सतीश कुमार, रांची.
झारखंड में शहरीकरण और औद्योगिकीकरण का असर भूजल के स्तर पर पड़ा है. वर्ष 2020 की तुलना में भूजल की निकासी 2.29 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. वर्ष 2020 में जहां भूजल की निकासी 29.13 प्रतिशत थी, वह 2024 में बढ़ कर 31.42 प्रतिशत हो गयी है. सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की ओर से जनवरी 2025 में जारी सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है. बोर्ड की ओर से राज्य को 263 यूनिट में बांट कर भूजल का आकलन कराया गया था. इसमें पाया गया कि राज्य की पांच यूनिट बेरमो, बलियापुर, गोलमुरी (जुगसलाई), जमशेदपुर शहरी व चितरपुर में अब भी सबसे अधिक भूजल का दोहन हो रहा है. वहीं, छह यूनिट तोपचांची, धनबाद शहरी, जयनगर, रामगढ़, सिल्ली व रांची (शहरी) में भूजल की स्थिति चिंताजनक है. इसके अलावा 12 यूनिट कैरो, सरवन, सोनारअइठाडीह, गोविंदपुर, धनबाद, बाघमारा, भवनाथपुर, गिरिडीह, दारू, कोडरमा, खलारी व ओरमांझी में भी भूजल की स्थिति चिंतनीय (सेमी क्रिटिकल) पायी गयी है. शेष 241 यूनिट को सुरक्षित श्रेणी में रखा गया है.धनबाद और कोडरमा में सबसे अधिक भूजल का दोहन
राज्य में धनबाद व कोडरमा में सबसे अधिक भूजल का दोहन हो रहा है. धनबाद में 73.24% भूजल का दोहन हो रहा है. वहीं, कोडरमा में 65.74% और पश्चिमी सिंहभूम में सबके कम सिर्फ 10.74 प्रतिशत भूजल का दोहन हो रहा है. राज्य में फिलहाल 1.81 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीक्यूएम) भूजल का दोहन हो रहा है.
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