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जाड़े में खजूर गुड़ का आनंद लें

जाड़े में खजूर गुड़ का आनंद लेंकुछ मीठा हो जाये…फोटो है, दिलीप 1 से 10 तक. कारीगर पेड़ पर चढ़ कर खजूर रस निकलते. डेग में तैयार होता खजूर का गुड़. तैयार गुड़ को टीन में पेकिंग करते, बाटी जैसा खजूर गुड़ को पेक करते. बाजार के व्यवसायियों को सप्लार्इ के लिए कांटे में वजन […]

जाड़े में खजूर गुड़ का आनंद लेंकुछ मीठा हो जाये…फोटो है, दिलीप 1 से 10 तक. कारीगर पेड़ पर चढ़ कर खजूर रस निकलते. डेग में तैयार होता खजूर का गुड़. तैयार गुड़ को टीन में पेकिंग करते, बाटी जैसा खजूर गुड़ को पेक करते. बाजार के व्यवसायियों को सप्लार्इ के लिए कांटे में वजन करते कारीगर आदि.—————-सर्दी की सिहरन के बीच गुड़ खाने का अपना अलग ही मजा है. यह ना सिर्फ आपके मुंह में मिठास घोलता है, बल्कि शरीर में गरमी भी भरता है. और बात खजूर के गुड़ की हो तो बात ही कुछ और है. इस मिठास को बनाने के पीछे छीपी मेहनत और लगन को बताने की कोशिश करती दिलीप पोद्दार @ पटमदा की यह रिपोर्ट… ————साल के गुजरने, नये साल के आगमन व पर्व-त्योहारों में खजूर गुड़ की चाहत और डिमांड दोनों बढ़ जाती है. हालत यह हो जाती है कि शहर के बाजार में जितनी मांग होती है, उतनी आपूर्ति भी नहीं हो पाती. इसका कारण है इसे बनाने की देसी और लंबी प्रक्रिया का अपनाया जाना, उत्पादन का सीमित क्षेत्र और कुशल कारीगरों की कमी. जाड़े के दिनों में बंगाल के बांकुड़ा जिले से आये कारीगर ही यह काम करते हैं. शहर में जिस खजूर गुड़ की अापूर्ति है उसका उत्पादन ज्यादातर पटमदा, बोड़ाम और जमशेदपुर से सटे आसपास के क्षेत्रों में होता है. इन क्षेत्रों में खजूर के पेड़ बड़ी संख्या में हैं. बंगाल से करीब तीन महीने के लिए कारीगर इन इलाकों में छोटे-छोटे समूह के रूप में आकर विभिन्न क्षेत्रों में अपना कैंप बना लेते हैं. और इन तीन महीनों में शहर के लिए साल भर के गुड़ का इंतजाम ये करके चले जाते हैं. इसके लिए शहर के व्यवसायियों की ओर से इनके आने के तीन महीने पहले ही इन कारीगरों को पूरा एडवांस दे देते हैं. इसी एडवांस के अनुरूप कारीगरों की संख्या इन ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचती है और गुड़ का उत्पादन करती है. खजूर गुड़ की विशेषता बंगाल के कारीगरों द्वारा तैयार किये जाने वाले इस स्वादिष्ट खजूर गुड़ का कोर्इ जवाब नहीं है. इसका स्वाद अन्य गुड़ से काफी अलग है. कारीगर द्वारा खजूर का गुड़ गीला और सूखा दो तरह से तैयार किया जाता है. गीला गुड़ किसी चॉकलेट की तरह मुंह में घुलता चला जाता है और इसकी मिठास काफी देर तक बनी रहती है. इसे साल भर आसानी से रखा जा सकता है, जबकि सूखे गुड़ में हवा व नमी लगने की आशंका बनी रहती है. इसलिए, इसका भंडारण काफी एहतियात के साथ करना पड़ता है. बंगाल में खजूर गुड़ खाने की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराएं भी हैं. इसलिए, वहां इसके कारीगर आसानी से मिल जाते हैं. कारीगर साबिर अली खान के अनुसार बंगाल के किसान इसका सेवन जरूर करते हैं. इससे उन्हें खेतों में किसी प्रकार के कीड़े-मकोड़े या पेस्टीसाइड से होने वाले नुकसान की आशंका कम रहती है. बंगाल में पेठा बनाने के लिए इसी गुड़ का उपयोग किया जाता है. शहर में भी खजूर गुड़ का उपयोग होटलों में गुड़ के रसगुल्ले, खीर, मकर पर्व के मौके पर गुड़पीठा एवं विभिन्न तरह के स्वादिष्ट मीठा व पीठा बनाने के लिए किया जाता है. नवंबर से जनवरी तक लगता है कैंपप्रत्येक वर्ष नवंबर से जनवरी माह तक विभिन्न क्षेत्रों में खजूर गुड़ बनाने का कैंप लगता है. प्रत्येक कैंप में आठ से दस कारीगरों का दल रहता है. बांकुड़ा जिला के कारीगर रफीक मंडल ने बताया कि गुड़ के लिए शहर के गुड़ व्यसायी उन्हें तीन माह पूर्व एडवांस दे देते हैं. उस पैसे से घर परिवार का राशन चलता है. रोजी-रोटी की खातिर दो से ढार्इ माह तक वे लोग अपने परिवार से दूर टेंटों में गुजारा करते हैं. ठंड में खुले आसमान के नीचे टेंटों में गुजारा करना मुश्किल ताे है, लेकिन काम के लिए करना ही पड़ता है. क्योंकि, ज्यादातर सुबह से हम खजूर से गुड़ निकालने का काम करते हैं और रात में इसे बनाने का. इसलिए, हमें यहीं रहकर पूरा काम करना पड़ता है. गुड़ तैयार करने का तरीका बंगाल के कारीगर जब नवंबर माह में यहां पहुंचते हैं, तो पहले आसपास के क्षेत्रों के खजूर पेड़ों की सफाई करते हैं. फिर पेड़ की टहनी के चारों ओर धारदार यंत्र से छील कर उस पर चूना का लेप लगाया जाता है. यह खजूर पेड़ के उस उपरी हिस्से में किया जाता है, जहां इसके पत्ते खत्म होते हैं. इसलिए, 30 फीट से अधिक सीधे खजूर पेड़ पर चढ़ना होता है. इसमें खतरा तो होता है, पर इन कारीगरों के लिए यह आम बात है. चूना के लेप के साथ हांडी टांग दी जाती है. पहले मिट्टी की हांडी का उपयोग होता था, पर अब प्लास्टिक की हांडी प्रयोग में लायी जा रही है. इसके टूटने-फूटने का खतरा कम रहता है. 24 घंटे के बाद इस हांडी को उतारकर दूसरी खाली हांडी टांग दी जाती है. इन 24 घंटे में इन हांडी में करीब तीन किलो खजूर का रस इकट्ठा हो चुका होता है. हांडी उतारने और चढ़ाने का काम सुबह में किया जाता है. सभी हांडी को इकट्ठा कर इस रस को चूल्हे पर चढ़ा डेग (बड़े आकार का बर्तन, जिसमें इसे खौलाया जाता है) में डाल देते हैं. इसमें ईंधन के तौर पर खजूर पेड़ की छाल व झाड़ियों का प्रयोग किया जाता है. करीब चार से पांच घंटे खौलाने के बाद यह धीरे-धीरे खजूर का रस गुुड़ का आकार ले लेता है. तीन किलो खजूर रस से करीब 300 ग्राम गुड़ तैयार होता है. इस तरह एक खजूर से निकले रस से एक दिन में कारीगरों को 300 ग्राम ही गुड़ मिल पाता है. अब इसके बाद यदि गीला गुड़ तैयार करना है, तो डेग से गुड़ को टीना में डालते हैं और यदि सूखा गुड़ (बाटी गुड़) तैयार करना हो तो इसे ढांचा में डालकर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस तरह दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद अपनी मिठास को समेटे खजूर का रस गुड़ में तब्दील हो जाता है. कहां-कहां लगाते हैं कैंप डिमना स्थित मिर्जाडीह, गेड़वा, पुनसा, बोंटा, पटमदा, धुसरा, सारी, घोड़ाबांधा, कालोझोर, एनएच में भिलार्इ पहाड़ी आदि जगहों पर बंगाल के करीगर द्वारा कैंप लगा कर खजूर (पाटाली) गुड़ तैयार किया जाता है.थोक में 50-60 रुपये किलो बिकता है कारीगर साबिर अली खान, नूरा सलाम खान, अब्दुल असित मंडल आदि ने बताया कि उनके द्वारा तैयार किये गये रस वाले खजूर गुड़ 50 रुपये एवं बाटी गुड़ 60 रुपये प्रति किलो की दर से व्यवसायियों को थोक में बिक्री की जाती है, जो बाजार में 80-90 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है.

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