आजसू विधायक रामचंद्र सहिस जुगसलाई से दूसरी बार विधायक बने है़. झामुमो से राजनीतिक सफर की शुरुआत की और झामुमो के दुलाल भुइयां को हरा कर सियासी गलियारे में सबको चौंका दिया. झामुमो से राजनीतिक अनबन हुई और आजसू का दामन थाम लिया. आजसू ने भी इस नये चेहरे को 2009 में आजमाया.
श्री सहिस ने दमखम के साथ कोल्हान में आजसू का झंडा गाड़ दिया. 2014 में भी दुबारा विधानसभा का चुनाव जीते. श्री सहिस गरीब परिवार में पले-बढ़े और विपरित परिस्थितियों से जूझते हुए आगे बढ़े़ सातवीं क्लास में थे, तो पिता की मौत हो गयी. जमशेदपुर के रामकृष्ण मिशन उच्च विद्यालय में छात्रावास में रह कर पढ़ाई की़ कॉलेज की पढ़ाई में आर्थिक तंगी आड़े आ रही थी़ गांव में रहकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर आगे की पढ़ाई की़ गरीबी के कारण ग्रेजुशन नहीं कर सके.
सहिस बताते हैं : घर पर मां ने बड़ी मुश्किल से पालन पोषण किया है़ घर के हालात ऐसे थे कि पढ़ाई छोड़ने पड़े़ सहिस गांव में रह कर युवाओं की गोलबंदी में जुट गये़ विवेकानंद के नाम पर संस्था चलाते हुए सामाजिक काम शुरू किया़ संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्य करते हुए क्षेत्र में पहचान बनी़ 1997 में नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय सेवा कार्य से जुड़े.
सामाजिक काम में मन रम गया. इधर लोकप्रियता बढ़ी, तो समस्याओं को लेकर मुखर हुए़ युवाओं की टोली बना कर जनहित के मुद्दे पर सड़क पर आंदोलन शुरू किया़ बिजली, पानी सहित अन्य जनसमस्याओं के खिलाफ लड़ते हुए जनता के बीच विश्वास कायम किया़ विधायक सहिस कहते हैं : जुगसलाई की जनता ने पहले ही जिम्मेवारी दी थी़ अब सरकार में नयी जवाबदेही मिल रही है.
वह कहते हैं : पीछे के जीवन की ओर मुड़ कर देखता हूं, तो अपने संघर्ष याद आते है़ं मां ने जीवन में बहुत संघर्ष किया है. आज वह बहुत खुश होंगी़ पार्टी ने मुझ पर भरोसा किया है़ मेरी पार्टी हमेशा युवा को मौका देती रही है़ 34 वर्ष की आयु से राजनीति कर रहा हू़ं कभी नहीं सोचा था कि इस मुकाम पर पहुंच सकूंगा, लेकिन सबकुछ जनता के सहयोग से संभव हुआ है.
सब्जी व लकड़ी बेच कर मां ने सहिस को कराया मैट्रिक
पटमदा. रामचंद्र सहिस का जन्म 15 जनवरी 1975 को पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड के मुचीडीह गांव में किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम विजय सहिस व मां का नाम लख्खी सहिस है. लख्खी ने बताया कि 1987 में पति की मौत के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए बोड़ाम बाजार में सब्जी बेची. इसके अलावा दलमा जंगल से लकड़ी लाकर हाट-बाजार में बेचा करती थी. इससे किसी तरह दो वक्त की रोटी नसीब होती थी. यह भी बताया कि कभी-कभार तो रात के वक्त भूखे पेट सोना पड़ता था.
जमशेदपुर : 2009 में जब रामचंद्र सहिस काे आजसू पार्टी के सुप्रीमाे सुदेश महताे ने टिकट दिया था ताे उस वक्त काेई दावे के साथ नहीं कह सकता था कि जीत रामचंद्र सहिस की हाेगी. चुनाव मैदान में उतरे रामचंद्र सहिस के पास चुनाव प्रचार की बात तो दूर, खाने-पहनने आैर रहने तक के लिए पैसे नहीं थे.