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सफर काे असुरक्षित बना रही है सेफ्टी मापदंडों की अनदेखी, अवधि पूरी कर चुके ट्रैक पर बेधड़क दौड़ रहीं ट्रेनें

जमशेदपुर. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पुरी-हरिद्वार कलिंगा उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना ने एक बार फिर रेलवे की संरक्षा प्रणाली को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. लगातार हो रहे हादसों में लोगों की जान-माल की क्षति के बावजूद रेलवे सबक लेने को तैयार नहीं दिखता. बीते एक साल के दौरान रेल […]

जमशेदपुर. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पुरी-हरिद्वार कलिंगा उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना ने एक बार फिर रेलवे की संरक्षा प्रणाली को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. लगातार हो रहे हादसों में लोगों की जान-माल की क्षति के बावजूद रेलवे सबक लेने को तैयार नहीं दिखता.

बीते एक साल के दौरान रेल दुर्घटनाओं के लिए मानवीय चूक से अधिक सेफ्टी नियमों के अनुपालन में लापरवाही को ही जिम्मेवार बताया गया. उत्कल एक्सप्रेस हादसे में भी यही बात सामने आयी है. रेलवे ट्रैक पर चंद घंटों पर पूर्व मरम्मत कार्य कराया गया था, लेकिन नियमानुसार ट्रेन के चालक को कोई कॉसन आर्डर नहीं दिया गया. सेफ्टी की इसी चूक का नतीजा रहा कि ट्रेन की रफ्तार नियंत्रित नहीं की गयी और वह दुर्घटनाग्रस्त हो गयी.

अप्रैल 2017 में प्रकाशित इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट की माने तो नवंबर 2016 और मार्च 2017 के दौरान रेल दुर्घटनाओं के लिए ट्रैक का क्षमता से अधिक इस्तेमाल एक बड़ी वजह माना गया. बताया जाता है कि देश भर के 1,219 रेलमार्गों पर कम से कम 40 फीसदी ट्रैक का इस्तेमाल 100 फीसदी से अधिक हो चुका है. तकनीकी रूप से किसी सेक्शन पर ट्रैक का इस्तेमाल क्षमता से 90 फीसदी अधिक हो जाने पर उसे बदल दिये जाने का प्रावधान है. हालांकि भारतीय रेल नेटवर्क के 247 हाई डेंसिटी वाले मार्गों पर रेलवे ट्रैक का 65 फीसदी तक इस्तेमाल हो चुका है, लेकिन इन्हें बदलने की कवायद अब तक शुरू नहीं की गयी.

ट्रेनों की संख्या बढ़ी पर मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं : 15 सालों के दौरान पैसेंजर ट्रेनों की संख्या में 56 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है. साल 2000-01 में 8,520 से बढ़कर साल 2015-16 में 13,313 हो गया, लेकिन ट्रेनों की संख्या के अनुसार कोच व पटरी के मेंटेनेंस को प्राथमिकता नहीं दी गयी. कई ट्रेनों में बोगियों की समय अवधि पूरी होने के बाद भी मेंटेनेंस नहीं हुआ. बोगियों की कमी के कारण उन्हें लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है. यही स्थिति रेलवे ट्रैक व स्लीपर के साथ भी है. असुरक्षित रूप से संरक्षा मानकों की अनदेखी कर पटरी पर जर्जरहाल बोगियों के दौड़ाया जाना ही दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है. समय पालन के कारण रखरखाव में अनदेखी : रेलवे व्यस्त मार्गों पर ट्रेनों की बढ़ी संख्या के कारण रखरखाव कार्य संरक्षा मानक के अनुसार नहीं किया जा रहा है. इससे लगातार अनदेखी दुर्घटनाओं का कारण बन रही है.
1950 से 2016 के बीच कम हुआ निवेश
1950 से 2016 तक के समय को देखें तो रेलवे के बुनियादी ढांचे में कम निवेश साफ दिखाई देता है. रेलवे मार्ग की लंबाई में मात्र 23 प्रतिशत (किलोमीटर में) का विस्तार हुआ है, जबकि यात्रियों की संख्या में 1,344 प्रतिशत और माल ढुलाई में 1,642 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये आंकड़े रेलवे की स्थायी समिति द्वारा रेलवे में सुरक्षा पर दिसंबर 2016 में जारी एक रिपोर्ट के हैं. 20 नवंबर 2016 को कानपुर के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बों के पटरी से उतरने के कारणों की समीक्षा करते हुए उत्तर प्रदेश रेलवे पुलिस के महानिदेशक गोपाल गुप्ता ने कहा था कि इसका कारण विस्फोटक नहीं ‘रेलवे पटरियों की थकान’ है.

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