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Thursday, March 28, 2024

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जब लालू यादव ने पूछा था कौन है नीलाम्बर पीताम्बर ? दोनों भाइयों के शहादत दिवस पर क्यों है विवाद

बात तब की है जब डाल्टनगंज के तत्कालीन विधायक इंदर सिंह नामधारी लालू कैबिनेट में मंत्री थे, उन्होंने पलामू में एक विश्वविद्यालय खोलने की सिफारिश की थी. अनुमति मिलने पर नामकरण को लेकर राय मांगा गया तो इसका नाम नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय नाम सुझाया गया. इसपर लालू यादव ने पूछा था कि ये कौन है.

पलामू, सैकत चटर्जी. झारखण्ड सरकार के सरकारी फरमान के मुताबिक पलामू में हुए जंग-ए-आजादी के दो महानायक स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर और पीतांबर शाही का शहादत दिवस 28 मार्च है. कहा गया है कि इन दोनों भाईयों को पकड़कर लेस्लीगंज लाया गया और यही बिना कोई क़ानूनी कार्रवाई किये 28 मार्च 1859 को फांसी दे दी गयी. इसी आधार पर पुरे राज्य में 28 मार्च को दोनों भाइयों का शहादत दिवस मनाया जाता है. हालांकि इसे लेकर इतिहासकार और लेखकों में मतभेद रहे है. नीलाम्बर-पीताम्बर को लेकर अलग-अलग लेखकों ने इनके शहादत तिथि में भिन्नता बताया है. गढ़वा के इतिहासकार डॉ रमेश चंचल द्वारा लिखित नाटक ‘मैं पलामू हूं’ में जिक्र है कि इन दो शूरवीर भाइयों को अंग्रेजी हुकूमत ने 28 मार्च को ही लेस्लीगंज में बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दी थी. इसी को आधार मानते हुए बाद में झारखंड सरकार ने यह मान लिया कि 28 मार्च ही इन दो भाइयों का शहादत दिवस है.

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राकेश कुमार सिंह मानते है नहीं हुई थी पीताम्बर की फांसी

कई इतिहासपरक पुस्तकों के लेखक राकेश कुमार सिंह का मानना है कि अंग्रेज हुक्मरानों ने लेस्लीगंज में सिर्फ नीलाम्बर को ही फांसी पर चढ़ाया था जबकि पीताम्बर और उनके पुत्र को कालापानी की सजा दी गयी थी. उन्होंने अपनी पुस्तक ”महासमर की सांझ” में इसका जिक्र किया है. प्रभात खबर से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय के तमाम सरकारी पत्र, दस्तावेज, कोर्ट के दैनिक प्रतिवेदन के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि दोनों भाइयों में से सिर्फ नीलाम्बर को ही फांसी दी गयी थी. उन्होंने कहा कि चूंकि हमारे देश में प्राण की आहुति देने वालों को श्रेष्ठ माना जाता है यही कारण है कि दोनों भाइयों में छोटे होने के बाद भी नीलाम्बर का नाम पहले लिया जाता है. उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि 134 दिनों तक चले सिपाही विद्रोह के अंत के बाद भी पलामू के इन दो महानायकों ने हार नहीं मानी और बिना किसी बाहरी सहायता के आगे करीब दो साल तक इस संग्राम को जारी रखा. उन्होंने अपने पुस्तक में लिखे गए तमाम तारीख और दिन के आधार पुस्तकों और दस्तावेजों का भी जिक्र किया है.

डॉ रमेश चंचल बताते है 28 मार्च ही है दोनों का शहादत दिवस

गढ़वा के रहने वाले राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत शिक्षक और इतिहासकार डॉ रमेश चंचल अपनी पुस्तक ”मैं पलामू हूं” में कहा है कि 28 मार्च ही दोनों भाइयों की शहादत दिवस है. प्रभात खबर से उन्होंने कहा कि 1857 से लेकर 1859 तक जब नीलाम्बर-पीताम्बर अंग्रेजो के खिलाफ जंग छेड़ी थी तब कोई खास दस्तावेज नहीं होते थे, न ही कोई न्यायमूलक कानूनी कार्रवाई होती थी, जो अंग्रेज चाहते थे वही कानून होता था. इसलिए उस समय की बातें पूरी तरह से दस्तावेज के आधार पर कहा नहीं जा सकता. इसलिए उस समय के इतिहास लिखने के क्रम में दस्तावेजों के साथ-साथ उस समय के प्रचलित कहानी, कविता, लोकोक्तियां, लोक कथाओं को भी आधार बनाना पड़ता है. इन सबको जोड़कर एक कड़ी बनाने से यही प्रतीत होता है कि अंग्रेजो ने दोनों भाई जो उस समय उनके लिए सबसे बढ़ा खतरा बन गए थे को एक ही साथ 28 मार्च को फांसी दे दी थी.

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जब लालू यादव ने पूछा था कि कौन है नीलाम्बर पीताम्बर

बात तब की है जब डाल्टनगंज के तत्कालीन विधायक इंदर सिंह नामधारी लालू कैबिनेट में मंत्री थे, उन्होंने उस समय पलामू में एक विश्वविद्यालय खोलने की सिफारिश की थी. जब इसकी अनुमति मिल गयी तो इसके नामकरण को लेकर राय मांगा गया तो नामधारी ने इसका नाम नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय रखने की बात कही. इसपर लालू यादव ने उनसे पूछा था कि नीलाम्बर-पीताम्बर कौन है. प्रभात खबर से इस घटना का जिक्र करते हुए नामधारी ने कहा कि तब और अब में बहुत अधिक फर्क नहीं है. अब भी हमारे इलाके के बहुत से लोग नीलाम्बर-पीताम्बर के बारे में अनभिज्ञ है, जबकि आजादी के लड़ाई में उनका योगदान झांसी की रानी, तात्या टोपे आदि से कहीं भी कम नहीं है. पलामू की धरती के इन दो आदिवासी भाइयों के चर्चे देश स्तर पर होने चाहिए थे. उन्होंने प्रभात खबर से कहा कि मेदिनीनगर में नवाटोली पार्क में उन्होंने इन दो वीर सपूतों के मूर्ति लगाएं. अपने विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में भी कई स्थानों पर इनकी प्रतिमा स्थापित की गयी. पर उचित रखरखाव के अभाव में ये जर्जर हो रहे है. उन्होंने कहा कि निजी काम से वे अभी दिल्ली आये हुए है पर वे जहां भी रहे इन दो अमर शहीदों को वे उनके शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे.

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