बड़कागांव. बड़कागांव वन क्षेत्र की वादियों में इन दिनों सखुआ (सरई) के फूल खिले हुए हैं, जो हर किसी का मन मोह रहे हैं. इन फूलों ने जंगल और बड़कागांव की धरती को दुल्हन की तरह सजा दिया है, और पक्षी भी मधुर कलरव कर रहे हैं. ग्रामीणों के लिए सखुआ का फल रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन है. यदि सरकार इसका बाजार उपलब्ध करा दे, तो हजारीबाग जिले के कई प्रखंडों के गांव-देहातों से लोगों का पलायन रुक सकता है और स्थानीय लोग अपने जंगलों में ही रोजगार तलाश सकते हैं.
सखुआ के फूलों का सरहुल और मंडा पर्व में विशेष महत्व
सखुआ के फूलों से सरहुल और बनस (मंडा पर्व) में पूजा अर्चना की जाती है. मार्च-अप्रैल से जुलाई माह तक ग्रामीण सखुआ के फूल और फल चुनकर बेचते हैं. व्यापारी सखुआ के फलों को खरीदकर छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश भेजकर मोटी रकम कमाते हैं. सखुआ के फूल मार्च-अप्रैल में और फल मई से जुलाई मध्य तक मिलते हैं. बड़कागांव का महादी जंगल, बुढ़वा महादेव, लौकुरा, बड़कागांव-हजारीबाग रोड, टंडवा रोड, उरीमारी रोड, जुगरा जंगल, गोंदलपुरा के जंगल इन दिनों गुलजार हैं. बाजार में सखुआ फल का मूल्य 15 रुपये प्रति किलो है. सखुआ के फल से डालडा और साबुन तो बनते ही हैं, इनका निर्यात तेल बनाने के लिए विदेशों में भी होता है. व्यापारी इन फलों को खरीदकर छत्तीसगढ़ के रायपुर तथा उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सॉल्वेंट प्लांट में भेजते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं. गांव के लोग जंगलों में मई से जुलाई माह तक पेड़ों से फल तोड़ते हैं, जिसके बाद फलों को आंगन, घर, छत, खलिहान और सड़कों पर सुखाया जाता है. सूखने के बाद फलों को आग में जलाया जाता है़ फिर फल के ऊपरी हिस्से के छिलकों को हटाकर इन्हें बाजार में बेचा जाता है. ग्रामीण इसे 15 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं.
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