पूर्व सांसद ने अपनी पुस्तक झारखंड में विद्रोह को लेकर भेजे नोटिस का दिया जवाब, आरोपों को किया खारिज
Jamshedpur News :
झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने अपनी पुस्तक झारखंड में विद्रोह का इतिहास के तथ्यों को लेकर दिये गये नोटिस का जवाब दिया है. उन्होंने कई तर्क के साथ यह साफ करने का प्रयास किया है कि उनके द्वारा लिखी गयी बातें सत्य हैं और वह ऐतिहासिक व प्रमाणिक है. इसलिए उन पर लगाये गये सभी आरोप निराधार हैं. पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो को तीन पक्षकार जय सिंह भूमिज, छुटू भूमिज और मेयालाल सरदार ने अपने वकील के माध्यम से नोटिस भेजा था. नोटिस भेजनेवालों ने श्री महतो पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पुस्तक में भूमिज आदिवासियों के गौरवान्वित, इतिहास का अपहरण कर कुरमी समुदाय को गलत, मनगढ़ंत एवं भ्रामक इतिहास प्रकाशित करने का क्रूर अपराध किया है. किताब के कुछ अंश भ्रामक एवं आपत्तिजनक प्रतीत होते हैं. पूर्व सांसद श्री महतो ने बताया कि इतिहासकारों ने चुआइ विद्रोह पर कई पुस्तकें लिखी है और विभिन्न प्रकाशकों ने प्रकाशित की है. उनका मानना है कि चुआइ नाम पर किसी जाति का एकाधिकार नहीं है और न ही चुआड़ विद्रोह पर. अंग्रेजी शासन के पूर्व 16वीं शताब्दी में चुआइ शब्द का प्रयोग बांग्ला भाषा में प्रकाशित पुस्तक “चंडी मंगल ” काव्य में चुआड़ शब्द का अर्थ ””अनार्य जाति”” बताया गया है. अतः पक्षकारों को उनकी पुस्तक पर आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं बनता. इसलिए कि चुआड़ का अर्थ भूमिज नहीं है और न ही चुआड़ विद्रोह अकेले भूमिज जाति का है. छोटानागपुर पठार के जंगल-महाल क्षेत्र में रहने वाले कुड़मी, संताल, भूमिज, बाउरी, कोड़ा, माहली, सद्गोप, मुंडा, मानकी, सरदार घटवाल आदि मूलवासियों की पहचान चुआइ उपनाम से थी. चुआड़ विद्रोह के समय उनका या अन्य इतिहासकारों का जन्म नहीं हुआ था. सभी ने अपने शोध में ऐतिहासिक घटनाओं का यथासंभव उल्लेख किया है. यह सर्वविदित है कि इतिहासकार अपने शोध के मुताबिक ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या करते हैं, उनकी पुस्तक भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

