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क्यों मैसूर स्वच्छता में नंबर वन व रांची पीछे!

शहरी विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी की गयी स्वच्छता रैंकिंग में मैसूर शहर को नंबर वन रैंक दिया गया है, जबकि रांची को गंदे शहरों की सूची में रखा गया है. झारखंड के रांची, धनबाद व जमशेदपुर गंदे शहरों की सूची में शामिल हैं. मैसूर स्वच्छता के कई मानकों में काफी अव्वल है, […]

शहरी विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी की गयी स्वच्छता रैंकिंग में मैसूर शहर को नंबर वन रैंक दिया गया है, जबकि रांची को गंदे शहरों की सूची में रखा गया है. झारखंड के रांची, धनबाद व जमशेदपुर गंदे शहरों की सूची में शामिल हैं. मैसूर स्वच्छता के कई मानकों में काफी अव्वल है, जबकि ऐसी सुविधा रांची में न के बराबर है. जानते हैं कैसे मैसूर हुआ नंबर वन और कहां पिछड़ गयी रांची.
हालात मैसूर के स्वच्छता का ध्यान रखते हैं स्थानीय लोग
नॉर्थ मैसूर के कुंबर कोप्पल में नागरिक कार्यकर्ता जीरो वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की देखरेख करते हैं. चार घंटों तक वे पांच हजार घरों से अलग-अलग कचरा जमा करते हैं, जिसमें गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग जमा किया जाता है. उसे वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में भेजा जाता है. 45 दिनों के ट्रीटमेंट के बाद गीले कचरे को कंपोस्ट में बदल दिया जाता है, जिसे किसान हमेशा ले जाते हैं. वहीं, सूखे कचरे जैसे प्लास्टिक और ग्लास आदि को जमा कर बेच दिया जाता है.

मैसूर के नौ में से एक इस प्लांट की स्थापना मैसूर सिटी कॉरपोरेशन द्वारा की गयी है. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का विकेंद्रीकरण से न केवल सेंट्रलाइज्ड प्लांट का लोड कम होता है, बल्कि कचरों के परिवहन का खर्च भी कम होता. एक वार्ड में 30 नागरिक कार्यकर्ताओं को कचरों के जमा करने से लेकर प्रोसेस करने की जिम्मेवारी दी गयी है. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के एक वार्ड से 25 हजार रुपये प्रति माह की आय होती है. जिसे क्षमता संवर्द्धन और जागरूकता कार्यक्रमों में खर्च किया जाता है. सबसे बड़ी बात है कि मैसूर के निवासी शहर की सफाई का खुद से ही ध्यान रखते हैं, जिस कारण मैसूर का नाम सबसे स्वच्छ शहरों में आता है.
ट्रैकिंग ट्रक का इस्तेमाल
128.42 वर्ग किमी में फैले मैसूर ज्यादातर शहरों की तुलना में छोटा है. यहां भी कचरा संग्रहण की स्थिति दयनीय थी. इसके बाद सिविक बॉडी ने कचरा संग्रहण वाहन की ट्रैकिंग आरंभ कर दी. पांच साल पहले से ही यहां जीपीएस बेस्ड फ्लीट मैनेजमेंट सिस्टम लागू है. अभी सभी 352 कचरा संग्रहण वाहनों में जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम लगा हुआ है. कॉरपोरेशन वहां सभी ट्रकों की मॉनीटरिंग रियल टाइम पर करता है. मैसूर कॉरपोरेशन द्वारा सिविक वर्कर्स के लिए बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस सिस्टम लगाया गया है, ताकि समय पर वे काम पर आ सकें.
हर घर में टॉयलेट
मैसूर ने स्वच्छता और टॉयलेट्स की उपलब्धता में भी अधिक अंक लाया है. मैसूर पैलेस, मैसूर जू, चामुंपडी हिल्स में पर्यटकों व स्थानीय लोगों के लिए पब्लिक टॉयलेट हैं. वर्ष 2014 में मैसूर खुले में शौच की वजह से स्वच्छता की रैकिंग में ऊपर नहीं आ सका था, पर पिछले दो वर्षों में इस समस्या का समाधान किया गया. मैसूर के 98 फीसदी इलाकों में अंडरग्राउंड ड्रेन सिस्टम है. मैसूर के 75 प्रतिशत घर(दो लाख) से डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन की सुविधा है. हालांकि मैसूर ऐतिहासिक शहर है. 1880 से ही यहां एक स्वच्छता विभाग था. 1910 से ही यहां अंडरग्राउंड ड्रेनेज की व्यवस्था आरंभ की गयी थी.
शाही परिवार बना आम
जब क्लीन सिटी के लिए मैसूर की रैकिंग आयी, तब मैसूर शाही परिवार की सदस्य प्रमोदा देवी वाडियार ने सबसे पहले सिटी कॉरपोरेशन कमिश्नर सीजी बेतसुरमाथ को फोन कर बधाई दी. शाही परिवार की प्रमोदा देवी ने स्वच्छता कैंपेन को लीड किया था. उनके साथ-साथ शाही परिवार के यदुवीर कृष्णदत्ता चुमराजा वाडियार ने भी सिटी को स्वच्छ रखने के लिए आम आदमी के साथ अभियान का नेतृत्व किया. अगस्त 2015 में टॉप रैंकिंग में आने के बाद ही कॉरपोरेशन वहां के स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय स्थापित कर काम कर रहा है. स्थानीय लोग शहर स्वच्छ रखने में सहयोग करते हैं. अब कॉरपोरेशन गंदगी फैलाने वालों और अलग-अलग कर कचरा नहीं देने वालों पर फाइन लगाने जा रहा है.
और इधर रांची में सड़क पर फेंकते हैं कचरा
मैसूर के लोग साफ-सफाई को लेकर जहां खुद जागरूक हैं, वहीं राजधानी रांची के लाेग घर से निकले कचरे को खुले में फेंकने से बाज नहीं आते हैं. यही कारण है कि राजधानी की किसी सड़क से अगर दिन के 10 बजे कूड़े का उठाव कर लिया जाता है, तो दोबारा उसी सड़क पर दिन के 11 बजे तक कूड़े का ढेर लग जाता है.
वाहनों की मॉनीटरिंग नहीं
रांची नगर निगम के द्वारा शहर में कूड़े के उठाव के लिए 150 से अधिक ट्रैक्टर, 30 से अधिक टाटा एस, डंपर व कॉम्पैक्टर को चलाया तो जाता है, परंतु इन वाहनों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. निगम के स्टोर कार्यालय से निकलने के बाद इन वाहनों ने कौन-कौन सी सड़कों पर कूड़े का उठाव किया या ये वाहन कहीं खड़े हैं, यह जानने की व्यवस्था निगम में अभी नहीं बनी है.
पब्लिक टॉयलेट नहीं
राजधानी में पब्लिक टॉयलेट सिस्टम की गंभीर कमी है. शहर की आबादी भले ही 13 लाख है, परंतु शहर की प्रमुख सड़कों पर केवल 12 टॉयलेट बने हुए हैं. इसके अलावा शहर के 20 हजार से अधिक मकान ऐसे हैं, जिनमें अपना शौचालय नहीं है. मैसूर में आज से 100 साल पहले सिवरेज ड्रेनेज सिस्टम को धरातल पर उतार दिया गया था. आज 100 साल बाद भी राजधानी रांची में सिवरेज ड्रेनेज योजना का काम शुरू तक नहीं हो पाया है. इस योजना के शुरू नहीं होने के कारण हल्की-सी बारिश में ही यहां की सड़कों पर जल जमाव व घरों में पानी घुसना प्रारंभ हो जाता है.
निगम और नागरिकों में कोई समन्वय नहीं
मैसूर नगर निगम के कर्मचारी जहां शहर के लोगों के घर में जाकर सूखे व गीले कचरे को अलग-अलग प्राप्त करते हैं, वहीं राजधानी के मात्र 30 प्रतिशत घर ही ऐसे हैं, जहां से निगम के कर्मचारी जाकर कूड़े का उठाव करते हैं. जागरूकता की कमी के कारण रांची के लोग गीले व सूखे कचरे को एक ही बाल्टी में डाल देते हैं. इतने कम घरों से कूड़ा का कलेक्शन किये जाने के कारण लोग अपने घर से निकलनेवाले कूड़े को या तो खाली स्थान में फेंक देते हैं या उस कूड़े को नाली में डाल देते हैं. फलस्वरूप शहर की नालियां भी जाम हो जाती हैं.

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