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गुमला में बदला गया है होली खेलने का तरीका, विलुप्त हो चली पुराने गीत और भजन बजने की परंपरा

श्रीबड़ा दुर्गा मंदिर गुमला के सचिव रमेश कुमार चीनी ने कहा है कि जरूर समय के साथ होली खेलने का तौर तरीका बदला है. लेकिन, गुमला में अभी भी होली पर्व में भाईचारगी देखी जाती है.

दुर्जय पासवान, गुमला:

बदलते समय के साथ गुमला में होली खेलने की परंपरा भी बदलते जा रही है. 30 साल पहले तक होली का जो उत्साह व उमंग होता था. वह अब सिमट गया है. पहले एक सप्ताह तक होली खेली जाती थी. परंतु, अब जिस दिन होली है. उसी दिन लोग रंग खेलते हैं. होली में पुराने गीत व भजन भी सुनायी नहीं देता है. प्रभात खबर के ब्यूरो दुर्जय पासवान ने गुमला के कुछ प्रबुद्ध लोगों से होली पर्व की पुरानी परंपराओं पर बात की.

गुमला में आज भी भाईचारगी कायम है : रमेश

श्रीबड़ा दुर्गा मंदिर गुमला के सचिव रमेश कुमार चीनी ने कहा है कि जरूर समय के साथ होली खेलने का तौर तरीका बदला है. लेकिन, गुमला में अभी भी होली पर्व में भाईचारगी देखी जाती है. हां, बदलाव में यह देखा जा सकता है कि 20 साल पहले लोग सामूहिक रूप से होली पर्व मनाते थे. परंतु, अब होली का पर्व सिमटता जा रहा है. अब सामूहिक रूप से होली पर्व मनाने की परंपरा विलुप्त हो रही है जो चिंता की बात है. होली ही एक ऐसा पर्व है. जिसे हमें मिलजुलकर मनाना चाहिए.

होली के गीत व भजन विलुप्त हो रहे : उपेंद्र

बुजुर्ग उपेंद्र प्रसाद साहू ने कहा कि आज से 30-35 साल पहले हर एक मुहल्ले में लोग सामूहिक रूप से होली पर्व की खुशियां मनाते थे. होली के गीत व भजन शाम ढलते ही मुहल्लों में सुनने को मिलता था. परंतु, समय के साथ अब यह विलुप्त होने लगा है. अब जिस दिन होली रहती है, उसी दिन लोग रंग खेलते नजर आते हैं. अब होली भी घंटे व दो घंटे तक ही खेला जाता है. जबकि, हमारे जमाने में होली की तैयारी सरस्वती पूजा के बाद से ही शुरू हो जाती थी. पर, अब होली का पर्व सिमटता जा रहा है.

आधुनिकता के चंगुल में फंस गयी है होली : राजेंद्र

बुजुर्ग राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि आज से 30 साल पहले होली मतलब सभी जाति, धर्म हर उम्र के लोगों का मिलना जुलना होता था. लेकिन, बदलते समय के साथ आधुनिकता के चंगुल में होली पर्व फंस गया है. इसलिए समय के साथ होली पर्व खेलने की परंपरा भी बदल गयी है. पहले होली एक सप्ताह तक खेली जाती थी. परंतु, अब जिस दिन होली है. उसी दिन लोग होली खेलने निकलते हैं. अबीर खेलने की परंपरा तो खत्म होती जा रही है.

होली की कई परंपरा विलुप्त हो रही है : बैरागी

वहीं नागपुरी कवि नारायण दास बैरागी का कहना है कि दक्षिणी छोटानागपुर के गुमला जिले में होली के पर्व पर अलग उत्साह व उमंग देखने को मिलता था. गाजा, बाजा, ताल, झाल के साथ लोग खूब नाचते गाते थे. पुराने कवि होली में एक से बढ़कर एक गीत गाते थे. परंतु, बदलते समय के साथ होली की कई परंपरा विलुप्त होने लगी है. जो चिंता की बात है. हालांकि कुछ कवि आज भी हैं, जो होली के गीतों को गाते हैं. परंतु, उन गीतों में अब पुराना राग व मनोरंजन नहीं है. इसपर समाज को चिंतन मनन करने की जरूरत है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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