रांची. साल भर में यही एक फ्राइडे है, जिसके आगे ‘गुड’ विशेषण जोड़ा जाता है. और यह इसलिए क्योंकि इसी शुक्रवार के दिन प्रभु यीशु मसीह कलवारी पर्वत पर क्रूस में टांग दिये गये और मर गये. उनका यह मरण एक आत्म-बलिदान था, जिसे उन्होंने स्वेच्छा से ग्रहण किया था. इसके माध्यम से उन्होंने मानव जाति को पाप से मुक्ति दिलायी थी. यही कारण है कि ‘गुड फ्राइडे’ का हिंदी अनुवाद ””””पुण्य शुक्रवार”””” है. ये बातें आर्चबिशप विंसेंट आईंद ने कहीं. वे लोयला मैदान में गुड फ्राइडे के अवसर पर आयोजित आराधना में विश्वासियों को संबोधित कर रहे थे.
रोमन साम्राज्य में क्रूस पर टांगने की सजा आम बात थी
आर्चबिशप ने कहा कि रोमन साम्राज्य में क्रूस पर टांगने की सजा आम बात थी. ये सजा साधारणतः विद्रोही सैनिकों, आंदोलनकारियों और हत्या एवं डकैती जैसे घातक अपराधियों को दी जाती थी. जिनको यह सजा मिलती थी, उसे अपना क्रूस स्वयं उठा कर उस जगह तक ले जाना पड़ता था, जहां उन्हें क्रूस पर ठोक कर गाड़ दिया जाता था. यीशु की क्रूस मृत्यु के बाद ख्रीस्तीयों की परंपरा में इस घटना को ईश्वर की इच्छा के प्रति यीशु की आज्ञाकारिता और प्रेम का चिह्न माना जाता है. यीशु के हर शिष्य को अपने जीवन में अपना क्रूस उठाना सच्चे अर्थ में शिष्य होने के भाव को प्रकट करता है. इसका अर्थ अक्षरशः क्रूस ढोना नहीं है, पर अपने स्वार्थ को जीतना, अपने को नम्र बनाना और परसेवा में खुद को पूर्ण समर्पित करना होता है. पुण्य शुक्रवार अर्थात ‘गुड फ्राइडे’ का दिन हम ख्रीस्तीयों के लिए केवल शोकित होने का दिन नहीं है. यह दिन यीशु के प्रति धन्यवादी होने का भी है, क्योंकि यीशु ने क्रूस को प्रेम और मुक्ति का साधन बना दिया.दो भागों में हुई धर्मविधि
लोयला मैदान में धर्मविधि दो भागों में हुई. शाम पांच बजे पुण्य शुक्रवार की धर्मविधि संपन्न की गयी. इसके बाद शाम सात बजे क्रूस रास्ता और धर्मविधि का आयोजन हुआ. इसमें आर्चबिशप ने अपने कंधों पर क्रूस ढोया. क्रूस ढोने में पल्ली पुरोहित फादर आनंद डेविड, मोती जेम्स एक्का, अमित एक्का, मनोज लकड़ा, एबी रॉय, रिची रोजर लकड़ा, सुनील खलखो, रोशन कंडुलना सहित अन्य लोगों ने सहयोग किया. क्रूस रास्ता की आराधना के दौरान विश्वासियों ने उन 14 स्थानों का स्मरण किया, जो रोमी गवर्नर पिलातुस के दरबार में यीशु को क्रूस मृत्यु की सजा सुनाने, क्रूस ढोने, गिरने, क्रूस पर ठोके जाने, मृत्यु और शरीर कब्र में रखे जाने से संबंधित है. इस धर्मविधि के दौरान फादर अजीत खेस, फादर जस्टिन तिर्की, फादर मार्क मुकुल लकड़ा, फादर प्रदीप कुजूर, फादर थियोडोर टोप्पो, फादर अजय अनिल तिर्की, फादर नीलम संजीव तीडू सहित अन्य शामिल थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है