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रांची : 1985 के पहले के अवैध मकानों को 15 दिनों में लीज देने की प्रक्रिया शुरू होगी : रघुवर दास

रांची/जमशेदपुर : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि सरकार ने तीन क्रांतिकारी कदम उठाये हैं. इसके तहत खासमहल की जनता को लाभ दिलाने का काम सरकार ने किया है. करीब 70 साल से खासमहल की जमीन पर लोग रह रहे हैं. उनके पास जमीन का अधिकार तक नहीं है और उनके लीज का नवीनीकरण तक […]

रांची/जमशेदपुर : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि सरकार ने तीन क्रांतिकारी कदम उठाये हैं. इसके तहत खासमहल की जनता को लाभ दिलाने का काम सरकार ने किया है. करीब 70 साल से खासमहल की जमीन पर लोग रह रहे हैं. उनके पास जमीन का अधिकार तक नहीं है और उनके लीज का नवीनीकरण तक नहीं हो पा रहा था. सरकार ने उनको जमीन 30 साल के लिए लीज पर देने का फैसला लिया है. यह पूछे जाने पर कि जब 70 साल से लोग रह रहे हैं, तो उनको मालिकाना हक क्यों नहीं सरकार दे रही है?

इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी यह मामला विचाराधीन है. यह तकनीकी मसला है. जिसका अध्ययन करने के बाद ही कोई बात कही जा सकती है. राज्य के कुल आठ जिलों में ऐसी जमीन है, जिसमें जमशेदपुर के पास के परसुडीह, सुंदरनगर समेत कई इलाके में भी ऐसी जमीन है, जिसका लाभ मिलने वाला है.

श्री दास ने कहा कि सरकार ने जो दूसरा क्रांतिकारी कदम उठाया है वो यह है कि ग्रामीण जनता को 12.5 डिसमिल जमीन रहने के लिए सरकार नि:शुल्क देगी. इसके बाद उनको अनाज पैदा कराने के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुफ्त में देगी. जमीन की न तो किसी तरह की खरीद-बिक्री होगी और न ही किसी तरह का कोई ट्रांसफर हो सकेगा. परिवार के सदस्यों के बीच यह ट्रांसफर हो सकता है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक जनवरी 1985 के पहले से सरकारी जमीन पर रहने वालों को सरकार तीस साल का लीज देगी. इसके तहत अगर किसी की जमीन की कीमत एक लाख रुपये है, तो उसको यह लीज कराने के लिए दस हजार रुपये सरकार को चुकाना होगा और सालाना 500 रुपये के हिसाब से देना होगा, जिसके बाद 30 साल के लिए जमीन लीज पर मिल जायेगी. उन्होंने बताया कि दस डिसमिल तक की जमीन को लीज पर दिया जायेगा. लोग बिजली, पानी, सर्वे में अवैध दखल दिखाने का कोई दस्तावेज, जो यह बता सकें कि वे वहां 1985 के पहले से रह रहे हैं, उसके आधार पर लोगों को लीज मिल जायेगी.
86 बस्ती को मालिकाना हक देना कभी मेरा राजनीतिक एजेंडा नहीं रहा : रघुवर दास ने कहा कि 1995 के चुनाव में मैं जब चुनाव लड़ा था, तब कभी भी 86 बस्ती को मालिकाना हक देने का वादा नहीं किया था. कभी यह मेरा राजनीतिक एजेंडा नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि जब चुनाव जीते, तब लोगों ने आकर अपनी समस्याएं बतायी, जिसके बाद भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर आंदोलन शुरू किया और लोगों की आवाज बनने का काम किया. उन्होंने बताया कि इसके बाद से हम लगातार लड़ रहे हैं.
बिरसा सेवा दल समेत कई संस्थानों के बैनर तले काफी दिनों से आंदोलन चलता रहता था, लेकिन हमने चुनाव उसके बूते नहीं जीता. सीएम ने बताया कि मालिकाना हक से ज्यादा लड़ाई हमारी गैर कंपनी और कंपनी क्षेत्र में नागरिक सुविधाओं को लेकर रही है. इन दोनों इलाके में जो दो तरह की व्यवस्था थी, उसको दूर करना था. इस लड़ाई को हमने जीता.
एक जनवरी 1985 के बाद वालों के लिए भी रास्ता निकालेगी सरकार : मुख्यमंत्री से जब पूछा गया कि एक जनवरी 1985 के बाद भी कई बस्तियां बसी. ऐसे लोगों का क्या दोष है. यह राज्य भर का मसला है? इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि देखिये, अभी कमेटी ने एक जनवरी 1985 के पहले की जो अनुशंसा की थी, उसके आधार पर यह लीज दी जा रही है. कानून में बदलाव परिस्थिति के अनुसार होता रहा है और यह होना भी चाहिए. अभी एक रास्ता खुला है, उसके बाद दूसरा रास्ता भी सरकार निकालेगी.

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