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झारखंड के निजी स्कूलों की मनमानी, 4000 में मिल रहीं नर्सरी की किताबें, आठवीं की तो 8000 से पार

सीबीएसई व आईसीएसई स्कूलों में नये सत्र की शुरूआत अप्रैल में होती है. लेकिन निजी प्रकाशकों के डीलर स्कूलों में जनवरी-फरवरी में ही सांठगांठ कर कमीशन की दर तय कर लेते हैं.

रांची : राजधानी रांची के निजी स्कूलों की मनमानी के कारण अभिभावकों को किताब-कॉपी खरीदने में मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है. नर्सरी की किताब व कॉपी जहां 4000 रुपये में दिये जा रहे हैं, वहीं कक्षा 8वीं तक की किताब व कॉपी पर 8500 रुपये से अधिक खर्च करनी पड़ रही है. अभिभावकों का कहना है कि सीबीएसई स्कूल एनसीईआरटी की किताब की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें ही चलाते हैं. इसकी वजह है कमीशन. प्रकाशकों से लेकर किताब विक्रेताओं तक सभी से कमीशन पहले ही फिक्स हो जाता है. स्कूलों को जनवरी से ही ऑफर मिलने लगते हैं

जिन किताबों पर ज्यादा कमीशन मिलता है उसी को काेर्स में शामिल किया जाता है. कक्षा एक से आठ तक का कोर्स में सीबीएसई स्कूल निजी प्रकाशन की हिंदी, गणित, विज्ञान के विषय के अलावा जनरल नॉलेज, कंप्यूटर, आर्ट एंड क्रॉफ्ट, मोरल साइंस की किताबें भी शामिल कर निजी प्रकाशन और किताब विक्रताओं से लाखों रुपये का कमीशन ले रहे हैं. कमीशन के इस खेल में 50 रुपये कि किताबें 400 रुपये तक में बेची जा रही है. यही वजह है कि रांची में स्कूली किताबों का कारोबार 30 से 40 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

इन खास दुकानों में मिलती है स्कूलों की किताबें

जयश्री हरमू में डॉन बॉस्को कोकर व हेसाग, बिशप हार्टमैन, सेवन स्टार, संत जॉन, कैंब्रियन स्कूल की किताबें दी जा रही है. रोस्पा टॉवर में संत जेवियर्स, संत फ्रांसिस, लोरेटो कॉवेंट स्कूल, डीपीएस, संत चाल्स, शारदा ग्लोबल स्कूल, मेहेश्वरी बुक्स द्वारा ब्रिजफोर्ड स्कूल की किताबें दी जा रही है.

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ऐसा है कमीशन का खेल

सीबीएसई व आईसीएसई स्कूलों में नये सत्र की शुरूआत अप्रैल में होती है. लेकिन निजी प्रकाशकों के डीलर स्कूलों में जनवरी-फरवरी में ही सांठगांठ कर कमीशन की दर तय कर लेते हैं. स्कूल और निजी प्रकाशकों के डीलर आपस में बैठकर यह तय कर लेते हैं कि किस कोर्स में कौन-कौन से प्रकाशकों की कितनी किताबें लगायी जाये. निजी प्रकाशकों की किताबें कोर्स में चलाने के एवज में स्कूलों को करीब 30 से 40 प्रतिशत तक का कमीशन देते हैं. इसके अलावा एक बार देश-विदेश घूमने का ऑफर भी दिया जाता है.

ऐसे समझें… किताबों के कारोबार का गणित

सिर्फ रांची में 80 से अधिक स्कूल आईसीएसई और सीबीएसई से रजिस्टर्ड हैं. एक स्कूल में कम से कम 1200 छात्र औसत पढ़ते हैं. एक स्कूल में किताब के लिए औसतन 4000 रुपये एक छात्र को खर्च करना पड़ रहा है. सेशन 2024-25 के लिए रांची से करीब 33 करोड़ रुपये का कारोबार कैश ट्रांजेक्शन में होने की संभावना है. वह भी सिर्फ किताब और कॉपियों की खरीदारी के लिए.

कैश में चल रहा है किताबों का कारोबार

किताब-कॉपी की खरीदारी में कैशलेश ट्रांजेक्शन की अवधारणा दम तोड़ रही है. खास दुकानों में किताबों के लिए कैश ही लिए जा रहे हैं. पेटीएम, एटीएम, चेक के माध्यम से किताबें नहीं दी जा रही है. वहीं अगर किसी अभिभावक को कॉपी, स्टेशनरी नहीं लेनी है, तो किताब विक्रेता 15 दिनों बाद आने की बात कहते हैं और नहीं देते हैं. वहीं कई स्कूलों द्वारा स्कूल के आसपास ही कुछ दिन के लिए दुकान खोल कर किताबें बेची जाती है. अगर इस दौरान अभिभावक किताब नहीं खरीदते हैं तो उन्हें बाद में परेशानी होती है.

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