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ब्लड बैंक के सफल संचालन के लिए जिला कमेटी गठित

झारखंड में ब्लड बैंक की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए जिला स्तर पर विशेष कमेटी गठित की गई है, जिसकी अध्यक्षता सिविल सर्जन डॉ. सुरेंद्र कुमार मिश्रा करेंगे। चाईबासा में हुए एचआईवी संक्रमण के मामले के बाद रैपिड किट से जांच बंद कर एलिसा तकनीक को अनिवार्य किया गया है। एलिसा (Enzyme-Linked Immunosorbent Assay) जांच अधिक सटीक और सुरक्षित मानी जाती है, जो एचआईवी, हेपेटाइटिस और अन्य संक्रमणों की पुष्टि करती है। इस कदम का उद्देश्य रक्त की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि भविष्य में संक्रमण या त्रुटि की संभावना कम हो। राज्य में ब्लड बैंकों की गहन जांच जारी है और लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

अब रैपिड किट से नहीं, एलिसा से होगी जांच राघव मिश्रा, पाकुड़. ब्लड बैंक के सफल संचालन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जिला स्तर पर एक विशेष कमेटी का गठन किया गया है. इस कमेटी के अध्यक्ष सिविल सर्जन होंगे, जबकि सदस्य के रूप में ड्रग इंस्पेक्टर सहित अन्य अधिकारियों को शामिल किया गया है. यह कमेटी ब्लड बैंक के रिकॉर्ड, स्टॉक, जांच परीक्षण, भंडारण और वितरण की संपूर्ण प्रक्रिया की गहन जांच करेगी. सिविल सर्जन डॉ. सुरेंद्र कुमार मिश्रा ने जानकारी दी कि झारखंड में एचआइवी संक्रमण के मामले सामने आने के बाद ब्लड बैंक की व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ करने का निर्णय लिया गया है. राज्य स्वास्थ्य विभाग के निर्देश पर यह कमेटी गठित की गयी है, जो रक्त अधिकोष के संचालन की निगरानी करेगी. उन्होंने बताया कि पहले ब्लड बैंक में रक्त जांच के लिए रैपिड किट का उपयोग किया जाता था. लेकिन चाईबासा में एचआईवी संक्रमण की घटना को देखते हुए अब रैपिड किट से जांच बंद कर दी गयी है. इसके स्थान पर एलिसा जांच को अनिवार्य कर दिया गया है. जांच प्रक्रिया को लेकर आवश्यक निर्देश जारी किए गए हैं और किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इस बदलाव का उद्देश्य भविष्य में किसी भी त्रुटि या संक्रमण की संभावना को कम करना है, ताकि रक्त की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. गौरतलब है कि झारखंड के चाईबासा सदर अस्पताल में ब्लड बैंक की लापरवाही के कारण कई बच्चों के एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने की घटना के बाद पूरे राज्य में हड़कंप मच गया है. इसके बाद झारखंड के सभी जिलों में ब्लड बैंकों की जांच शुरू कर दी गयी है. एलिसा मशीन से जांच से निकलेंगे कई निष्कर्ष एलिसा मशीन के कार्यों की जानकारी देते हुए अस्पताल उपाधीक्षक डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि यह मशीन एंजाइमलिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट परख तकनीक पर आधारित है. इसमें एक ठोस सतह पर स्थिर किए गए एंटीजन को विशिष्ट एंटीबॉडी से जोड़ा जाता है. जब इसमें सब्सट्रेट मिलाया जाता है, तो यह रिपोर्टर एंजाइम की गतिविधि को मापता है, जिससे लक्ष्य अणु की उपस्थिति का पता चलता है. एलिसा का उपयोग एचआईवी, हेपेटाइटिस और अन्य संक्रमणों की पहचान के लिए किया जाता है. यह गर्भावस्था की पुष्टि करने और कुछ प्रकार के कैंसर मार्करों का पता लगाने में भी सहायक होता है. इस मशीन में एक विशिष्ट एंटीबॉडी को माइक्रोप्लेट पर फिक्स किया जाता है. नमूने को माइक्रोप्लेट में डालने पर यदि लक्ष्य एंटीजन मौजूद होता है, तो वह एंटीबॉडी से जुड़ जाता है. इसके बाद एंजाइम सब्सट्रेट एक रंगीन उत्पाद में बदल जाता है, जिसे एलिसा मशीन द्वारा मापा जाता है.

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