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प्रभात खबर स्थापना दिवस : बोले सीएम हेमंत सोरेन- पत्रकार और साहित्यकार देश व समाज को नयी दिशा दे सकते हैं

कुछ अखबार प्रकाशन समूहों ने अपनी विश्वसीनयता कायम रखी है. समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज सत्ता तक पहुंचाने की पत्रकारिता हो

पाठकों के विश्वास और भरोसे के 37 साल हो चुके हैं. 14 अगस्त 1984 को प्रभात खबर की यात्रा शुरू हुई थी. इस अवसर पर झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने शुभकामनाएं दी है और ये बातें कही है…

जिंदगी को बहुतेरी रंग और छटाओं में देखा. पढ़े लिखे को सोच कर, अपने अनुभवों से सीख लेकर देखा. हर बार यही पाया कि ज्ञाता से बड़ा कर्ता होता है. नाम समय के साथ भुला दिये जाते हैं. असल चीज है काम. कोई भी काम जिससे खुद को तसल्ली और दूसरों को खुशी मिले, उससे जुड़ जाना, जुड़े रहना और उसे आगे बढ़ाना राजनीतिक धर्म है, आज की भाषा में जिसे सेवा कहा जाता है, वह असल में राजनीति का फर्ज है.

हर युग की चुनौतियां अलग ढंग से सामने आयी हैं. राम, कृष्ण, बुद्ध, कबीर, या फिर गांधी. सबका अपना समय रहा है. महापुरुषों से प्रेरणा पायी जा सकती है, लेकिन समाधियां जागृत लोगों का नेतृत्व नहीं करतीं. इसलिए सारे चिंतक, मसीहा, विचारक और इतिहास पुरूष हमारे सिर माथे हैं उनसे प्रेरणा पाकर हमें अपने रास्ते बनाने हैं, हमारे सरोकार तो हमारे हैं. एक बात और जिस रास्ते पर देश और समाज चल पड़ा है उसके उलट दिशा में जाने का कोई बागी तेवर नहीं है हमारे पास, लेकिन सबकी यात्रा सुखद और सार्थक हो, इसके लिए जनता का मासूम आग्रह राजनीति और पत्रकारिता से जरूर होता है.

आज के परिवेश में पत्रकारिता को लेकर आप लाख मंथन कर लें, लेकिन आपको मानना पड़ेगा कि पत्रकारिता का झुकाव अब ’’पक्ष’’कारिता की तरफ भी हुआ है. पत्रकारिता के दो पहलू हैं, नकारात्मक और सकारात्मक. तीसरा शब्द संतुलित पत्रकारिता से है ’’जहां न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’’ की कहावत चरितार्थ होती है. शब्दों की मर्यादा और साहित्यिक सोच से सामाजिक सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता के अपने मायने हैं, जिसमें सामुदायिक विकास ही मुख्य एजेंडा होता है.

तकलीफ देख, शब्दों के माध्यम से निकले उद्गार सत्ता के सीने में पैबश्त हो जायें, तो आप मान लीजिये कि आपकी पत्रकारिता निश्छल, स्वार्थरहित और जनसरोकार से जुड़ी हुई है. बॉटम खबर, हेडलाईन और संपादकीय शब्दों में ’’पक्ष’’कारिता, सत्ता के प्रति निष्ठा और जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर सिंगल कॉलम की खबरें दुखित करती हैं. ये माना कि उगते सूर्य को नमन करने की प्रथा है, तो यह भी ध्यान रखा जाये कि अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की पंरपरा हमारे त्योहारों में झलकती है.

इसलिये जनसरोकार से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता देना हमारा पहला फर्ज होना चाहिये ताकि समाज के अंतिम व्यक्ति तक उसके अधिकार और संबंधित सत्ता तक आवाज पहुंच सके. मीडिया एक ऐसा माध्यम है जो सत्ता और समुदाय के बीच अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जैसा की पूर्व में भी होता रहा है. हालांकि पत्रकारिता अपने निर्धारित पथ पर चल रही है लेकिन लेखनी में एकपक्षीय सोच का अंश दिखाई पड़ता है.

आज के दौर में सूचना एवं तकनीकी के विभिन्न संसाधनों से लैस पत्रकार और मीडिया हाउस टीआरपी की रेस लगा रहे हैं. सबको नंबर एक बनना है. अपुष्ट खबरों को ब्रेकिंग बनाकर दर्शकों और पाठकों को परोसने की यह दौड़ एक तरफ जहां समाज को भ्रमित कर रही है वहीं दूसरी तरफ मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं. यह माना कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, जिसका जिक्र संविधान में नहीं बल्कि सिर्फ राजनीतिक गलियारे में है, फिर भी फर्ज से विमुख होकर सवार्थ सिद्धि प्राप्त करने का भ्रम नहीं पाला जा सकता है.

लंबे अरसे के बाद कोरोना महामारी में पत्रकारिता के तेवर दिखाई दिये और विस्तृत रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया चाहे वह खूबियां हो या खामियां. इनकी रिपोर्ट से कई प्रदेश की सरकारों ने सबक भी लिया और संबंधित खामियों में सुधार भी किया गया. पहले और दूसरे चरण के कोरोना संक्रमण में मीडिया की भूमिका काफी सराहनीय रही.

हमारे पत्रकारों ने अपने हौसले का परिचय देते हुए सोशल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए रिपोर्टिंग की और कई अवसरों पर उन्होंने यह साबित किया कि समाज हित के कार्यों में वे फ्रंट वॉरियर हैं. लोगों की जान बचाने में पत्रकार जगत की महत्वपूर्ण भूमिका रही. मैं ऐसे कई पत्रकार मित्रों को जानता हूं जिन्होंने कोविड काल में अपनी जान की परवाह किये बगैर सामाजिक जवाबदेही का निर्वहन निःस्वार्थ भाव से किया है. इस दौरान राज्य के कई पत्रकारों को अपनी जान देकर कीमत भी चुकानी पड़ी.

कहते हैं कर्मण्येवाधिकारस्ते को पूरे ब्राह्मणत्व के साथ यज्ञोपवीत की तरह धारण किया जाये तो जातक की जन्मपत्री में शत्रुहंता योग प्रबल हो जाता है. पत्रकार, पत्रकारिता और सरकार के समग्र प्रयासों से कोविड जैसी महामारी में बेहतर सुविधायें उपलब्ध करायी गयी और सामाजिक सरोकार की क्रांति का अलख जगाया जा सका. सामाजिक संगठन, कॉरपोरेट घराने, सरकार और व्यवस्था से जुड़े लोग अगर कोविड महामारी में सेवा भाव लेकर सामने आये तो उसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही, इसे नकारा नहीं जा सकता है. आपदा में अवसर की तलाश करने वालों की शिनाख्त कर उन्हें बेनकाब करने में पत्रकारों की भूमिका सराहनीय रही.

इतिहास के झरोखों में पत्रकारिता का मतलब जनहित से जुड़े मुद्दों से जुड़ा है, जिसमें रोटी, कपड़ा और मकान से लेकर आम लोगों की हक- हुकूक की आवाज सरकार तक पहुंचाना साथ ही, सरकार की नीतियों में खूबियां और खामियों की विवेचना हिस्सा हुआ करता था. अब टीवी चैनलों की बाढ़ के बाद अपुष्ट खबरों का प्रसारण संस्कृति बनती जा रही है, जिससे हमें बचने की जरूरत है.

इसके अलावा डिजीटल युग में कई डिजीटल प्लेटफॉर्म यथा यूट्यूब, वेब चैनल पर आधी अधूरी खबरों का प्रसारण व प्रकाशन लोगों को भ्रमित कर रहा है. सूचनाओं की बाढ़ में इंसान इस कदर उलझ गया है कि सही और गलत का आकलन करने उसके वश की बात नहीं रही. हालांकि कुछ चैनलों और अखबार प्रकाशन समूहों ने अपनी विश्वसीनयता कायम रखी है, जो उनके उद्देश्यों की बुनियाद से काफी मेल खाता है.

बहरहाल, कवि रामधारी सिंह दिनकर ने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि जब-जब सत्ता लड़खड़ाती है, तब-तब साहित्य उसे संभाल लेता है. पत्रकार, साहित्यकार एक ऐसी कौम है जो देश और समाज का एक नयी दिशा दे सकते हैं. व्यवस्थाओं में खामियां हो सकती हैं, क्योंकि आप कोई भी कदम उठाते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपने जो कदम बढ़ाये हैं, उसके सभी पदचिन्ह परिपक्व हैं.

आपके द्वारा कदमों की विवेचना होनी चाहिए, जमीनी स्तर पर उसका अध्ययन होना चाहिए और नीति-निर्धारक खामियों में सुधार कर सकें उसके लिए आपके शब्दों में वो तासीर होनी चाहिए जिससे व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया जा सके. शर्त बस … इतनी है कि ऐसा करने के पूर्व आपको अपनी कलम को सामाजिक सरोकार से जोड़े रखना होगा.

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