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Friday, March 29, 2024

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… तो मैं सरकार की गर्दन पकड़ूंगा : सरयू राय

झारखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय की अपनी शैलीहै, अपना अंदाज है. उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि जिस पर वे सवाल उठा रहे हैं, उससे उसकी सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा. उन्हें फर्क इस बात से पड़ता है कि वे जो सवाल उठा रहे हैं उसका जनता पर क्या असर होगा. वे […]



झारखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय की अपनी शैलीहै, अपना अंदाज है. उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि जिस पर वे सवाल उठा रहे हैं, उससे उसकी सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा. उन्हें फर्क इस बात से पड़ता है कि वे जो सवाल उठा रहे हैं उसका जनता पर क्या असर होगा. वे संगठन और आंदोलन के आदमी रहे हैं और इसलिए आज भी वे खुद को एक सामाजिक कार्य करने वाला व्यक्ति मानते हैं, जो राजनीति के माध्यम से जनता के लिए काम करता है.वेदोटूककहते हैं राजनीति मेरापेशा नहीं, करियर नहींहै. राज्य से जुड़े कई विषयों को वे इस ढंग से उठाते हैं कि लगता है सरकार का ही एकअहम हिस्सा विपक्ष काकामकररहा है.अपनीइस शैली से वे कई बार विपक्षकेलिए भीस्पेस कम कर देते हैं.लेकिन,वे खुद मानते हैं कि यह उनकी जिम्मेवारी है. और, सरकार की छवि बेहतर रहे, इसके लिए यह जरूरी है. प्रभात खबर फेसबुक लाइव कार्यक्रम में उनसे प्रदेश, सरकार, संगठन व कई अन्य मुद्दों पर राहुल सिंह व पंकज पाठक ने शुक्रवार को लंबी बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत का अंश :



सवाल : सरायकेला-जमशेदपुर में बच्चा चोर की अफवाह में निर्दोष लोगों की हत्या हुई. उस पर जांच कमेटी बनी. अभी उसकी जांच रिपोर्ट आयी है. आपकी ही सरकार के अफसरों ने जांच की और आपने उस पर सवाल खड़े किये हैं?



जवाब : हमारी सरकार ने दो सदस्यीय जांच कमेटी बनायी थी. वहां के डिविजनल कमिश्नर और डीआइजी ने यह रिपोर्ट तैयार की. जब कोई कमेटी बनायी जाती है और जब काेई कमेटी सरकार बनाती है तो उद्देश्य यही होता है कि कमेटी उसके तह में जाये और रिपोर्ट तैयार करे, सही तथ्य बाहर लाये. लेकिन, जब दो दिन में रिपोर्ट आती है तो वह सर्वांगीण नहीं होती है. कुछ पहलुओं को छू दिया, बाकी छोड़ दिया. मैंने यही सवाल उठाया था कि सरकार को इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए. सरकार के पास ऑप्प्शन है कि वह कहे कि और जांच करनी चाहिए. जितनी जल्दी में यह रिपोर्ट तैयार की गयी थी, उससे भी जल्दी इसे स्वीकार कर लिया गया. नतीजा हुआ कि एक जिले के डीसी-एसपी सस्पेंड कर दिये गये. एेसे निर्णय लेने में सावधानी बरतनी चाहिए, तभी सरकार की विश्वसनीयता बढ़ती है.


मैंने कई बिंदुओं को दिया है और कहा है कि जांच करनी चाहिए. जमशेदपुर में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने की आज से कोशिश नहीं हो रही है. 2015 में भी हनुमान मंदिर पर पत्थर फेंकने की घटना हुई थी. उस समय भी कमिश्नर व डीआइजी को जांच का आदेश दिया गया था. इसी तरह झामुमो का स्थानीयता के सवाल पर बंद था, उसमें बस जला दी गयी थी. उस पर आज तक कोई इन्वेस्टीगेशन नहीं हुआ. पृष्ठभूमि इन घटनाओं के पीछे जो है, उसके तह में जाकर जांच करनी चाहिए. रिपोर्टों का आधार यह होना चाहिए कि आज जो घटना हुई वह आगे आने वाले समय में न हो. दो समुदायों में जो नफरत हो गयी है, उसे हम पाट दें और आगे आने वाले समय में वह नफरत नहीं हो, इस तरह की अनुशंसाएं होनी चाहिए.


मैंने मुख्यमंत्री से यह सवाल उठाया है. मैंने रिपोर्ट देखने के बाद मुख्यमंत्री को जांच के लिए लिखित रूप में पत्रभेजा है. इसकी सक्षम अधिकारी से जांच होनी चाहिए. ताकि जमशेदपुर में शांति व्यवस्था बनी रहे.



सवाल : जब इससे पहले धनबाद-बोकारो में ऐसी घटनाएं हो चुकी थीं, भले वहां इसकी संख्या कम थी, उसके बावजूद सरायकेला-जमशेदपुर में ऐसी घटना होना क्या कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है?



जवाब : कहीं न कहीं ऐसी घटनाएं होती होंगी. पुलिस प्रशासन व खुफिया विभाग से चूक हुई होगी. कहीं न कहीं ऐसी घटनाओं का माहौल पहले से बनता होता है. ऐसे में हम सावधानी से पहले ही उसे टाल दें. अगर अधिकारियों को ऐसी सूचनाएं मिलती हैं तो तुरंत उस पर काम करना चाहिए.



सवाल : टाटा स्टील लीज से जुड़े विषयों पर आप सवाल उठाते रहते हैं. आपकी उसमें कई आपत्तियां रही हैं?



जवाब : टाटा स्टील के बारे में 2005 -06 से मैं अपनी रायरखता रहा हूं. टाटा लीज करार का अक्षरश: पालन होना चाहिए. उसके पालन में कोताही होती है और सरकार ने इस समझौते में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की है कि अगर इसका पालन नहीं किया जाता है तो क्या करना चहिए.

मैंने टाटा स्टील के एमडी, वीपी से स्पष्ट रूप से कहा है कि इस समझौते में आपके उद्योग को चलाने को लेकर जो बिंदु हैं, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है. मेरा लेना-देना तब होता है, तब समझौते के अनुसार जनसुविधाएं मुहैया करानी होती है. सड़क ठीक रहे, स्कूल रहे, शिक्षा, स्वास्थ्य, पार्क, वेटनरी डॉक्टर रहे. इन सब में जब कोताही होती है तो मैं सवाल उठाता हूं. इस व्यवस्था में कंपनी की ओर से कोताही होती है तो सवाल उठाता हूं, ले-देकर डीसी ही एक ऑथिरिटी होते हैं. टाटा स्टील ने लीज समझौते में कहा है कि हम अपने खर्च पर ये सुविधाएं उपलब्ध करायेंगे. वह इससे बंधा है. अगर कोई टैक्स वसूलना होता है तो म्युनिसिपल एक्ट के द्वारा निर्धारित टैक्स ही लेना चाहिए. ऐसा नहीं होता, पैसे भी ज्यादा ले लिये जाते हैं और सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं. अपनी जनता को जनसुविधा उपलब्ध कराने के लिए अपनी सरकार से ही सवाल उठाऊंगा. उन पर दबाव डालूंगा. जनता के हितों पर कुठाराघात होगा तो उसे चुपचाप देखते रहना संभव नहीं है. मैंने एक मीटिंग बुलायी थी, वीपी नहीं थे तो नहीं हुई. लेकिन मैं स्पष्ट कहने वाला हूं सरकार से कि आप बात कर लीजिए. मैं यह स्पष्ट कहने वाला हूं कि टाटा स्टील कितनी सुविधा देगा, साल में कितना पैसा खर्च होगा, वह बता दे और अगर नहीं करेगा तो वह भी बता दे. और, नहीं करेगा तो मैं सरकार की गर्दन पकडूंगा कि साहब आपने समझौता कर दिया और उसका पालन नहीं हुआ तो यह आपका काम है. सुविधा देंगे या नहीं अगर नहीं देंगे तो सरकार देगी या नहीं.

सवाल : जैसा कि आपने कहा कि आप सरकार की गर्दन पकड़ेंगे. इसके पहले आप यह भी कह चुके हैं कि सरकार से आपका एक कदम बाहर ही रहता है. सरकार का हिस्सा होने के बावजूद ऐसा क्यों?

जवाब : सरकार एक उपकरण है, औजार है. जनता की सेवा करने के लिए. कई गलत फहमियां सरकार के बारे में होती हैं कि सरकार में बैठे व्यक्ति को खासकर जो कैबिनेट मंत्री हैं उन्हें अपना मुंह बंद रखना चाहिए और सही चीजें भी नहीं बोलनी चाहिए. मैं मानता हूं कि जो नियम-कानून संविधान के तहत बनते हैं, वो इसलिए बनते हैं कि राज्य की जनता को अधिकतम सुविधाएं मुहैया करायी जा सके और राज्य को लगातार विकास के रास्ते पर ले जायें इसमें कमी होने पर सवाल तो उठेगा ही. किसी दूसरी विभाग की समस्या होगी तो सवाल उठेगा. हमारी सरकार की कार्यपालिका नियामवली में उल्लेख है कि कोई मंत्री किसी दूसरे विभाग की फाइल नहीं मंगा सकता है, लेकिन किसी फाइल में कोई विषय वस्तु है तो उससे संबंधित जानकारी वह संबंधित विभाग से मंगा सकता है. मैं तो ऐसी हीसूचना मंगाता हूं और अपने कर्तव्य का पालन करता हूं. मैं दूसरे विभाग से कहता हूं कि ऐसा विषय है अपने विभाग से प्रतिवदेन दे दें. ऐसा होने से सरकार की छवि अच्छी होगी.

जहां तक मेरा यह कहना है कि मेरा एक पैर सरकार से बाहर रहता है तो मैं यह कहता हूं कि हम सभी सामाजिक कार्य से जुड़े रहे हैं, हमारे सामाजिक दायित्व हैं. सरकार में आ गये तो उन्हें छोड़ नहीं सकते. मेरा एक पैर सरकार में रहेगा दूसरा पैर जनसमस्याओं व जनता के अधिकार के साथ रहेगा. मैंने यह भी कहा है कि मेरे दोनों पैर सरकार में नहीं रह सकते हैं, जरूरत पड़े तो दोनों पैर बाहर रह सकते हैं.

सरकार में आना एक संयोग है. हम चुनाव लड़ते हैं, कमिटमेंट करते हैं और सरकार में आते हैं. लेकिन, हम 24 घंटे सरकार में तो नहीं रह सकते. कई ऐसे सवाल उठते हैं जो जनता की समस्याओं को लेकर होते हैं. उन सवालों में सरकार कोताही करेगी तो उसकी आलोचना भी होगी. इस आलोचना को हमें परामर्श के रूप में लेना चाहिए और जनता के दु:ख-दर्द को ठीक करना चाहिए. कोई सवाल उठाता है तो वह ठीक है या नहीं, कोई पद पर था तो उसने क्यों नहीं किया, यह कहने के बजाय नियम-कानून की जहां भी अवहेलना हो रही है, उसके लिए तो सरकार अगर जगेेगी नहीं तो फिर सरकार भी अपना काम नहीं कर रही है.

एेसे सवाल जो सरकार के भीतर हैं उसे उठाने के लिए कैबिनेट है, विधानसभा है, लेकिन जो आम जनता है, सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वे सवाल कहां उठायेंगे, उसके लिए आंदोलन करेंगे, प्रदर्शन करेंगे आलोचना करेंगे. यह अधिकार संविधान-लोकतंत्र में उन्हें मिला है. विरोधी विचार वाले के सवाल का भी समादर कर समाधान करें.

मेरे द्वारा इन्हें उठाने का मतलब यह नहीं कि हम सरकार के विरोध में हैं. जितनी बातें मैं उठाता हूं, मुश्किल से उसमें पांच प्रतिशत बातें बाहर जाती हैं. मैं कई सवाल उठाता हूं. ऐसा नहीं करना बईमानी होगी.



सवाल : मौजूदा समय में चुपचाप काम करने की बात कही जाती है. ऐसे में आप जो सवाल उठाते हैं, उससे सामाजिक सरोकार वाला व्यक्तित्व राजनीतिक सरोकार वाले व्यक्तित्व पर भारी पड़ता है. इससे आप किसी तरह का दबाव महसूस करते हैं?

जवाब : राजनीति हमारा पेशा नहीं है. हमने खुद के विचार में सामाजिक कार्य करना स्वीकार किया है. अगर हम राजनीति को पेशा बनायें, कैरियर बनायें तो प्रोफेशनल के तौर पर उस पर विचार करें. जितने मैंनेजमेंट संस्थान हैं, वे तो यही करती हैं कि क्या ऐसा करें कि व्यापार को नुकसान नहीं हो और हमारे व्यवसाय को फायदा हो. उन्होंने इसे स्वीकार किया है. अगर कोई इसीलिए राजनीति में आया है तो मैं उसकी आलोचना नहीं कर सकता हूं, लेकिन हमने तो सामाजिक कार्यकर्ता रहते हुए सामाजिक सरोकार अपने जीवन में चुना है और उसी को लागू सरकार में कराना चाहते हैं. एक चीज की ओर मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं – सामूहिक जिम्मेवारी. उससे हम अलग नहीं हो सकते हैं, जबतक सरकार में हैं, तबतक इसी जिम्मेवारी को समझते हुए काम करते हैं. जिस दिन लगेगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है उस दिन तय कर लेंगे कि सरकार में रहेंगे या नहीं रहेंगे. लेकिन, जबतक सरकार में हैं उस नाते न्यूनतम या अधिकतम जो भी वसूल हैं, उसका पालन मैं करता हूं. मुझे इससे कहीं कोई परेशानी नहीं होती है. मैं नफा-नुकसान की चिंता नहीं करता हूं… सरकार में हैं तो कई सुविधाएं हमें मिलती हैं, इतनी सुविधाएं मिलती हैं जिससे अधिक की जरूरत नहीं हैं. ये सब काम हैं तो लक्ष्मण रेखा का भी पालन करता हूं.



सवाल : सवालों को दूसरी ओर ले चलते हैं. आपने पिछले दिनों दामदोर यात्रा कि आपने नाराजगी प्रकट की और अफसरों को बुलाकार उन्हें कुछ कहा भी, अपनी नाराजगी जतायी. कुछ टिप्पणियां थीं. दामोदर कितना साफ हुआ है और क्या प्रगति हुई है?

जवाब : 2004 के लोकसभा चुनाव के समय मेरी ड्यूटी दामोदर के किनारे वाले क्षेत्र में लगी थी. मैंने देखा कि वहां पूरा पानी काला है और आसपास की जमीन भी काली है. तब हम पांच-छह लोग बैठे तो यह तय हुआ कि समस्या क्या है. उसे समझें-जानें. इसलिए दामोदर के उद्गम से लेकर कलकत्ता तक यात्रा की. उद्गम स्थल को लेकर आज भी भ्रम है, जितनी भी किताबों में पढियेगा तो उसमें मिलेगा कि वह पलामू की पहाड़ियों में है. दो-तीन साल हमें भी भ्रम था. हमलोग भी चंदवा से चढ़ते थे. पैदल चढ़ाई पर जाते थे. बाद में जानकारी मिली की राजस्व गांव चूल्हापानी गांव है, जो उद्गम स्थल है, फिर हमलोगों ने लोहदरगा की आेर से यात्रा शुरू की. उद्गम स्थल से कोलकाता तक हमने अध्ययन सह जागरूकता यात्रा की. उसमें हमारे कई मित्रों का सहयोग रहा. आरके सिन्हा हैं जो डाल्फिन मैन के नाम से जाने जाते हैं, गोपाल शर्मा हैं. इन सब लोगों से हमने कहा. इन्होंने अपनी प्रयोगशाला का सहारा लिया, हमारे साथ कार्यकर्ता थे. हमलोगों ने जगह-जगह जानकारियां प्राप्त की. वे (प्रदूषण करने वाले) इतने दृढ़ थे कि कहा कि यह संभव नहीं है. कहा गया कि जीरो डिस्चार्ज कैसे संभव है.

हमने डेटा इकट्ठा किया. फिर हमलोगों ने पर्यावरण दिवस के दिन पांच जून को बड़े प्रदूषकों के समक्ष धरना देना शुरू किया. हमलोग यही कहते थे कि गंगा एक्शन प्लान की तरह नदी साफ करने की हमारी धारणा नहीं है. हमें यह अनुभव हुआ कि यह धृष्टता है. हम जिसे मां कहते हैं उसकी सफाई करें. इन लोगों ने अपनी मां को मैला ढोने वाली मालगाड़ी बना दिया, उन पर हमें दबाव डालाना चाहिए कि वे उसे गंदा न करें. हर बरसात में नदी तो अपने आप को साफ करती है, बाकी आठ महीने हम उसे गंदा करते हैं. इसलिए जो गंदा करता है उसे रोकें. सरकार बनी, पीयूष गोयल मंत्री बने उनके यहां कहा. उन्होंने तर्क-वितर्क के बाद अफसरों से कहा कि आपलोग तीन महीने का एक्शन प्लान बनायें, रिपोर्ट दें. कुछ लोगों ने रिपोर्ट दी, कुछ ने नहीं दी. मैं दोबारा-तिबारा उनसे मिला. फिर सबों को निर्देश मिला, दबाव पड़ा. अब उन लोगों ने गंदगी गिराना बंद कर दिया. अब मुझे इस यात्रा में यह दिखा कि 90 प्रतिशत जगहों पर गंदगी गिराना बंद कर दिया गया, जहां बंद हुआ वहां पानी साफ दिख रहा है. इस बार छठ में कई लोगों ने मुझे फोन किया कहा कि पहली बार अनेक सालोें में पानी अब साफ मिला. दो जगहों पर गंदगी अब भी होती है. एक बोकारो स्टील है, वह दो बड़े नाले गिराता है, एक से लाल रंग और एक से काला रंग का पानी आता है. वह चंद्रपुरा पुल के निकट पानी गिराता है. मैंने उनकी मीटिंग की. उन्होंने कहा है कि फरवरी में हम इसे बंद कर देंगे. हमने कंपनियों को उनकी कॉलिनियों के जल-मल के बहाव को रोकने व उसके निबटान के दूसरे प्रबंध करने को कहा है, उसके लिए भी वे सहमत हो गये हैं.

एक नैतिक दबाव बनाकर इस प्रकार दामोदर 90 प्रतिशत साफ हुआ है. हम कह रहे हैं साफ हो गया है, दूसरे लोग कहेंगे साफ नहीं हुआ है. इसलिए हमने थर्ड पार्टी एसेसमेंट के लिए विशेषज्ञों की कल एक बैठक बुलायी है, जिसमें कई लोग शामिल होंगे. मैंने कहा है कि सैपलिंग करायेंगे, इसकी जांच होनी चाहिए. वे मान गये हैं कि जांच करायेंगे. ये लोग देखेंगे कि और इसे कैसे किया जा सकता है.



सवाल : मैं विधानसभा चुनाव के समय लाये गये भाजपा के घोषणा पत्र को पढ़ रहा था. यह घोषणा पत्र आपने ही तैयार किया था. इसमें कहा गया था कि झरिया में भूमिगत आग पर सरकार काम करेगी. झरिया तो एक प्रतीक है, यह स्थिति पूरे धनबाद कोयलांचल की है. अब तो वहां रेल लाइन भी बंद करा दी गयी?



जवाब : झरिया की आग पुरानी समस्या है. यह धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. कितने खरब का नुकसान राज्य को हो रहा है. हमलोग पढ़ते हैं कि दुनिया में बहुत सारी सक्षम एजेंसी हैं. जो भी उपाय किये गये वे नाकाफी साबित हुए, एक कहावत है कि मर्ज ज्यों ज्यों किया दर्द बढ़ता गया. यह तो इंतहां हो गयी कि रेल लाइन को बंद कर दिया गया है. इस पर बीसीसीएल और रेलवे विभाग के अफसर सोचें. इसमें जो भी खर्च हो. हमारे सांसद ने रेलमंत्री से भेंट की है, विकल्प के आश्वासन मिले हैं. लेकिन यह काम पहले हो जाना चाहिए. अब भी हो जाये तो जनता को कठिनाइयों से राहत मिल जाये.



सवाल : लेकिन घोषणा पत्र के अनुरूप राज्य सरकार ने आग बुझाने के लिए क्या किया?


जवाब : यह संबंधित विभाग से जुड़ा विषय है. वह हमें जवाब देने के लिए तो उत्तरदायी नहीं है. मुझे लगता है कि पार्टी को यह विषय देखना चाहिए.


सवाल : आपके मित्र नीतीश कुमार ने शराबबंदी को राष्ट्रीय विमर्श का विषय बना दिया है. बिहार की प्रेरणा से कई राज्य अपने-अपने स्तर पर जितना संभव हो इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं. वहीं, झारखंड में सरकार ही शराब बेचने की तैयारी में है. आपके इस पर विरोध के स्वर रहे हैं.



जवाब : मैंने मंत्री परिषद में इसका विरोध किया है. शराब बंद होना चाहिए. मैं जहां भी जाता हूं, महिलाओं का समूह आता है, शराब का विरोध करता है और वे बताते हैं कि उसके खिलाफ वे कैसा आंदोलन चला रहे हैं. शराबबंदी के लिए दो-तीन साल की एक कार्ययोजना बनानी चाहिए. युवा पीढ़ी को इससे नुकसान हो रहा है. सरकार को इस बात को समझना चाहिए.


सवाल : लिट्टीपाड़ा हार के बाद एक अलग तरह की सक्रियता संगठन के स्तर पर देखने को मिल रही है, केंद्र से लेकर राज्य तक. धनबाद में प्रदेश अध्यक्ष ने एक बयान दिया था कि सरकार में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए और उनकी बातें सुनी जानी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि इसको लेकर मुख्यमंत्री के साथ संगठन के कुछ वरिष्ठ लोगों की बैठक हुई है. क्या सरकार व संगठन में दूरी है या सबकुछ ठीक-ठाक है?

जवाब : पहले मैैं संगठन में सक्रिय रहता था. अब मैं उससे 100 प्रतिशत बाहर हूं, बाहर मतलब मेरे ऊपर संगठन की कोई जिम्मेवारी नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष या अन्य कोई पदाधिकारी मंत्री के नाते मुझसे बात करता है तो मैं यही कहता हूं कि एक कोर कमेटी बना देनी चाहिए. यह कमेटी सरकार से बात करे. समन्वय हो और यह तभी सार्थक होगा कि हम क्या सोचते हैं, क्या चाहते हैं. हमारे कार्यकर्ता क्या चाहते हैं, उस पर बात हो. ऐसे बात नहीं होती. कार्यकर्ताओं को लगता है कि हम सरकारी दल के हो गये. यानी हम सरकार के खिलाफ बाेल नहीं सकते हैं. लेकिन, कम से कम लगे तो कि हम सरकारी दल के हैं, हमारी बात सुनी जाये, बोलने का अवसर मिले, यह नहीं होने पर निराशा होती है.

लिट्टीपाड़ा तो झामुमो का दुर्ग रहा है और वह वहां जीत गया. हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे, उन्हें लगना चाहिए कि हम सरकारी दल के हैं. हम कुछ गलत बात कर रहे हैं तो उस पर सरकार साथ न दे. सरकार के नीचे का तंत्र काम कर रहा है या नहीं, कार्यकर्ता के माध्यम से इसकी जानकारी आ सकती है. अगर उसकी बात पर काम होता है तो उन्हें लगेगा कि उनका महत्व है.



सवाल : हाल के डेवलपमेंट से लग रहा है कि दिल्ली को 2019 की चिंता है. उनके लिए हर छोटी-छोटी बात अहम है. इसलिए उनकी सक्रियता संगठन के स्तर पर बढ़ी है.

जवाब : यह वाजिब है. एक बार सरकार आ गयी है, जिसे थोड़ा बहुमत है. यह सरकार दोबारा भारी बहुमत से आये इसके लिए अभी से कार्रवाई करनी होगी. अपने संदेश को नीचे के स्तर पर ले जाने के लिए बूथ स्तर पर रणनीति बनी है. पार्टी नीचे पूर्णकालिक कार्यकर्ता खड़ा कर रही है. इस सरकार ने देश को अलग दिशा देने का काम किया है. पार्टी इसके लिए सक्रिय है.



सवाल : आप झारखंड सरकार का खाद्य आपूर्ति मंत्रालय देखते हैं. राज्य में 40 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे हैं. आपलोगों ने कई पहल की है, डाकिया व्यवस्था, तकनीक का उपयोग, लेकिन ज्यां द्रेज जैसे अर्थशास्त्री सवाल उठा रहे हैं?

जवाब : मैं इन लोगों से बराबर विमर्श करता हूं. चाहे ज्यां द्रेज हों, बलराम हों व दूसरे लोग. उनकी बातों को सुनता हूं, लेकिन उनकी सभी बातों को लागू करना संभव नहीं होता है. वे बताते हैं कि उससे बेहतर ये उपाय है. मैं कई बार विभाग की बैठकों में उनको बुलाता हूं, और उनका मार्गदर्शन लेता हूं. ये जो एक्टिविस्ट हैं, वे जनता के बीच उनकी नब्ज पकड़ कर काम करते हैं.


उनकी प्राथमिकता जनता होती है, वे छिद्रान्वेषण करते हैं. हमारी सरकार अच्छा काम कर रही है, लेकिन उन्हें लगता है कि कहीं गड़बड़ी है तो उसे मैं संज्ञान में लेता हूं. हमने तकनीक का उपयोग किया है, इससे राशन व्यवस्था काफी ठीक हुई है. ज्यां द्रेज के इस पर सवाल हैं. साल भर हो जाये तो हमलोग इस पर विचार करें कि मशीन का तकनीक का उपयोग कितना कारगर रहा. वे कुछ जगह से सैंपल उठा कर काम करते हैं और उसे जनरलाइज करते हैं, इसे एवरेज करना उचित नहीं हैं, दूसरे जगह की स्थिति अलग हो सकती है.


हम मानते हैं कि जो काम हम नहीं कर पाते हैं, वे उसे करते हैं. हमारा ही काम को वे करते हैं.



सवाल : जाते-जाते राष्ट्रपति चुनाव पर एक सवाल. एनडीए ने रामनाथ कोविंद को मैदान में उतारा है, उनके विरुद्ध यूपीए ने मीरा कुमार को खड़ा किया है, क्या कहेंगे?


जवाब : दोनों अनुभवी उम्मीदवार हैं. बीजेपी विशेष रास्ते पर है, विशेष दिशा में चल रही है. और, उसमें जो राष्ट्रपति बने इसी मानसिकता का हो तो उसमें आसानी हो जायेगी. रामनाथ कोविंद योग्य व्यक्ति हैं उनकी योग्यता पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है. मीरा कुमार भी योग्य हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि भी है. लेकिन, जीतेगा वही उम्मीदवार जो आम सहमति बना सके. आंध्र प्रदेश की दोनों पार्टिया एक-दूसरे की विरोधी हैं लेकिन रामनाथ कोविंद का समर्थन कर रही हैं. तमिलनाडु की पार्टी समर्थन कर रही है. नीतीश कुमार समर्थन कर रहे हैं. इसी तरह दूसरी विरोधी पार्टियां समर्थन करतीं तो दुनिया में एक अच्छा संदेश जाता.



दर्शकों के सवाल


पारा शिक्षकों की समस्या का समाधान कब तक होगा?


पारा शिक्षकों की समस्या जायज है. मैं मानता हूं की यह वाजिब समस्या है. सरकार के शिक्षा विभाग से बात होती है. भारत सरकार का इसमें हिस्सा है. स्थिति सुधरनी चाहिए. उनकी कई मांगें जायज हैं, मैं उसका समर्थन करता हूं.



गौतम पाल पूछते हैं झारखंड पुलिस परीक्षा में घोटाले की जांच कब होगी?


गौतम जी अगर बतायेंगे क्या और कैसे हुआ था, तो मैं खुद मुख्यमंत्री को इस संबंध में लिखूंगा.



एक जुलाई से बिजली की दर महंगी हो रही है, जबकि राज्य में बिजली व्यवस्था अच्छी नहीं है?


बिजली विभाग को दर बढ़ाने के साथ-साथ सुविधाएं बढ़ानी चाहिए. हमारे क्षेत्र में टाटा स्टील के बाहर के क्षेत्र में बहुत बुरी स्थिति रहती है. अटल ग्राम ज्योति के तहत सरकार बिजली देने की कोशिश कर रही है. मुझे लगता है कि बिजली की स्थिति सुधरेगी.



बिजली ठेका श्रमिकों की स्थिति पर कुछ कहें? वे आंदोलन रत थे?


ठेका पर के श्रमिकों के पेमेंट में सुधार करना चाहिए. सरकार ठेकेदार को पेमेंट दे देती है, वह कितना काटेगा कितना देगा पता नहीं. इसलिए एक रेगुलेशन बनना चाहिए. आज सभी उद्योगों में स्थायी रूप से काम करने वाले भी ठेके पर बहाल हो रहे हैं. जो पद स्थायी प्रकृति के हैं उस पर स्थायी नियुक्ति हो.


टेंपरोरी पद पर ठेका में बहाल करें.


राज्य में दो किसानों ने आत्महत्या कर ली?


मैंने पता करवाया. एक व्यक्ति के बारे में पता चला कि एक किसान ने एक सप्ताह पहले राशन भी लिया था. एक किसान ने क्रेडिट कार्ड से कर्ज भी लिया था. तुरंत भुगतान का उस पर दबाव भी नहीं था. यह आत्महत्या किसान होने के कारण नहीं हुई है. सभी बिंदुओं पर जांच होनी चाहिए तभी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए.

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