गुमला. आदिवासी युवा नेता सह जिला खेल समन्वयक कृष्णा उरांव ने कहा है कि झारखंड अपनी समृद्ध परंपराओं व आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है. उन्हीं में से एक प्रमुख व लोकप्रिय पर्व करम है, जिसे यहां का हर समाज उत्साह व श्रद्धा से मनाता है. यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक एकता, भाई व बहन के प्रेम व प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि करम पर्व भाद्रपद माह की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन करम वृक्ष की डाल को लाकर गांव के बीच स्थापित किया जाता है. महिलाएं व युवतियां उपवास रख कर करम देवता की पूजा करती हैं और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. पूजा स्थल पर गीत नृत्य व ढोल मांदर की थाप वातावरण को जीवंत बना देता है. इस पर्व का सबसे विशेष संदेश प्रकृति से जुड़ाव है. करम वृक्ष की पूजा कर हम यह स्वीकार करते हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं. आज जब पर्यावरण असंतुलन व जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां सामने हैं, तब करम पर्व का यह संदेश और प्रासंगिक हो जाता है. करम भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को भी दर्शाता है. बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं और भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं. यह पर्व परिवार, समाज व संस्कृति तीनों को एक सूत्र में बांधता है. करमा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामूहिक उत्सव है. खेल, नृत्य, गीत व मेलों से यह पर्व हमारी पहचान व हमारी एकता को मजबूती देता है.
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