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आदिवासियों के योगदान-संघर्ष को नहीं मिली जगह, झारखंड आदिवासी महोत्सव में हेमंत सोरेन के भाषण की 10 बड़ी बातें

दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव का रंगारंग आगाज हुआ. राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन और सीएम हेमंत सोरेन ने इस महोत्सव का उद्घाटन किया. इस मौके पर सीएम ने कहा कि इस महोत्सव से आदिवासी जीवन-दर्शन व लोक-संस्कृति को अलग पहचान मिलेगी.

Jharkhand News: विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 का रंगारंग आगाज हुआ. राजधानी रांची के बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस महोत्सव का शुभारंभ किया. इस मौके पर सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि नृत्य व संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की पहचान है. इस मौके पर सीएम ने सभी राज्य वासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं भी दी है.

   आदिवासी जीवन दर्शन व लोक संस्कृति की मिलेगी विशिष्ट पहचान

झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि इस महोत्सव के अपने मायने हैं. इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी.

   नृत्य, संगीत के साथ-साथ संघर्ष आदिवासी समाज की है पहचान

मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है. कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं. अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. मणिपुर में हजारों घर जल कर तबाह हो गये हैं. सैकड़ों लोगों को मारा गया है. महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया है. दरअसल यह सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है. संघर्ष है वर्चस्ववादी ताकतों और समानता तथा भाईचारे की ताकतों के बीच. संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और ‘जियो और जीने दो’ की उदार ताकतों के बीच. संघर्ष है भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच. संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं प्रकृति का सहयोगी- सहभोगी बन कर रहने वाली श्रमजीवी एवं साहसी शक्तियों के बीच.

   एकजुट होकर लड़ें और आगे बढ़े

उन्होंने देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासी भाइयों-बहनों से एकजुट होकर लड़ने एवं बढ़ने की अपील की है. कहा कि गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उरांव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा. आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है. हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं जबकि सबकी संस्कृति एक है. खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए. हमारी समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए.

   विस्थापन का दर्द जेल रहा है आदिवासी समुदाय

लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है एवं केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किसी की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये. हमारी व्यवस्था कितनी निर्दयी है ? कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहां गये खदान, डैम, कारखानों द्वारा विस्थापित किये गए लोग? खदानों/उद्योगों/डैमों से विस्थापित हुए, बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं. काट दिया गया लाखों लोगों को अपनी भाषा से, अपनी संस्कृति से, अपनी जड़ों से. कहा कि कल का किसान आज वहां साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है. बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश किया गया है. बिना पुनर्वास किये एक्ट बनाकर लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दिया गया. झरिया शहर बरसों से आग की भट्ठी पर तप रहा है, लेकिन कोयला कंपनियां एवं केंद्र सोयी हुई है.

   आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपनाएं?

मुख्यमंत्री ने कहा कि आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपना मान सकता है ? आखिर विकास की चपेट में किनकी जमीन गयी है ? किनकी रोजी-रोटी छीनी गई है ? किनकी भाषा खत्म हो रही है ? किनकी संस्कृति खतरे में है ? क्या इसका जायजा सत्ता को नहीं लेना चाहिए था ? जो विकसित हुए हैं वे कौन हैं ? तथाकथित मुख्यधारा के इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की है. उन्होंने उनका इतिहास ही दर्ज नहीं किया और न ही देश के विकास में आदिवासियों के योगदान को चिह्नित किया गया. चाहे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध हो या महाजनों के जुल्म के खिलाफ संघर्ष या फांसी पर लटकने की हिम्मत हो या अंतिम आदमी के रूप में लड़ते हुए मर जाने का साहस, इनमें अगुआई के बावजूद इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी.

   विलुप्त होती जा रही है आदिवासी भाषाएं

उन्होंने कहा कि आज देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासियों की अनेक भाषाएं गायब हो चुकी हैं या गायब होने के कगार पर है. आज हमारे जीवन को आस्था के केंद्रों से बांधने का प्रयास किया जा रहा है. लोग तो हमसे हमारा नाम तक छीनने में लगे हुए हैं. हम आदिवासी/मूल निवासी हैं पर विचित्र बात है ! जिस समाज की कोई जाति नहीं उसे कोई ‘जनजाति’ कह रहा है, तो कोई वनवासी कहकर एक ढंग से चिढ़ा रहा है. आज जब आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के विरुद्ध बोलने का प्रयास कर रहा है, तो उसे चुप कराने का प्रयास हो रहा है. भले ही आदिवासियों में अनेक क्रांतिकारी वीर, विद्वान,चिंतक हुए हैं, लेकिन समाज के मुख्यधारा द्वारा हमेशा प्रयास किया गया है कि हमारी कोई औकात नहीं बन सके एवं नीति-निर्धारण में हमारी कोई भूमिका नहीं रह सके.

   हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया

जब हम आदिवासी संस्कृति, आदिवासी समाज के इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं, तो 1800 ई0 के पूर्व का ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है. जब हमारे बारे में लिखना प्रारंभ किया गया तब भी हमें केवल क्रांति की श्रृंखला का नेतृत्वकर्ता मान लिया. हमें टुकड़ों में बांट कर देखने का प्रयास हुआ, जबकि इतिहास के हर दौर में आदिवासी समाज अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करवाते रहा है. हमारे पूर्वजों ने गणतंत्र की स्थापना की, राज्य निर्माण किया, लोक कल्याणकारी शासक वंशों की स्थापना की. इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की सभ्यता-संस्कृति को गढ़ने में आदिवासी समाज के योगदान की पुनः व्याख्या की जाए. हमें आदिवासी समाज को आदिवासी विचारक, लेखक, विद्वान् की नजरों से देखने की जरूरत है. यह सच है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग, आदिवासी वर्ग है. लेकिन, यह भी सच है कि हम एक महान सभ्यता के वारिस हैं. हमारे पास विश्व एवं मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है. जरूरत है कि नीति निर्माताओं के पास दृष्टि हो.

   आदिवासियों के लिए अपनी जमीन-अपनी संस्कृति-अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है

मुख्यमंत्री ने कहा कि क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया, उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं ? हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. आदिवासी समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, मेहनत करके खाने वाली समुदाय है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है. हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की समुदाय के हैं. हम इस देश के मूलवासी हैं. हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, नदियां बचाई, पहाड़ बचाया है.

   आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत

उन्होंने कहा कि इस महान आदिवासी संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखने की जरूरत है. हमें सिर्फ जंगल में रहने वाले गरीब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. जंगल एवं मानव विकास की पूरी कहानी हमारे पूर्वजों के पास है. आज जरूरत है कि एक आम देशवासी के अंदर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगाई जाए. जरूरत है आमजन के अंदर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की.

   देश के आदिवासी समाज का मुझे मिलता रहा है प्यार

मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने हमारे ऊपर विश्वास जताया है. आदिवासी मुख्यमंत्री होने के अपने मायने हैं. झारखंड ही नहीं देश के दूसरे हिस्से के आदिवासियों का भी जो प्यार मुझे मिलता है, जो उम्मीद मुझसे है उससे मैं भली-भांति परिचित हूं. आइये हम अपनी एकजुटता को आगे बढ़ने का संकल्प लें.

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