शहादत दिवस आज: झारखंड के वीर योद्धाओं टिकैत उमराव सिंह और शहीद शेख भिखारी ने आज ही के दिन देश के लिए दी थी अपनी शहादत. लेकिन शहीद शेख भिखारी के पैतृक गांव खुदिया लोटवा में उनके वंशज फटेहाल जिंदगी जी रहे हैं. वे मजदूरी कर, कोयला ढोकर और ऑटो रिक्शा चला कर परिवार चला रहे हैं. वंशजों को वर्ष में एक बार शहादत दिवस पर आठ जनवरी के दिन कंबल देकर याद कर लिया जाता है.
खुदिया लोटवा को 2011 में सरकार की ओर से आदर्श गांव घोषित किया गया था, लेकिन वंशजों की सुधि लेने कोई नहीं पहुंचा. शहीद शेख भिखारी के वंशज शेख कुर्बान, शेख शेर अली, शेख मुस्तकीम और शेख उमर ने बताया कि शेख भिखारी के खानदान का होने पर उनका नाज है. शहादत दिवस पर बड़े-बड़े नेता पहुंचते हैं और मात्र आश्वासन देकर चले जाते हैं.
शहीद टिकैत के वंशज को वृद्धा पेंशन भी नहीं
नयी पीढ़ी स्नातक होने पर भी नौकरी के अभाव में
मजदूरी कर जिंदगी बसर करने को है मजबूर
ओरमांझी खटंगा निवासी अमर शहीद टिकैत उमराव सिंह और उनके दीवान खुदिया लोटवा निवासी शेख भिखारी ने आठ जनवरी 1858 को आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था, लेकिन आज उनके परपोते वृद्धा पेंशन के लिए भी तरस रहे हैं.
नयी पीढ़ी स्नातक होने के बाद भी मजदूरी करने को विवश है. शहीद टिकैत उमराव सिंह के परपोते भरत भूषण सिंह बताते हैं कि तीनों भाइयों भजू सिंह, राजेंद्र सिंह और भरत भूषण सिंह को 1997-98 में इंदिरा आवास मिला था, जो जर्जर हो गये हैं. परिवार के मुखिया भजू सिंह 65 वर्ष के हैं, पर उन्हें वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती है.
Posted by: Pritish Sahay