रांची. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन राजधानी से सटे इटकी में विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी, 1300 बेड का मेडिकल कॉलेज व तथा वर्ल्ड क्लास स्कूल का निर्माण करा रहा है. संस्थान इस क्षेत्र में सात हजार करोड़ रुपये का निवेश करेगा. वर्ष 2024 के जुलाई में कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो चुका है. वर्ष 2026 तक अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय एवं स्कूल में पठन-पाठन का काम शुरू होगा. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पैटर्न वाले इस स्कूल में जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त ड्रेस और मिड डे मील के तहत फ्री डायट उपलब्ध कराया जायेगा.
पहले चरण में 230 बेड की सेवाएं शुरू होंगी
वहीं, मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मेडिकल, नर्सिंग और स्वास्थ्य से जुड़े कोर्सेस होंगे. वर्ष 2027 तक अस्पताल में पहले चरण में 230 बेड की सेवाएं शुरू करने का प्रयास है. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने मंगलवार को होटल बीएनआर चाणक्य में ”आदिवासी समुदायों का स्वास्थ्य : जमीन पर काम करने के अनुभव और सीख” नाम से आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत की. इस मौके पर फाउंडेशन के स्वास्थ्य प्रमुख आनंद स्वामीनाथन, स्टेट हेड कैलाश कांडपाल, स्टेट हॉस्पिटल मैनेजमेंट टीम से मनोज पी, सुदीश बैंकटेश सहित फाउंडेशन की पूरी टीम मौजूद थी.
यूनिवर्सिटी निर्माण पर 1400 करोड़ होंगे खर्च
सदस्यों ने मीडिया से कहा कि कमजोर से कमजोर परिवार तक फाउंडेशन की सहायता पहुंचाने का कार्य प्रतिबद्धता के साथ किया जायेगा. रांची में यह तीसरी यूनिवर्सिटी होगी. इससे पहले फाउंडेशन ने बेंगलुरु और भोपाल में यूनिवर्सिटी खोला है. दरअसल, विप्रो कंपनी की सीएसआर इकाई अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की तरफ से राजधानी रांची के इटकी में 146 एकड़ में लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च कर यूनिवर्सिटी कैंपस का निर्माण किया जा रहा है.
आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य के लिए काम करेगा फाउंडेशन
कार्यक्रम में आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं, चुनौतियों और उनके समाधान पर भी चर्चा की गयी. कार्यक्रम में देश भर से लगभग 250 प्रतिभागियों ने भाग लिया. फाउंडेशन के अनुभवों के मुताबिक पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य की स्थिति काफी नाजुक है. इन तक स्वास्थ्य सेवाएं भी सीमित मात्रा में ही पहुंच पायी हैं. साथ ही, आदिवासी समुदायों में टीकाकरण, प्रसव की सुविधाएं व उसके बाद की देखभाल जैसी मूलभूत सेवाएं तक पहुंच भी काफी मुश्किल है. इसके अलावा, आदिवासियों में एनीमिया, बच्चों में कुपोषण के साथ-साथ कई गैर-संचारी बीमारियां अन्य समुदायों से कहीं ज्यादा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है