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जनादेश का विश्लेषण : क्षेत्रीय राजनीति का बदल रहा रूप, वोटरों के लिए अब मुद्दे महत्वपूर्ण

मंजेश राणा शोधार्थी, लोकनीति-सीएसडीएस लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण के दौरान जब मतदाताओं पूछा गया कि मतदान के वक्त उनके जेहन में कौन-सा एकमात्र मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण था, तो हर पांच में दो से भी अधिक यानी 43 फीसदी ने किसी न किसी आर्थिक मुद्दे का नाम लिया. उनके उत्तरों में ‘विकास तथा शासन’ से संबद्ध मुद्दों […]

मंजेश राणा

शोधार्थी, लोकनीति-सीएसडीएस
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण के दौरान जब मतदाताओं पूछा गया कि मतदान के वक्त उनके जेहन में कौन-सा एकमात्र मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण था, तो हर पांच में दो से भी अधिक यानी 43 फीसदी ने किसी न किसी आर्थिक मुद्दे का नाम लिया. उनके उत्तरों में ‘विकास तथा शासन’ से संबद्ध मुद्दों का स्थान इसके बहुत पीछे आया, जो हर दस में एक उत्तरदाता के लिए सबसे अहम था.
इस वर्ष आम चुनाव में जो मुद्दे सिर चढ़कर बोल रहे थे, साल के अंत तक उन्होंने अपनी प्रासंगिकता काफी हद तक खो दी. झारखंड के नतीजों का यह ठोस संकेत है कि राजनीति कथ्य अब आर्थिक एवं राज्यगत या स्थानीय मुद्दों की ओर मुड़ चुका है.
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण के दौरान जब मतदाताओं पूछा गया कि मतदान के वक्त उनके जेहन में कौन-सा एकमात्र मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण था, तो हर पांच में दो से भी अधिक यानी 43 फीसदी ने किसी न किसी आर्थिक मुद्दे का नाम लिया.
उनके उत्तरों में ‘विकास तथा शासन’ से संबद्ध मुद्दों का स्थान इसके बहुत पीछे आया, जो हर दस में एक उत्तरदाता के लिए सबसे अहम था. शिक्षा, स्वास्थ्य एवं ‘भ्रष्टाचार’ भी अहम सरोकारों के रूप में सामने आये. लोगों के आर्थिक वर्ग के आधार पर उनके उत्तरों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि निम्नतर एवं निर्धन वर्गों के लगभग हर दो में एक मतदाता ने आर्थिक मुद्दों को सर्वोपरि बताया.
झारखंड के मतदाताओं के लिए आर्थिक मुद्दों की अहमियत हमेशा से ही केंद्रीय रही है (जैसे लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा इस राज्य में इसके पूर्व किये गये सर्वेक्षणों के संकेत रहे हैं), पर वर्तमान सर्वेक्षण ने रघुवर सरकार की विफलता उजागर की.
उल्लेखनीय है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध एवं बहस के बीच भी मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता आर्थिक मुद्दों को लेकर ही रही. गहरे जाने पर यह तथ्य सामने आया कि सभी उत्तरदाताओं में 18 प्रतिशत और 18-25 वर्ष आयु वर्ग के 28 प्रतिशत के लिए मत देते वक्त बेरोजगारी एकमात्र सबसे बड़ा मुद्दा थी.
महंगाई अगला ऐसा मुद्दा थी, जिससे 16 प्रतिशत मतदाताओं का सर्वाधिक सरोकार था, जबकि छह प्रतिशत ने गरीबी को अपने मतदान का सबसे बड़ा मुद्दा बनाया.
मतदाताओं के लिए हालांकि आर्थिक मुद्दे सबसे अहम थे, पर मतदान में यह मजबूती से नहीं दिखा, क्योंकि आर्थिक मुद्दों को प्राथमिकता देनेवालों में 35 प्रतिशत ने भाजपा को मत दिया, जबकि 36 प्रतिशत के मत महागठबंधन के पक्ष में गये. इनमें शेष मत अन्य दलों को गये. इसका मतलब यह था कि बेरोजगारी एवं महंगाई से चिंतित होते हुए भी मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में मत देना उस हद तक नहीं चुना.
सच तो यह है कि जहां भाजपा का खास तौर से बुरा हाल रहा, वहां के मतदाताओं के लिए विकास एवं भ्रष्टाचार बड़े मुद्दे थे. प्रत्येक पांच में दो यानी 40 प्रतिशत ऐसे मतदाताओं ने महागठबंधन को वोट दिया, जो इसी सोच के मतदाताओं से भाजपा को प्राप्त मतों से 15 प्रतिशत अधिक था. जिन मतदाताओं ने ‘भ्रष्टाचार’ को सबसे अहम मुद्दा माना, उनमें 38 प्रतिशत ने महागठबंधन के पक्ष में मत दिये और केवल 21 प्रतिशत के मत भाजपा के पाले पड़े.
यह तथ्य भी दिलचस्प रहा कि जिन उत्तरदाताओं ने सीएए या एनआरसी को सबसे बड़ा मुद्दा समझा, उनका प्रतिशत महज 0.3 था और केवल 41 प्रतिशत मतदाताओं ने ही एनआरसी के विषय में सुन रखा था और ऐसे मतदाताओं में महागठबंधन पर भाजपा की बढ़त सिर्फ तीन प्रतिशत ही रही, जबकि जिन 59 प्रतिशत ने एनआरसी के विषय में कुछ भी नहीं सुना था, उनके बीच भाजपा पर महागठबंधन की बढ़त पांच प्रतिशत पर पहुंच गयी.
अगला मुद्दा, जिसके लाभ की उम्मीद भाजपा को थी, राम मंदिर का था. यहां भी, केवल 0.2 प्रतिशत मतदाताओं ने ही मत देते वक्त उसे अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना. मगर जब अयोध्या फैसले पर उन्हें अपनी राय अलग से बताने को कहा गया, तो 65 प्रतिशत अथवा प्रत्येक तीन में दो मतदाताओं ने उसे सही (45 प्रतिशत ने ‘पूर्णतः सही’ और 20 प्रतिशत ने ‘कुछ हद तक सही’) बताया, जबकि प्रत्येक आठ में एक यानी 13 प्रतिशत ने उसे सही नहीं समझा.
जो लोग फैसले के ‘पूर्णतः’ पक्ष में थे, उनके बीच भाजपा को महागठबंधन पर 20 प्रतिशत की बड़ी बढ़त रही. पर जिन लोगों ने उसे ‘कुछ हद तक सही’ माना, उनके बीच महागठबंधन को भाजपा पर 12 प्रतिशत की अच्छी बढ़त मिली.
स्थानीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों की बात करें, तो 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने वन अधिकार अधिनियम के बारे में सुन रखा था और उनमें 29 प्रतिशत ने बताया कि वे उसके अंतर्गत वन भूमि पर कृषि तथा आवास को लेकर अपने अधिकार का दावा पेश कर चुके हैं. इन दावेदारों में सिर्फ 31 प्रतिशत ने कहा कि अंततः उन्हें इसका लाभ मिला, जबकि 67 प्रतिशत के अनुसार उनका दावा या तो अस्वीकार कर दिया गया अथवा उन्हें अब तक भी लाभ हासिल नहीं हुआ.
लाभान्वित मतदाताओं में 34 प्रतिशत ने अपने मत भाजपा को दिये, जबकि महागठबंधन को केवल 19 प्रतिशत के मत मिले. जिन्हें इस अधिनियम के अंतर्गत लाभ नहीं मिला है, उनमें 43 प्रतिशत की एक बड़ी तादाद ने महागठबंधन को चुना, जबकि 33 प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया. आजसू ने भी 17 प्रतिशत मतों का अच्छा हिस्सा पाया.
मतदाताओं से पत्थलगड़ी के विषय में पूछा गया, तो उनमें से 34 प्रतिशत को इसकी जानकारी थी. इनमें जहां 35 प्रतिशत ने इसे सही करार दिया, वहीं 48 प्रतिशत ने इसे गलत बताया.
पर इस मुद्दे का उनके मत व्यवहार पर कोई उल्लेखनीय असर नहीं होता नहीं दिखा. छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट 1908 एवं संथाल परगनाज टेनेंसी एक्ट 1949 में विवादास्पद संशोधनों के बारे में पूछे जाने पर केवल 41 प्रतिशत ने ही माना कि उन्हें इन विवादों की जानकारी है. इनमें से 50 प्रतिशत इन संशोधनों के पक्ष में और 43 प्रतिशत विरोध में थे. संशोधनों के समर्थकों में 38 प्रतिशत का झुकाव भाजपा की ओर था, जो महागठबंधन के समर्थकों से नौ प्रतिशत अधिक था.
दूसरी ओर, इन संशोधनों के आलोचकों में 38 प्रतिशत महागठबंधन के पक्ष में और 32 प्रतिशत भाजपा की ओर झुके मिले. आजसू को इनके बीच 13 प्रतिशत का समर्थन मिला. इससे स्पष्ट है कि राज्य में भाजपा के एजेंडे का असर आर्थिक और स्थानीय मुद्दों के उस निर्णायक प्रभाव के सामने कमजोर रहा, जिसने झारखंड गठन के बाद पहली बार किसी चुनाव-पूर्व गठबंधन को बहुमत के पार पहुंचा दिया.
आर्थिक मुद्दे रहे झारखंड के मतदाताओं के लिए पहली प्राथमिकता
बेरोजगारी 18
कीमतों में वृद्धि 16
विकास और शासन 10
शिक्षा और स्वास्थ्य 10
भ्रष्टाचार 9
बुनियादी जरूरतें 7
गरीबी 6
राजनीतिक पसंद से संबंधित 4
अपराध एवं कानून व्यवस्था 4
आवास 3
किसानों की तबाही 2
जाति और आदिवासी पहचान से संबंधित 2
आतंकवाद और नक्सलवाद 2
हिंदुत्व से संबंधित <1
पर्यावरण 1
अन्य मुद्दे 1
एनआरसी और सीएए <1
कोई जवाब नहीं 5
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- चुनाव में वोट करने के दौरान आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा क्या था?
सबसे महत्वपूर्ण मतदान मुद्दे के रूप में गरीबों ने आर्थिक मुद्दे का नाम लिया
आर्थिक वर्ग वे लोग जिनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मतदान मुद्दे के रूप में आर्थिक मुद्दा रहा (संख्या प्रतिशत में)
गरीब 50
निम्न 45
मध्यम 41
अमीर 39
एक-चौथाई से भी ज्यादा युवाओं के लिए बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था
वे लोग जिन्होंने कहा कि बेरोजगारी उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था. (संख्या प्रतिशत में)
25 वर्ष तक 28
26 से 35 वर्ष 20
36 से 45 वर्ष 13
46 से 55 वर्ष 14
56 वर्ष से ऊपर 11
40 प्रतिशत लोगों ने वनाधिकार कानून (एफआरए) के बारे में सुना था और इनमें से 29 प्रतिशत लोगों ने अपने अधिकार का दावा भी किया है
एफआरए के बारे में सुना 40
नहीं सुना 60
(अगर सुना) तो क्या आपने एफआर के तहत दावा किया है?
हां, दावा किया है 29
नहीं, दावा नहीं किया है 71
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- क्या आपने वनाधिकार कानून के बारे में सुना था?
पूछा गया सवाल- क्या आप ने या आपके घर के किसी सदस्य ने एफआरए के तहत वन भूमि की खेती / बस्ती पर अपने अधिकार का दावा किया है?
अयोध्या फैसले के समर्थन में दो-तिहाई लोग
अयोध्या फैसला पूरी तरह सही था 45
अयोध्या फैसला कुछ हद तक ठीक था 20
अयोध्या फैसला कुछ हद तक गलत था 6
अयोध्या फैसला पूरी तरह गलत था 7
कोई जवाब नहीं 23
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- हाल में आये अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में आपकी राय क्या है? आप इसे गलत मानते हैं या सही?
सिर्फ 31 प्रतिशत लोग जिन्होंने एफआरए के तहत अपना दावा किया था, उन्होंने कहा कि उनके दावे को स्वीकार किया गया था और उससे वे लाभान्वित हुए
एफआरए के तहत दावा किया और लाभान्वित हुए हैं. 31
एफआरए के तहत दावा किया, लेकिन लाभान्वित नहीं हुए हैं. 67
कोई जवाब नहीं 2
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- (एफआरए के तहत अगर दावा किया) : आपके दावा करने के बाद क्या आप ने या आपके परिवार के किसी सदस्य ने वन भूमि पर खेती / निवास करने का अधिकार पाया?
छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के बारे में ज्यादातर लोगों ने नहीं सुना था, लेकिन उनमें से जिन लोगों ने आधा-अधूरा सुना था, उन्होंने उसका समर्थन किया.
सीएनटी एक्ट संशोधनों के बारे में सुना था 41
अधिनियम के बारे में नहीं सुना था 59
(अगर सुना था) तो क्या आप अधिनियम में संशोधन का समर्थन या विरोध करते हैं?
समर्थन 51
विरोध 43
कोई जवाब नहीं 6
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- क्या आप ने सीएनटी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में संशोधन के प्रयासों के बारे में सुना था?
पूछा गया सवाल- आप इस संशोधन प्रयासों का समर्थन करते हैं या विरोध?
34 प्रतिशत लोगों ने पत्थलगड़ी आंदोलन के बारे में सुना था और इनमें से 35 प्रतिशत ने माना कि यह सही है
पत्थलगड़ी के बारे में सुना? 34
पत्थलगड़ी के बारे में नहीं सुना 66
(अगर सुना था) तो पत्थलगड़ी सही है या गलत?
पत्थलगड़ी सही है 35
पत्थलगड़ी गलत है 48
कोई जवाब नहीं 17
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- क्या आपने पत्थलगड़ी के
बारे में सुना है?
पूछा गया सवाल- पत्थलगड़ी को आप सही
मानते हैं या गलत मानते हैं?
पांच में से दो ने एनआरसी के
बारे में सुना था
एनआरसी के बारे में सुना था 41
नहीं सुना था 59
नोट – संख्याएं प्रतिशत हैं.
पूछा गया सवाल- क्या आपने एनआरसी के बारे में सुना है?

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