम सभा को भेज सकती है. इसके लिए स्पष्ट कारण का भी जिक्र करना होगा.

ग्रामसभा की सहमति के बाद मुखिया और उप मुखिया विकास की योजना तैयार करने के लिए जिम्मेदार हैं. प्रबंध समिति उपायुक्त की अध्यक्षतावाली एक कमेटी है. इसमें एसपी, डीडीसी, डीएफओ, खनन पदाधिाकरी, सिविल सर्जन तथा जिला पंचायती राज पदाधिकारी होते हैं. समिति की बैठक साल में कम से कम छह बार होनी चाहिए.

विधायक-सांसद मांग रहे अधिकार :

राज्य में कई बार यहां के सांसद और विधायक डीएमएफ फंड से मिलनेवाली राशि की योजना तय करने में अधिकार देने की मांग करते रहे हैं. कई बार केंद्र और राज्य सरकार से इस संबंध में मांग की गयी है. इस योजना के संचालन के लिए एक न्यास परिषद बना है. इसमें सांसद और विधायक प्रतिनिधियों को भी रखा गया है. इसमें कुछ मनोनीत सदस्य भी रखे गये हैं.

कोयला और लिग्नाइट से 5007.23 करोड़ मिले

कुल 6855.81 करोड़ रुपये में कोयला और लिग्नाइट से झारखंड को 5007.23 करोड़ रुपये मिले हैं. वहीं प्रमुख खनिज से 1516.84 तथा माइनर मिनरल्स से 331.74 करोड़ रुपये मिले हैं. इसमें से झारखंड में 3000.74 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. करीब 2855 करोड़ रुपये अब तक खर्च नहीं हुए हैं.

5169 करोड़ रुपये खर्च के लिए आवंटित किये जा चुके हैं. इसके लिए विभिन्न जिलों ने 19526 स्कीमों को स्वीकृति दी है. 1466 योजनाएं अब तक शुरू भी नहीं हो पायी हैं. 15520 स्कीम पूरे हो गये हैं, जबकि 2363 पर काम हो रहा है. इन पर 258 करोड़ रुपये खर्च होंगे. 177 प्रोजेक्ट या तो खराब हो गये हैं, या इसे अस्वीकृत कर दिया गया है. इसके लिए राशि स्वीकृति नहीं की गयी थी.

धनबाद को मिली सबसे अधिक राशि

राज्य में सबसे अधिक राशि धनबाद को मिलती है. धनबाद को अब तक डीएमएफ फंड में 1670 करोड़ रुपये मिल चुके हैं. वहीं चतरा को 670 तथा गोड्डा को 460 करोड़ रुपये मिले हैं. रामगढ़ जैसे छोटे जिले को भी इस मद में अब तक 748 करोड़ रुपये से अधिक मिल चुके हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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