चितरपुर (शंकर पोद्दार) : झारखंड के रामगढ़ जिला में एक गांव ऐसा है, जहां के लोगों को डंपिंग यार्ड को खोदकर अपनी प्यास बुझानी पड़ती है. जी हां, जिला के चितरपुर प्रखंड क्षेत्र के मायल पंचायत अंतर्गत ढठवाटांड़ गांव के लोग आज भी पेयजल के लिए जूझ रहे हैं. ये लोग सीसीएल रजरप्पा के डंपिंग यार्ड के स्रोत के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं.
यहां तक इस गांव में जाने के लिए सड़क भी नहीं है. बिजली पहुंच गयी है, लेकिन उसकी भी स्थिति अच्छी नहीं है. फलस्वरूप ग्रामीणों का जीवन दूभर हो रखा है. इस गांव की महिलाएं एक किलोमीटर की दूरी तय करके डंपिंग यार्ड जाती हैं और वहां स्रोत के पानी को चुआं बनाकर जमा करती हैं. फिर इसे डेगची में भरकर घर लाती हैं, तब जाकर उनकी प्यास बुझती है.
गांव की शोभा हांसदा, सरिता देवी, शिवनाथ सोरेन, लालचंद मांझी, छोटेलाल सोरेन सहित कई लोगों ने बताया कि बरसात के दिनों में कीचड़ युक्त दूषित पानी पीने को विवश होना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि कई बार जनप्रतिनिधियों को चापाकल लगवाने और कुआं खुदवाने देने की अपील की गयी, लेकिन किसी ने इन मांगों पर गौर नहीं किया.
ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है. इसकी वजह से छोटे-छोटे बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में सड़क भी जर्जर है. छात्र युवा अधिकार मोर्चा के चितरपुर प्रभारी उत्तम कुमार सहित कई सदस्यों ने शनिवार को गांव का दौरा किया और ग्रामीणों की समस्याओं से अवगत हुए.

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी अब तक लोगों को पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाया है, यह जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की घोर लापरवाही है. यहां के लोगों को इनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में प्रखंड के अधिकारियों से मिलकर समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जायेगा.
गांव में 200 लोगों की है आबादी
आदिवासी बहुल इस गांव में 30-35 परिवार रहते हैं. गांव की आबादी लगभग 200 है. यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं. इसकी वजह से इन्हें जीवन-यापन करने में काफी कठिनाई हो रही है. खासकर पानी का जुगाड़ करने में महिलाओं का घंटों समय बीत जा रहा है.

Posted By : Mithilesh Jha