रांची : सरकार की हर कल्याणकारी योजना के लिए ‘आधार’ कार्ड को अनिवार्य बनाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है और सरकारी धन की लीकेज कम हुई है. लेकिन, कई सामाजिक संगठनों का मानना है कि ‘आधार’ की अनिवार्यता से लोगों के अधिकार खतरे में हैं. आम आदमी के अधिकारों का हनन हो रहा है.
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भोजन का अधिकार अभियान, बगईचा, समाजवादी जन परिषद जैसे कई संगठनों ने कहा है कि सरकार के इस एक फैसले (सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ‘आधार’ को अनिवार्य बनाने से) से झारखंड में लोगों के राशन, पेंशन, मनरेगा, छात्रवृत्ति आदि जैसे अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि सरकारी सेवाओं के लिए ‘आधार’ अनिवार्य नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का केंद्र और राज्य सरकारें लगातार उल्लंघन कर रही हैं. एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि झारखंड में पिछले कुछ महीनों में आधार संबंधित समस्याओं के कारण भूख से लोगों की मौत इसका सबसे गंभीर उदहारण है.इतनाही नहीं, लोगों पर सरकारीसंस्थानों और विभागों द्वारा मोबाइल नंबर, बैंक खातेआदि को ‘आधार’ से जोड़ने का लगातार लोगोंपर दबाव बनाया जा रहा है.
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संगठनोंकाकहना है कि ‘आधार’ के माध्यम से सरकार द्वारा लोगों की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाने की संभावना को नाकारा नहीं जा सकता. ‘आधार’को अनिवार्य बनाने के सरकार के इस फैसले के दुष्परिणाम के बारे में सोमवार (15 जनवरी, 2018) को दिन में 12 बजे कई संगठनों के लोग XISS (जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंस) में एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे.
इसमें भोजन का अधिकार अभियान, बगईचा, समाजवादी जन परिषद व अन्य एनजीओ से जुड़े धीरज, तारामणि साहू, अशर्फी नंद प्रसाद, ज्यां द्रेज, ममता लकड़ा, बलराम, स्टेन स्वामी, सुनील मिंज जैसे लोग XISS में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे. इस दौरान ‘आधार’ के विरुद्ध एक जन आरोप पत्र भी जारी किया जायेगा.