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सत्ता विरोधी भावना का फायदा मिला झामुमोनीत गठबंधन को

सीएसडीएस और लोकनीति से जुड़े शोधार्थी श्रेयस सरदेसाई मंजेश राणा ज्योति मिश्रा प्रभात खबर चुनाव विश्लेषण में महारत रखनेवाली संस्थाओं सीएसडीएस और लोकनीति के विद्वानों की मदद से झारखंड के जनादेश को समझने की कोशिश कर रहा है. ‘जनादेश विश्लेषण’ शृंखला की दूसरी कड़ी में आज उन मुख्य पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डाली गयी […]

सीएसडीएस और लोकनीति से जुड़े शोधार्थी
श्रेयस सरदेसाई
मंजेश राणा
ज्योति मिश्रा
प्रभात खबर चुनाव विश्लेषण में महारत रखनेवाली संस्थाओं सीएसडीएस और लोकनीति के विद्वानों की मदद से झारखंड के जनादेश को समझने की कोशिश कर रहा है. ‘जनादेश विश्लेषण’ शृंखला की दूसरी कड़ी में आज उन मुख्य पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डाली गयी है जिनके चलते रघुवर दास सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा और झामुमो-कांग्रेस-राजद ने बेहतरीन प्रदर्शन किया.
हालांकि झारखंड में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के विरुद्ध जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी महागठबंधन की आसान जीत के कई कारण हैं, पर यदि व्यापक अर्थों में विचार किया जाए, तो इसकी चार प्रमुख वजहें हैं. पहली और सबसे अहम यह कि आर्थिक कारणों एवं भ्रष्टाचार को लेकर मतदाताओं में राज्य सरकार के विरुद्ध एक गहरा असंतोष व्याप्त था.
दूसरी, मैदान में कई अन्य विपक्षी पार्टियों के होते हुए भी रघुवर दास सरकार की विदाई चाहनेवालों के एक बड़े हिस्से का समर्थन हासिल करने में महागठबंधन सफल रहा. तीसरी, महागठबंधन के अंतर्गत कम से कम दो पार्टियां- जेएमएम एवं कांग्रेस अपने मतदाताओं के मत एक दूसरे को स्थानांतरित करने में कामयाब रहीं; और चौथी, मतदाताओं में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज के प्रति एक समांतर असंतोष भी रहा. ‘सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ के लोकनीति कार्यक्रम के द्वारा झारखंड में 2,700 मतदाताओं के साथ किये गये मतदान-पश्चात सर्वेक्षण के दौरान एकत्र मतदान व्यवहार तथा नजरिये के आंकड़ों के इस्तेमाल से इस आलेख में हमने इनमें से प्रत्येक कारक की पड़ताल की कोशिश की है.
यह सर्वेक्षण मतदान के एक या दो दिन बाद इनमें से प्रत्येक मतदाता के घर पर उनके साथ आमने-सामने के एक विस्तृत इंटरव्यू के माध्यम से संपन्न किया गया, जिसके द्वारा हमने न केवल यह पता करने की कोशिश की कि उन्होंने अपना मत किसे दिया, बल्कि यह भी कि उन्होंने वैसा क्यों किया.
सात महीनों में तेजी से बढ़ी रघुवर सरकार से नाराजगी
जैसा हमने पहले ही बताया, मतदाताओं में रघुवर दास नीत भाजपा सरकार के प्रदर्शन के प्रति गहरा असंतोष मौजूद था. जहां 24 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इसके प्रदर्शन पर पूर्ण असंतोष प्रकट किया, वहीं 31 प्रतिशत ने भी कुछ हद तक असंतोष अभिव्यक्त किया.
इस प्रकार, कुल मिलाकर 55 प्रतिशत मतदाता (जो एक बहुमत था) इस सरकार से असंतुष्ट पाये गये. इसके विपरीत, 39 प्रतिशत मतदाताओं ने इस सरकार के कामकाज से अपनी संतुष्टि का इजहार किया-13 प्रतिशत पूर्णतः संतुष्ट थे, जबकि 37 प्रतिशत कुछ हद तक संतुष्ट थे. बाकी मतदाताओं ने इस संबंध में कोई राय नहीं प्रकट की.
यहां जो कुछ महत्वपूर्ण है, वह यह कि न केवल यह असंतोष वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों के वक्त हेमंत सोरेन सरकार के विरुद्ध दर्ज असंतोष से ऊंचा है, बल्कि चालू वर्ष में संपन्न लोकसभा चुनावों के समय लोकनीति द्वारा ही संचालित सर्वेक्षण के दौरान राज्य सरकार के विरुद्ध 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा व्यक्त असंतोष से भी 18 प्रतिशत बिंदु अधिक है.
इस प्रकार सात महीने की छोटी अवधि में ही रघुवर सरकार से लोगों का असंतोष काफी अधिक तेजी से बढ़ा. और जैसा यह हमारी बाद की रिपोर्ट में प्रकाशित होगा, ऐसा मुख्यतः बेरोजगारी एवं मूल्यवृद्धि जैसी आर्थिक वजहों से ही हुआ. एकमात्र कुर्मी जाति को छोड़कर एक भी दूसरा जातीय समुदाय नहीं था, जिसमें संतोष का पलड़ा असंतोष से अधिक भारी था. जहां यह असंतुष्टि संतालों और मुसलमानों में सबसे ज्यादा थी, वहीं यह भाजपा के कट्टर मतदाता वर्ग अगड़ी जातियों में भी संतोष से अधिक वजनी थी.

झारखंड सरकार के काम से असंतुष्ट मतदाता गठबंधन की ओर गये

राज्य सरकार से न केवल अधिक असंतोष ही था, बल्कि इसका नतीजा सत्तारूढ़ विरोधी भावना अथवा इस सरकार को सत्ताच्युत करने की इच्छा के रूप में भी सामने आया.
जब मतदाताओं से इस मतदान-पश्चात सर्वेक्षण में यह पूछा गया कि वे रघुवर सरकार की सत्ता-वापसी चाहते हैं अथवा नहीं, तो मतदाताओं के आधे हिस्से (50 प्रतिशत) ने ना में उत्तर दिया, जबकि केवल एक-तिहाई (34 प्रतिशत) ने सरकार के वापस आने की इच्छा दिखाई. 16 प्रतिशत से अधिक ने कोई इच्छा प्रकट न की.
इससे भी ज्यादा अहम यह था कि सरकार को सत्ताच्युत करने की यह बलवती इच्छा विपक्षी पार्टियों में उतनी बुरी तरह विभाजित नहीं हुई, जैसी भविष्यवाणी कुछ लोगों ने की थी. जहां 9 प्रतिशत सरकार-विरोधी मतदाताओं ने आजसू के पक्ष में, 7 प्रतिशत ने जेवीएम के लिए और 20 प्रतिशत ने अन्य दलों को मत दिया, वहीं 57 प्रतिशत के बहुमत में (या लगभग प्रत्येक 5 में 3) मतदाताओं ने महागठबंधन के पक्ष में अपना मत दर्ज किया. यदि सत्तारूढ़-विरोधी यह भावना महागठबंधन के पक्ष में एकजुट नहीं होती, तो परिणाम बहुत भिन्न भी हो सकता था.
पांच में से तीन मतदाताओं ने महागठबंधन के पक्ष में मत दिया
महागठबंधन भाजपा आजसू को जेवीएम अन्य को
को मत दिया को मत दिया मत दिया को मत दिया मत दिया
भाजपानीत राज्य सरकार को
एक और मौका नहीं (50 प्रतिशत) 57 7 9 7 20
भाजपानीत राज्य सरकार को
एक और मौका (34 प्रतिशत) 7 81 5 1 5
कोई उत्तर नहीं (16 प्रतिशत) 24 14 11 11 40
सभी आंकड़े प्रतिशत में
गठबंधन के घटक दलों ने एक-दूसरे को अच्छे से ट्रांसफर कराया अपना वोट
महागठबंधन की जीत का अगला अहम कारण यह था कि कम से कम दो घटकों, जेएमएम और कांग्रेस के बीच अपने मतों का सुचारु स्थानांतरण संपन्न हुआ, जिसमें खासकर पारंपरिक कांग्रेस मतदाता महागठबंधन के प्रति सर्वाधिक निष्ठावान रहे.
इस सर्वेक्षण ने इसके साक्ष्य प्रदान किये कि कांग्रेस द्वारा लड़ी गयी सीटों में जहां 61 प्रतिशत पारंपरिक जेएमएम मतदाताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों को मत दिये, वहीं जेएमएम द्वारा लड़ी गयी सीटों पर 76 प्रतिशत पुराने कांग्रेस मतदाताओं ने जेएमएम उम्मीदवारों को मत दिये. चूंकि यह सर्वेक्षण राजद द्वारा लड़ी गयी केवल एक सीट को ही शामिल कर सका, हम राजद द्वारा लड़ी गयी सीटों में मत स्थानांतरण के विषय में कुछ अधिक कहने में असमर्थ हैं. पर उपलब्ध सीमित साक्ष्य के अनुसार, यह प्रतीत होता है कि वहां भी कांग्रेस मतदाताओं ने महागठबंधन उम्मीदवार के प्रति मजबूत उत्साह दिखाया, जो जेएमएम मतदाताओं से ज्यादा था.
इस तरह, इस चुनाव में आरजेडी के बुरे प्रदर्शन का एक आंशिक कारण यह हो सकता है कि पुराने जेएमएम मतदाताओं ने उसे ऊंचे अनुपात में अपने मत नहीं दिये. सर्वेक्षण के इस निष्कर्ष का समर्थन वास्तविक परिणामों के अलावा इससे भी होता है कि आरजेडी द्वारा लड़ी गयी सीटों पर उसे प्राप्त मत केवल 29.3 प्रतिशत यानी महागठबंधन के तीन घटक दलों में न्यूनतम थे. कांग्रेस ने जहां 34 प्रतिशत मत प्राप्त किये, वहीं जेएमएम को हासिल मतों का प्रतिशत सर्वोच्च यानी 37.5 था.
महागठबंधन साझीदारों के बीच मतों का स्थानांतरण
महागठबंधन भाजपा अन्य को
को मत दिया को मत दिया मत दिया
कांग्रेस द्वारा लड़ी गयीं सीटें
पारंपरिक कांग्रेस मतदाता 88 3 9
पारंपरिक जेएमएम मतदाता 59 9 32
जेएमएम द्वारा लड़ी गयीं सीटें
पारंपरिक कांग्रेस मतदाता 76 6 18
पारंपरिक जेएमएम मतदाता 84 7 9
आरजेडी द्वारा लड़ी गयीं सीटें *
पारंपरिक कांग्रेस मतदाता 99 – 1
पारंपरिक जेएमएम मतदाता 54 39 7
पारंपरिक आरजेडी मतदाता 94 4 2
नोट: सभी आंकड़े प्रतिशत में हैं; यहां पारंपरिक मतदाता वे हैं, जिन्होंने बताया कि वे अथवा उनके पारिवारिक सदस्य पिछले 2-3 चुनावों से उसी दल को मत देते रहे हैं.
*कृपया यह जानते हुए पढ़ें कि इस हेतु सैंपल का आकार छोटा था.
आरजेडी को अपनी सीटों पर अपेक्षाकृत कम वोट
पार्टी लड़ी गयीं जीती गयीं मत लड़ी गयीं
सीटें सीटें (%)सीटों में मत (%)
जेएमएम 43 30 18.7237.47
भाजपा 79 25 33.3734.10
कांग्रेस 31 16 13.8833.99
जेवीएम 81 3 5.455.45
आजसू 53 2 8.1012.03
आरजेडी 7 1 2.7529.83
सीपीआइ-एमएल (एल) 14 1 1.155.92
एनसीपी 7 1 0.424.73
स्रोत: निर्वाचन आयोग के आंकड़े

लोस चुनाव बाद गिरी केंद्र सरकार की लोकप्रियता

इस सर्वेक्षण ने उत्तरदाताओं में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी पिछले छह माह में खासा मोहभंग प्रदर्शित किया, जिसकी भाजपा की इस हार में अपनी भूमिका लगती है. मोदी सरकार से असंतुष्टों का प्रतिशत 47 तक पहुंच गया. यह संख्या उतनी ही थी, जितनी मोदी सरकार से संतुष्टों की संख्या थी, जो उससे विशुद्ध (नेट) संतुष्टों (संतुष्टि घटाव असंतुष्टि) की संख्या शून्य पर ले जाती है.

यह दो वजह से अहम है: पहला, 2014 में जब मई में संपन्न लोकसभा चुनावों के सात माह बाद झारखंड ने विधानसभा चुनावों में मतदान किया था, तो मोदी सरकार के प्रति विशुद्ध संतुष्टि स्तर अब से कहीं अधिक यानी 64 प्रतिशत बिंदु (80 प्रतिशत संतुष्ट और केवल 16 प्रतिशत असंतुष्ट) ऊंचा था. दूसरा, इस वर्ष मई के मुकाबले, मोदी सरकार की रेटिंग काफी नीचे आयी प्रतीत होती है, क्योंकि उस वक्त संचालित लोकनीति सर्वेक्षण के दौरान झारखंड में मोदी सरकार से संतुष्टि का प्रतिशत 76 था. सिर्फ सात महीनों के अंदर ही, इसमें 30 प्रतिशत बिंदु की कमी आ गयी.

यह भी तब हुआ है, जब भाजपा ने धारा 370, अयोध्या एवं नागरिकता संशोधन अधिनियम के द्वारा अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाया है. सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि प्रत्येक तीन में एक (36 प्रतिशत) मतदाता केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों ही से असंतुष्ट था. ऐसे मतदाताओं में भाजपा का मत-हिस्सा केवल 10 प्रतिशत रहा, जबकि महागठबंधन के मत-हिस्से ने 51 प्रतिशत की ऊंचाई का स्पर्श किया.

जो एक और तथ्य अहम था, वह यह कि मोदी सरकार तथा रघुवर सरकार दोनों के प्रदर्शनों को मतदाताओं द्वारा भाजपा के विधायकों के प्रदर्शनों से अधिक नकारात्मक करार दिया गया.

सर्वेक्षण द्वारा आच्छादित सीटों में भाजपा विधायकों से कुल असंतुष्टि 43 प्रतिशत थी, जो रघुवर सरकार के प्रति असंतुष्टि से 12 बिंदु नीचे और मोदी सरकार से असंतुष्टि की अपेक्षा 4 बिंदु कम थी. इस तरह, झारखंड में भाजपा की हार पूरी तरह सिर्फ राज्य सरकार के बुरे प्रदर्शन की वजह से ही नहीं हुई, बल्कि कुछ हद तक भाजपा/मोदी के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर किये गये प्रदर्शन से भी हुई है. जहां नतीजे तय करने में स्थानीय कारकों ने अधिक अहम भूमिका निभाई, वहीं मोदी सरकार को भी अपने हिस्से का दोष स्वीकार करना ही चाहिए. नहीं तो उसे दूसरे राज्यों में भी हार का सामना करना पड़ सकता है.

केंद्र सरकार से घटती गयी संतुष्टि

2019 2019 2014

विधान सभा लोक सभा विधान सभा

मोदी सरकार से पूर्ण संतुष्ट 15 24 31

कुछ हद तक संतुष्ट 32 52 49

कुछ हद तक असंतुष्ट 32 15 10

मोदी सरकार से पूर्ण असंतुष्ट 15 8 6

कोई उत्तर नहीं 5 1 4

आंकड़े प्रतिशत में

विधायकों से संतुष्टि अपेक्षाकृत ठीक

संतुष्टि असंतुष्टि

पूर्ण कुछ कुछ पूर्ण

हद तक हद तक

कांग्रेस विधायकों से संतुष्टि 13 56 216

जेएमएम विधायकों से संतुष्टि 15 39 3011

भाजपा विधायकों से संतुष्टि 10 46 2716

आजसू विधायकों से संतुष्टि 9 57 2114

जेवीएम विधायकों से संतुष्टि 12 30 1838

आंकड़े प्रतिशत में

छा गया प्रश्न: केंद्र की भाजपा/एनडीए सरकार के प्रदर्शन से

आप संतुष्ट हैं या असंतुष्ट?

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