गोपी कृष्ण कुंवर, लोहरदगा
लोहरदगा में रामनवमी पूजा का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है.यहां रामनवमी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. रामनवमी के अवसर पर जब लोग पूजा में अपने आवास में महावीरी झंडा लगाते थे, परंतु मोहल्ले के उस स्थान पर जहां सामूहिकता के साथ अस्त्र -शस्त्र, महावीरी झंडा, डंका की पूजा तथा डंका बजाना व अस्त्र-शस्त्र के साथ करतब दिखाने की कला जिस स्थान पर होता है, उसे अखाड़ा कहते हैं. बालिका स्कूल थाना रोड, तेतरतर के रहने वाले 76 वर्षीय चंद्रशेखर मिश्र तथा बुद्धन सिंह लेन स्थित सामाजिक कार्यकर्ता ओमप्रकाश सिंह याद करके बताते हैं कि सन 1945 के पूर्व रांची में विभिन्न अखाड़ों में लोग झंडा, बाजा , शस्त्र आदि लेकर शोभायात्रा में निकलते थे तथा उसका असर लोहरदगा में भी होता था तथा रांची निवासी राधा बुधिया ने 1944/ 45 में आज के आइसीआइसीआई बैंक मुख्य पथ के सामने तब के उत्साही युवकों जिनमें नरसिंह साहू, वनमाली प्रसाद, बृज माली प्रसाद, खेमराज पोद्दार, बुद्धन सिंह, रामटहल ठाकुर, राघव दास , मनोरी लाल बर्म्मन, जगेश्वर प्रसाद खत्री, रामाकांत प्रसाद आदि ने मिलकर डंका, अस्त्र-शस्त्र, व हनुमान जी की पूजा करने की शुरुआत की और वहीं से पहला शोभायात्रा निकलने की शुरुआत हुई. वहीं अगले वर्ष शास्त्री चौक में भी अखाड़ा पूजा शुरू हो गया, तो टंगरा टोली में कृष्ण मोहन प्रसाद खत्री, लालदेव खत्री पूजा प्रारंभ कर दिये, तो बालिका स्कूल के निकट तेतरतर में सूरज महतो, विष्णु दयाल, माधो मिश्र अखाड़ा पूजा की शुरुआत की और उसी समय थाना टोली के श्री कृष्ण लेन मे छेदी रजक, सीताराम सिंह आदि मिलकर अखाड़ा पूजा की शुरुआत किए थे. पहले नवमी की शोभायात्रा आइसीआइ बैंक से प्रारंभ होकर शास्त्री चौक ,टंगरा टोली, तेतरतर आदि मोहल्ले में ही घूम कर समाप्त हो जाती थी .परंतु कुछ ही समय के बाद यह शोभायात्रा थाना टोली, टंगरा टोली, हटिया गार्डन, चंद्रशेखर आजाद चौक, तिवारी दुरा ,राणा चौक, महावीर चौक, गुदरी बाजार , शास्त्री चौक आदि विभिन्न इलाकों से घूम कर मैना बगीचा पहुंच जाया करती थी. जो आज भी बदस्तूर जारी है. अखाड़ा के लाइसेंस हेतु लोहरदगा के स्वतंत्रता सेनानी बुद्धन सिंह पहला लाइसेंस धारी बने. शोभा यात्रा पहले सप्तमी और अष्टमी को भी रात्रि में निकलती थी तथा पावर गंज क्षेत्र के लोग झंडा, डंका बजाते थाना टोली ,शास्त्री चौक, टंगरा टोली, तेतरतर पहुंचे थे तथा इन मोहल्ले के लोग डंका बजाते हुए पावरगंज के लोगों को पावरगंज तक छोड़ने भी जाते थे. इस सप्तमी, अष्टमी और नवमी की शोभायात्रा में रामटहल ठाकुर, राघव दास द्वारा बांस से आकर्षक ढंग से फाटक बनाया जाता था, जिसमें कागज से हनुमान जी की विशाल मूर्ति बनायी जाती थी और इसे चार लोग कंधे पर लेकर शोभायात्रा में घूमते थे. वर्ष 1948 में बजरंगबली की चांदी की नक्काशीदार आकर्षक, सिहासन में विराजमान मूर्ति बनायी गयी. जिसे चार लोग कंधे में लेकर जुलूस के आगे- आगे आज भी चलते हैं. यह लोग बताते हैं कि पहले झंडे काफी बड़े-बड़े और काफी संख्या में बनते थे तथा इतने विशाल तथा भारी बनते थे की 2–3 आदमी मिलकर लेकर चलते थे. क्योंकि 1965 के पहले शहर में बिजली नहीं आयी थी. इसलिए कोई खतरा नहीं रहता था. थाना परिसर में साठ के दशक में अस्त्र-शस्त्र चालन प्रतियोगिता नंदलाल प्रसाद साहू ने शुरू किया गया, जिसे कालांतर में कला ज्योति ने बढ़ाया, जिसमें बाजा प्रतियोगिता भी शामिल किया गया और इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए कला समिति अभी भी कर रही है. इस शोभायात्रा में लोहरदगा शहर के ही नहीं अपितु बगल के सीमावर्ती गांव के भी उत्साही सभी आयु वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं .70 के दशक में लाठी -डंडा ,बलम -फरसा, क्रीच, मसाल आदि चलाने हेतु रांची से एक्सपर्ट आते थे जिसे उस्ताद कहा जाता था तथा इन के निर्देश पर खेला तैयार होते थे और प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जाता था. अब शोभायात्रा में आकर्षक झांकियां भी निकलती है. अब शोभायात्रा में महिलाएं भी अस्त्र शस्त्र चला कर अपनी कला का प्रर्दशन करती है, जो आकर्षण का केंद्र होता है. यहां रामनवमी पर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है. लोगों का उत्साह चरम पर होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है