रांची : झारखंड की राजधानी में आत्महत्या का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. चिंता की बात यह है कि अपनी जान लेने वाले सब युवा ही हैं. मंगलवार को भी दो लोगों ने अपनी जान दे दी, जिससे इलाके में सनसनी फैल गयी है. पुलिस और प्रशासन भी सकते में है. आत्महत्या की घटनाएं लालपुर थाना क्षेत्र और सुखदेव नगर थाना क्षेत्र में हुईं.
रांची के लालपुर थाना क्षेत्र के डंगराटोली स्थित मुंडा कोचा में प्रभात सुरीन (30) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सुबह कमरे से बाहर निकलने में उसे काफी देर हो गयी, तो परिवार के लोग उसे जगाने कमरे में पहुंचे. प्रभात को जगाने के लिए गये परिजन जैसे ही कमरे में गये, उनकी आंखें फटी रह गयीं. प्रभात सुरीन ने आत्महत्या कर ली थी. लालपुर पुलिस ने यूडी केस दर्ज कर शव को पोस्टमार्टम के लिए रिम्स भेज दिया.
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दूसरा मामला सुखदेव नगर थाना क्षेत्र का है.यहांएक मानसिक रूप से बीमार युवक ने जान दे दी. बताया जाता है कि न्यू मधु मधुकम रोड नंबर 6 में सुमित वर्मा ने आत्महत्या कर ली. चौधरी धर्मशाला के पास का रहने वाला था. मानसिक रूप से बीमार सुमित का रिनपास में इलाज चल रहा था. पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है.
हाल के दिनों में कई युवाओं ने आत्महत्या कर ली है. इसमेंस्कूल-कॉलेज के बच्चे भी शामिल हैं. युवाओं के जान देने के बढ़ते मामलों को देखते हुए सोमवार (27 नवंबर) को रांची पुलिस ने गर्ल्स हॉस्टल में एक कार्यक्रम का आयोजन कर उन्हें जागरूक किया. छात्राओं को मोटिवेट किया गया और उन्हें बताया गया कि किसी परेशानी से निजात पाने का एकमात्र रास्ता सुसाइड नहीं है.
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पुलिस अधिकारियों ने बच्चों को बताया कि मरने वाले इस दुनिया से चले जाते हैं, लेकिन उनके परिवार के लोग जिंदगी भर उन्हें याद करके रोते हैं. कई बार माता-पिता काभी जीना मुहाल हो जाता है. वे जिंदा तो रहते हैं, लेकिन तड़प-तड़प कर जिंदगी व्यतीत करते हैं. इसलिए, अगर जिंदगी में आसानी से मंजिल न मिले, तो यह न समझलेंकि यह जिंदगी की आखिरी कोशिशथी.
बच्चों को कहा गया कि वे बड़े लोगों की जीवनी पढ़ें और उससे प्रेरणा लें. एक बार असफल हो गये, तो जिंदगी और कई मौके देगी. कई रास्ते मिलेंगे,जिस पर चलकर आप सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचेंगे. आत्मघाती कदम उठाने से बचें, इससे दूर रहें.
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यहां बताना प्रासंगिक होगा वर्ष 2015 में नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें कहा गया था कि भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है. वर्ष 2015 में 8,934 विद्यार्थियों के आत्महत्या करने का आंकड़ा रिपोर्ट में दिया गया था, जो 5 साल पहले 39,775 था. आत्महत्या की कोशिश के मामलों को यदि आंकड़ों में शामिल कर लिया जाये, तो यह बहुत ज्यादा हो जायेगा.
इससे पहले वर्ष 2012 में लांसेट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या करने के मामले में भारत के युवा (15 वर्ष से 29 वर्ष तक की उम्र के) सबसे आगे हैं. रिपोर्ट में इस स्थिति को बेहद चिंताजनक बताते हुए कहा गया था कि इस स्थिति रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे.
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भारत में अलग-अलग स्तर पर युवाओं को आत्मघाती कदम उठाने से रोकने के लिए कई कदम उठाये गये हैं. इसमें स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक कोशिशें हो रही हैं. निराशा के दौर में विद्यार्थी आत्मघाती कदम न उठायें, इसके लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एग्जामिनेशन (CBSE), इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन (ICSE) और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीश (UGC) ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था अनिवार्य कर दी है.
रांची स्थित मानसिक चिकित्सालय रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकियैट्री एंड एलाईड साईंसेज (RINPAS) के डॉ सिद्धार्थनाथ सिन्हा कहते हैं कि सिर्फ काउंसलिंग से काम नहीं चलेगा. हर शिक्षण संस्थान में मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड की व्यवस्था होनी चाहिए. समय रहते बच्चों की मानसिक स्थिति का पता नहीं चलेगा, तो ऐसी घटनाओं को रोक पाना मुमकिन नहीं होगा.