प्रेमप्रकाश भगत, डुमरी
शुरुआत में देवी की फोटो की पूजा होती थी, लेकिन बंगाल से आये मूर्तिकार गणेश सूत्रधार ने प्रतिमा निर्माण शुरू किया और तभी से दुर्गा मंदिर परिसर में प्रतिमा पूजन की परंपरा चल पड़ी. उस समय बिजली या जनरेटर की सुविधा नहीं थी, पेट्रोमैक्स और लालटेन की रोशनी में पारंपरिक बाजा बजाकर पूजा होती थी. अष्टमी और नवमी को स्थानीय युवकों द्वारा रामायण और महाभारत पर आधारित नाटक-नृत्य प्रस्तुत किए जाते थे. 1980 से लाउडस्पीकर का प्रयोग शुरू हुआ.
विजयादशमी की रात पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासी समुदायों का भव्य मेला लगता था, जिसमें लोग पूरी रात नाचते-गाते थे. सुबह समिति की ओर से खोड़हा दलों को चूड़ा-गुड़ और नकद राशि दी जाती थी. वर्तमान में अध्यक्ष महेंद्र प्रसाद और सचिव विकास कुमार के नेतृत्व में पूजा की तैयारियाँ जोरों पर हैं. नवमी को बच्चों और स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. समिति ने आर्केस्ट्रा कार्यक्रम बंद कर दिया है ताकि उस धनराशि का उपयोग मंदिर के सौंदर्यीकरण में किया जा सके.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

