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फिजियोथेरेपी पढ़ने वाले हुए लाचार

फिजियोथेरेपी पढ़ने वाले हुए लाचार आठ साल में पूरा किया साढ़े तीन साल का कोर्स वरीय संवाददाता, रांची राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों रिम्स, एमजीएम व पीएमसीएच से फिजियोथेरेपी की पढ़ाई करने वाले छात्र लाचार हो गये हैं. एक तो साढ़े तीन साल के डिप्लोमा इन फिजियोथेरेपिस्ट का कोर्स आठ साल में पूरा किया. वहीं […]

फिजियोथेरेपी पढ़ने वाले हुए लाचार आठ साल में पूरा किया साढ़े तीन साल का कोर्स वरीय संवाददाता, रांची राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों रिम्स, एमजीएम व पीएमसीएच से फिजियोथेरेपी की पढ़ाई करने वाले छात्र लाचार हो गये हैं. एक तो साढ़े तीन साल के डिप्लोमा इन फिजियोथेरेपिस्ट का कोर्स आठ साल में पूरा किया. वहीं अब नौकरी के लाले पड़ गये हैं. करीब 72 छात्र सरकार से गुहार लगाते रहे हैं कि विभिन्न अस्पतालों के रिक्त पदों पर उन्हें बहाल किया जाये. पर अभी इस पर सरकार का ध्यान नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार फिजियोथेरेपिस्ट की बहाली तो होनी है, पर विभाग डिग्री होल्डर कैंडिडेट चाहता है. इससे डिप्लोमाधारी छात्र खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं. छात्र विकास चंद्र रजवार ने कहा कि रिम्स, एमजीएम व पीएमसीएच जैसे बड़े अस्पतालों में भी फिजियोथेरेपिस्ट नहीं है. हालांकि अस्पताल के अॉर्थो, न्यूरो व पेडियाट्रिक में सर्जरी के बाद फिजियोथेरेपी कराने की सलाह दी जाती है. रजवार के अनुसार दूसरे राज्य के अस्पतालों सहित पीएचसी, सीएचसी में भी फिजियोथेरेपिस्ट होते हैं. झारखंड में हम पढ़ाई करने के बाद भी बेकार हैं. इसी मुद्दे पर बुधवार को तीन छात्र मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी तथा राज पलिवार से मिलने जनता दरबार पहुंचे थे. छात्रों को आश्वासन मिला है कि उनकी समस्या के बारे मुख्यमंत्री से बात की जायेगी. सरकार भी दोषी विद्याथिर्यों की इस समस्या के लिए दरअसल सरकार भी दोषी है. इस कोर्स में वर्ष 2006 से नामांकन शुरू हुआ. रिम्स में 20 तथा एमजीएम तथा पीएमसीएच में 15-15 सीटें थी. पर इन विद्याथिर्यों की पढ़ाई व परीक्षा समय पर नहीं हुई. सरकार की अोर से कहा जाता था कि राज्य में पारामेडिकल काउंसिल नहीं है, इसलिए परीक्षा नहीं ली जा सकती. बाद में वर्ष 2011 में काउंसिल का गठन होने के बाद कहा गया कि अापलोगों की पढ़ाई रेगुलर नहीं है. पहले पढ़ना होगा. इस तरह कुछ को छोड़ वर्ष 2006 से 2010 तक इन संस्थानों में नामांकन लेने वाले विद्यार्थी अाठ वर्ष बाद 2014 में पास हुए हैं. सरकार ने अपने ही संस्थान को एआइसीटीइ से मान्यता नहीं दिलायी थी. यानी इन विद्यार्थियों ने बगैर मान्यता वाले संस्थान में पढ़ाई की है. अब यह खामियाजा भुगत रहे हैं.

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