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कथावाचक ने भगवान कृष्ण-सुदामा मिलन का किया वर्णन

बिंदापाथर. बिंदापाथर गांव में आयोजित भारत माता मेला सह सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन सोमवार को हुआ.

– बिंदापाथर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन प्रतिनिधि, बिंदापाथर. बिंदापाथर गांव में आयोजित भारत माता मेला सह सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन सोमवार को हुआ. कथा के अंतिम दिन भंडारा का आयोजन हुआ. इसमें शामिल श्रद्धालुओं ने जयकारे भी लगाए. कथावाचक मुकुंद दास अधिकारी ने अंतिम दिन कृष्ण सुदामा मिलन का वर्णन किया. कहा कि सुदामा जी भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र और भक्त थे. वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान् ब्राह्मण थे. भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार से थे. उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों के पेट भरना भी मुश्किल हो गया था. गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकते हैं, लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकते. ऐसे कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए. ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा. इस पर सुदामा की पत्नी ने कहा- आप बताते रहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं और द्वारका के राजा के आपके मित्र हैं तो क्यों एक बार क्यों नहीं उनके पास चले जाते. सुदामा जब द्वारका पहुंचे भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े. इससे वहां मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है. भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा की. कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है? इस सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे. ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली. भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे. सुदामा की गरीबी देखकर उनके आखों में आंसू आ गए. सुदामा कुछ दिन द्वारिकापुरी में रहे, लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सके. विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आए और उनसे गले लगे. सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचने लगे कि पत्नी पूछेगी कि क्या लाए हो तो वह क्या जवाब देंगे? सुदामा घर पहुंचे तो वहां उन्हें अपनी झोपड़ी नजर ही नहीं आई. वह अपनी झोपड़ी ढूंढ़ रहे थे तभी एक सुंदर घर से उनकी पत्नी बाहर आई. उन्होंने सुंदर कपड़े पहने थे. सुशीला ने सुदामा से कहा देखा कृष्ण का प्रताप, हमारी गरीबी दूर कर कृष्ण ने हमारे सारे दुःख हर लिए. सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया. उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए. दोस्तों, कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्ची मित्रता यही थी. कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था. दोस्ती के इसी नेक इरादे की लोग आज भी मिसाल देते हैं.

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