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झारखंड: रिम्स डायरेक्टर पद से इस्तीफा देने के बाद डॉ कामेश्वर प्रसाद ने खोली पोल, गिनायी कई खामियां

रिम्स डायरेक्टर पद से इस्तीफा देकर जा रहे पद्मश्री डॉ कामेश्वर प्रसाद ने प्रभात खबर से बात करते हुए संस्थान की व्यवस्था की पोल खोली. कहा कि रिम्स के अधिसंख्य डॉक्टर निजी प्रैक्टिस करते हैं. वह रिम्स आते हैं, लेकिन उनका मन निजी क्लिनिक में लगा रहता है. इससे मरीज और रिम्स दोनों का भला नहीं हो पाता.

रांची, रांजीव पांडेय : रिम्स डायरेक्टर के पद से इस्तीफा देने के बाद डॉ कामेश्वर प्रसाद ने संस्थान की व्यवस्था की पोल खोली. प्रभात खबर से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि रिम्स के डाॅक्टर्स की गलत कार्यशैली के कारण मरीजों का भला नहीं हो रहा है. डॉक्टर अपना शत-प्रतिशत नहीं दे रहे हैं. इससे मेडिकल एजुकेशन की गुणवत्ता भी खराब हो रही है.

निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाये बिना मरीज और रिम्स का विकास संभव नहीं है, तो इसके लिए आपने क्या प्रयास किया?

मैंने रिम्स में याेगदान देने से पहले ही प्रभात खबर से बातचीत में कहा था कि रिम्स का विकास तभी संभव है, जब निजी प्रैक्टिस पर पाबंदी लगे. योगदान देने के बाद मैंने इसे रोकने का प्रयास किया, लेकिन हर बार असफलता मिली. इसके बाद शासी परिषद की 55 वीं बैठक में निजी प्रैक्टिस पर पाबंदी लगाने के लिए डिटेक्टिव एजेंसी को रखने का प्रस्ताव रखा जिसे परिषद ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद मुझे लग गया कि इस पर सही मायने में कोई पाबंदी लगाना नहीं चाहता है. मीडिया भी इस दिशा में अपनी भूमिका नहीं निभाता. न्यायालय ने एक कमेटी का गठन तो करा दिया, लेकिन वह भी सशक्त और गंभीर नहीं है. ऐसे में निजी प्रैक्टिस पर रोक नहीं लग पायी. नतीजा यह है कि डॉक्टर रिम्स को अपना शत-प्रतिशत नहीं दे पाते हैं. वह जल्द ही क्लिनिक भागने की फिराक में रहते हैं. इस स्थिति में रिम्स का गुणात्मक परिवर्तन नहीं हो सकता है.

डॉक्टरों का कहना है कि निदेशक तानाशाही रवैया अपनाते हैं, वह किसी से मिलते नहीं हैं, तो विकास कैसे होगा?

यह गलत प्रचार किया गया है. डॉक्टरों से मिलता हूं, लेकिन इसका समय निर्धारित कराया है. योगदान देते समय ही मैंने स्पष्ट किया था कि मुझे काम करना है, इसलिए अनावश्यक समय मिलने और गप्पबाजी में बर्बाद नहीं कर सकता हूं. छात्रों से मिलता हूं, क्योंकि उनको पढ़ाई करनी है, उनका एक-एक मिनट कीमती होता है. वहीं, डॉक्टर और कर्मचारी से मिलने के लिए ड्यूटी गाइडलाइन है, जिसका पालन होना चाहिए. कर्मचारियों के हित के लिए काम किया हूं. इस संबंध में उनसे पूछा जाये, वहीं बेहतर बतायेंगे. यह जरूर है कि अनुशासन में रहकर मैं काम करता हूं, जो सबको भाता नहीं है.

आपने क्या सोचकर रिम्स में योगदान दिया था और नहीं कर पाये, जिसका आपको हमेशा मलाल रहेगा?

निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाना और न्यूरोलॉजी विभाग में डीएम का कोर्स शुरू नहीं करा पाना मुझे हमेशा खलेगा. न्यूरोलाॅजी विभाग में डीएम कोर्स शुरू हो जाता लेकिन प्रोफेसर पद पर नियुक्त डॉक्टरों ने योगदान नहीं दिया. लगता है कुछ दिनों में यह हो जायेगा, लेकिन मेरे कार्यकाल में नहीं हो पाया. हालांकि थर्ड ग्रेड में नर्स की बहाली निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत कराया. फोर्थ ग्रेड में अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया है, लेकिन उस पर कोर्ट ने रोक लगा है.

रिम्स कैसे बेहतर बन सकता है, आपकी नजर में इसके लिए क्या करना चाहिए?

रिम्स को बेहतर संस्थान बनाने के लिए मैंने रिसर्च पर जोर दिया, जिसमें कुछ सफलता भी मिली. 23 से ज्यादा शोध पत्रों का प्रकाशन हुआ है. सीनियर और जूनियर डॉक्टर इसमें रुचि दिखा रहे है. पीएचडी कोर्स को भी इसी क्रम में शुरू करा दिया है. इसके अलावा उपकरण और सामान की खरीदारी के लिए पूरा सिस्टम एम्स की तरह हो गया है. नयी निविदा से पहले यह बताना होता है कि सामान की क्यों जरूरत है. पहले कब और कितने की खरीदारी हुई है. पहले के सामान का कहां-कहां उपयोग किया गया है. पहले इस प्रक्रिया को नहीं अपनाया जाता था. कार्डियोलॉजी में दो कैथलैब मशीन, दो अत्याधुनिक इको और चार अल्ट्रासाउंड मशीन खरीदी गयी है. जेनेटिक्स एंड जीनोम विभाग स्थापित किया गया है, जिससे अब वायरस के नये वैरिएंट का पता आसानी से लगाया जा सकता है, पहले कोलकाता और पुणे भेजा जाता था.

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