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राजधानी में आज भी सिर पर ढोया जा रहा है मैला
विशेष. सरकार से नहीं मिली मदद, सर्वे तक सिमट कर रह गयी योजना देश को आजाद हुए 69 वर्ष बीत गये. इस दौरान विकास की लंबी लकीर खींची गयी. पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आजादी के समय जो चीजें कचोटती थी़, वे इतने लंबे समय बाद आज भी बदस्तूर जारी है़ं समाज का एक वर्ग […]
विशेष. सरकार से नहीं मिली मदद, सर्वे तक सिमट कर रह गयी योजना
देश को आजाद हुए 69 वर्ष बीत गये. इस दौरान विकास की लंबी लकीर खींची गयी. पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आजादी के समय जो चीजें कचोटती थी़, वे इतने लंबे समय बाद आज भी बदस्तूर जारी है़ं समाज का एक वर्ग आज भी सिर पर मैला ढोने को मजबूर है. प्रभात खबर इससे जुड़ी रिपोर्ट छाप रहा है़ हमारा उद्देश्य है कि इस तरह के अमानवीय कार्यों को लेकर सरकार से लेकर आम जनों मेें स्पंदन हो, ऐसी सामाजिक मजबूरियों के खिलाफ संवेदना जगे़ समाज ऐसी कुरीतियों को रोकने के लिए आगे आये़
सुनील कुमार झा
रांची : झारखंड में भंगी मुक्ति कार्यक्रम पर भले ही करोड़ों रुपये खर्च हो गये हों, पर सिर पर मैला ढोने की प्रथा अब तक समाप्त नहीं हुई है. सबसे दुखद पहलू यह है कि यह सब राजधानी रांची में ही हो रहा है. रांची में अलग-अलग जगहों पर 50 से अधिक परिवार की महिलाएं इस काम में लगी हैं.
कई बार इनका सर्वे हुआ. अधिकारी आये और नाम लिख कर चले गये. पर अभी तक कइयों का राशन कार्ड तक नहीं बना. इस काम में लगी महिलाएं कहती हैं, पेट पालने और परिवार चलाने की मजबूरी है. कोई और दूसरा साधन नहीं है. इस काम से जुड़े कुछ लोगों को आज तक कोई सहायता नहीं मिली.
रांची में लेक रोड स्थित तुलसी नगर के करीब दो दर्जन परिवार की महिलाएं अपने परिवार को चलाने के लिए यह काम करने को विवश हैं. एक महिला ने बताया, ‘ वर्षों से यह काम कर रही हूं. परिवार चलाने का दूसरा कोई साधन नहीं है.’ कारण पूछने पर पता चला कि इस महिला का पति आठ साल से लकवाग्रस्त है. घर में तीन बेटियां हैं, किसी की शादी नहीं हुई. ऐसे में वह चाह कर भी यह काम नहीं छोड़ पा रही. 60 साल की एक अन्य महिला ने बताया, ’10 साल से यह काम कर रही हूं. पति की तबीयत खराब रहती है. रोजगार का काेई साधन नहीं है. मजबूरी में यह सब करना पड़ता है. ‘
राजधानी रांची में खेत मुहल्ला, हिंदपीढ़ी, मधुकम, कांटाटोली समेत कई इलाकों में सैकड़ों घरों के लोग आज भी कच्चे शौचालय का उपयोग करते हैं. शौचालय के नीचे बड़ा डिब्बा लगा रहता है. महिलाएं पहले डिब्बा से मैला को टीना में डालती हैं. इसके बाद सिर पर उठा कर ले जाती हैं. एक अन्य महिला ने बताया, ‘सुबह पांच बजे से पहले अपना काम कर लेते हैं. मैला फेंकने में भी परेशानी है. लोग विरोध करते हैं. लोगों से छिप कर यह काम करना पड़ता है. ‘ उसने बताया, ‘ एक घर से महीने में 150 से 200 रुपये तक मिल जाते हैं. दो से तीन दिन के अंतराल पर एक घर का मैला उठाते हैं. दो महिला एक साथ मिल कर काम करती हैं. ये महिलाएं इस काम को छोड़ना चाहती हैं, कहती हैं, ‘सरकार कोई भी काम दे दे. सड़क पर झाडू लगाने या फिर कार्यालय की साफ-सफाई का काम, जो भी दे, हम कर लेंगे. मैला ढोना किसे अच्छा लगता है. लोग हमें अछूत मानते हैं. जिसके यहां काम करने जाते हैं, वहां भी लोग हम से दूर भागते हैं. ‘
रांची नगर आयुक्त प्रशांत कुमार से बातचीत
– रांची में सिर पर मैला ढोने का काम किया जा रहा है. निगम को क्या इसकी जानकारी नहीं है?
इस तरह की कोई जानकारी हमें नहीं है. अगर आपके पास कोई जानकारी है, तो बताइए. हम मामले की जांच करवाते हैं.
– इसपर रोक लगाने को लेकर राज्य में कोई कानून है या नहीं ?
सिर पर मैला ढोना प्रतिबंधित है. यह पूरी तरह से गैरकानूनी काम है.
– इस काम में लगे लोगों के लिए निगम कुछ कदम उठा रहा है क्या?
ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया जायेगा़
अब भी 50 परिवार की महिलाएं लगी हैं इस काम में
भंगी मुक्ति योजना के िलए मिले थे 10.85 करोड़
भंगी मुक्ति योजना के लिए राज्य सरकार को पूर्व में केंद्र से 10.85 करोड़ रुपये मिले थे. इससेे राज्य के चयनित 5,750 सफाई कर्मियों के लिए योजना चलायी जानी थी. राशि सफाई कर्मियों के प्रशिक्षण व पुनर्वास पर खर्च होनी थी. राशि तो खर्च हो गयी, पर सफाई कर्मियों के एक बड़े तबके को इसका लाभ नहीं मिला.
– झारखंड में सिर पर मैला ढोना प्रतिबंधित है या नहीं?
बिल्कुल प्रतिबंधित है. सरकार इसे समाप्त करने के लिए योजनाओं पर लगातार काम कर रही है़
– ऐसे काम करानेवालों के लिए सजा का प्रावधान है या नहीं?
कानून की सही-सही जानकारी नहीं है. पर यह पूरे समाज के लिए शर्मनाक है़
– राज्य के दूसरे शहरों में भी यह काम होता है?
इसकी कोई जानकारी नहीं है. कई साल पहले किशोरगंज क्षेत्र में जानकारी मिली थी कि सिर पर मैला ढोने काम हो रहा था. उसके बाद ऐसी कोई सूचना नहीं मिली. सरकार शौचालय बनाने के लिए मदद देती है. मैंने अपने फंड से 11.96 लाख रुपये रांची नगर निगम को दिये हैं. सरकार इसके उन्मूलन के लिए राज्य स्तर पर काम करेगी.
क्या है कानून
भारत सरकार ने 1993 में इस कुप्रथा के उन्मूलन का फैसला किया था. राज्यों को इसे प्रतिबंधित करने और इस बारे में कानून बनाने का निर्देश दिया गया था. 2012 में संसद में पेश किये गये बिल द प्रोबेशन ऑफ इंप्लायरमेंट एज मैनुअल स्केवेंजर्स एंड देयर रिहेबिलिटेशन बिल, 2012 में सिर पर मैला ढोने के लिए रखनेवाले को एक साल तक जेल की सजा तक का प्रावधान किया गया था. पर देश के कई राज्यों ने केंद्र सरकार के निर्णय को गंभीरता से नहीं लिया. कई राज्य सरकारों ने तो इस आशय की अधिसूचना जारी नहीं की है. झारखंड भी उन्हीं राज्यों में से एक है.
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