रांची : झारखंड की राजधानी रांची का जगन्नाथपुर मंदिर पुरी की तरह ही रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है. जगन्नाथपुर मंदिर के संस्थापक के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी लाल प्रवीर नाथ शाहदेव ने बताया कि 1691 में बड़कागढ़ में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था.

ठाकुर एनीनाथ शाहदेव अपने नौकर के साथ पुरी गये थे. नौकर भगवान का भक्त बन गया और कई दिनों तक उनकी उपासना की. एक रात्रि वह भूख से व्याकुल हो उठा. मन ही मन प्रार्थना की कि भगवान भूख मिटाइये. उसी रात भगवान जगन्नाथ ने रूप बदल कर अपनी भोगवाली थाली में खाना लाकर उसे खिलाया.
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नौकर ने पूरी आपबीती ठाकुर साहब को सुनायी. उसी रात भगवान ने ठाकुर को स्वप्न में कहा कि यहां से लौटकर मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो. पुरी से लौटने के बाद एनीनाथ ने पुरी मंदिर की तर्ज पर रांची में मंदिर की स्थापना की.

लाल प्रवीर नाथ ने बताया कि मंदिर की स्थापना के साथ ही मानवीय मूल्यों की भी स्थापना कर समाज को जोड़ने के लिए हर वर्ग के लोगों को जिम्मेदारी दी गयी. उरांव परिवार को मंदिर की घंटी देने और तेल व भोग के लिए सामग्री देने की जिम्मेदारी दी गयी. आज भी बंधन उरांव और बिमल उरांव इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं.

मुंडा परिवार को झंडा फहराने, पगड़ी देने और वार्षिक पूजा की व्यवस्था की जिम्मेवारी दी गयी. रजवार और अहीर जाति के लोगों को भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाने की जिम्मेवारी दी गयी. बढ़ई परिवार को रंग-रोगन की जिम्मेवारी दी गयी. लोहरा परिवार रथ की मम्मत करते हैं. कुम्हार परिवार मिट्टी के बरतन की व्यवस्था करते हैं.