संजय
सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट
रांची : वर्ष 2021 तक झारखंड में 60 वर्ष से अधिक उम्रवाले बुजुर्गों की संख्या करीब 37 लाख हो जायेगी. भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट (2018-19) के अनुसार, 2021 तक झारखंड में बुजुर्गों की आबादी कुल आबादी (15 फीसदी डिकेडल ग्रोथ के साथ करीब 3.78 करोड़) का 9.7 फीसदी होगी. वहीं, पांच साल बाद 2026 तक राज्य में कुल अाबादी का 11.3 फीसदी बुजुर्ग होंगे.
जनगणना-2011 के अनुसार, राज्य की कुल आबादी 3.29 करोड़ थी. इनमें से बुजुर्ग करीब 22 लाख (6.7 फीसदी) थे. मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 60 वर्ष या अधिक उम्रवाले बुजुर्गों की संख्या झारखंड में 23.56 लाख हो गयी थी. यह कुल आबादी का 8.3 फीसदी थी.
दरअसल बुजुर्गों की बड़ी व बढ़ती संख्या सरकार व समाज दोनों से उनकी बेहतर देखभाल की मांग करती है. अपने घर परिवार के साथ अनुकूल परिस्थितियों में रह रहे वृद्धों को छोड़ दें, तो बुजुर्गों की एक बड़ी तादाद मुश्किलों में जी रही है. पर इनके कल्याण तथा जीवन जीने की सहूलियत पर गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा.
राज्य सरकार अभी 9.89 लाख बुजुर्गों को, जो बीपीएल हैं, वृद्धा पेंशन देती है. पर महंगाई के इस दौर में एक हजार रुपये प्रति माह के इस पेंशन की बदौलत जीवन बसर मुश्किल है. खास कर बुजुर्गों का, जिन्हें जीवन की इस संध्या में बीमारियों की एक पूरी फेहरिस्त से जूझना पड़ता है. सर्वाधिक जरूरी मोबाइल क्लिनिक, मोबाइल मील (भोजन) वैन तथा मोबाइल लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं सरकारी या निजी क्षेत्र में अभी बहाल होनी बाकी है.
बुजुर्गों को नहीं मिल पाता है उचित सम्मान
समाज विज्ञानियों के अनुसार, एकल परिवार का बढ़ता चलन तथा परिवारों की बदलती जीवनशैली से बुजुर्गों को न तो वह सम्मान मिल पाता है और न ही वैसी देखभाल, जिसके वे हकदार हैं. जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेंटेंसी) बढ़ने से परिवार के बुजुर्गों को अब लंबी देखभाल की जरूरत पड़ती है.
आजादी के वक्त 1947 में जहां भारतीय लोगों की औसत उम्र महज 32 साल थी, अब 67-68 साल हो गयी है. लंबी उम्र के दौरान बुजुर्गों की परेशानी तब शुरू होती है, जब परिवार के लोग उन्हें बोझ मानने लगते हैं. द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर अॉफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट-2007 के प्रावधानों का पालन तथा इसका प्रचार-प्रसार भी एक मुद्दा है.
करीब 60 फीसदी बुजुर्ग नाखुश
बुजुर्गों के लिए सीनियर सिटीजन होम, जीवन जीने का एक समझौता है . डीएवी नंदराज स्कूल परिसर स्थित होम में रह रहे करीब 60 फीसदी बुजुर्गों ने बताया था कि वे अपने पारिवारिक माहौल में विभिन्न कारणों से नाखुश थे. इसलिए सीनियर सिटीजन होम को रहने के लिए चुना.
वहीं, शेष 40 फीसदी बुजुर्गों को उनकी संतान या परिवार ने ही यहां पहुंचा दिया है. इधर, हटिया के होम (अपना घर) में रह रही करीब 25 महिलाओं में से ज्यादातर घरेलू झगड़े से तंग आकर घर से निकल गयीं या निकाल दी गयी हैं.
सीनियर सिटीजन होम पर्याप्त नहीं
सरकार राज्य भर में सिर्फ सात सीनियर सिटीजन होम का संचालन करती है. वहीं पांच होम बनाये जाने हैं. रांची के चिरौंदी में एक सीनियर सिटीजन होम बना है. पर अभी इसका संचालन नहीं हो रहा है.
समाज कल्याण विभाग की वित्तीय सहायता से रांची के हटिया में महिलाओं के लिए एक सीनियर सिटीजन होम (अपना घर) संचालित है. यह भवन निजी है. दरअसल राज्य भर में वृद्धा आश्रम की संख्या अपर्याप्त है. निजी क्षेत्र में भी होम हैं, पर हर माह दो से चार हजार रुपये तक खर्च देना पड़ता है. एक साधारण या गरीब पृष्ठभूमि के बुजुर्ग के लिए यह खर्च उठाना मुश्किल है.
होम संचालकों व वृद्धों की मांग
सरकार सभी जिलों में पर्याप्त सुविधाओं वाला सीनियर सिटीजन होम बनाए
प्राइवेट होम में रहने के लिए गरीब व असमर्थ वृद्धों को आर्थिक मदद दे सरकार
सरकारी अस्पतालों में सीनियर सिटीजन को ओपीडी व इनडोर में प्राथमिकता दी जाये
सरकारी व निजी क्षेत्र में संचालित होम तक मुफ्त में जरूरी दवाएं पहुंचाए सरकार
सरकारी योजनाएं
60 वर्ष व अधिक उम्र के बुजुर्गों को
वृद्धा पेंशन
जिन्हें पेंशन नहीं मिल रहा, उन्हें अन्नपूर्णा योजना के तहत 10 किलो चावल मुफ्त
बीपीएल बुजुर्गों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना
सरकारी सीनियर सिटीजन होम
संचालित : रांची, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, देवघर तथा प.सिंहभूम
जहां बनने हैं : चिरौंदी, रांची (पूर्ण पर असंचालित), सिमडेगा, गढ़वा, बोकारो व लोहरदगा.