विशुनपुर के सखोपानी गांव की रहनेवाली है
झारखंड मूलत: आदिवासी बहुल राज्य है. नौकरी में आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्रावधान है. नौकरियां मिल भी रही हैं. जिन आदिवासियों की आबादी अच्छी-खासी है, उन्हें उनका हक मिल जा रहा है, लेकिन जिस आदिवासी समुदाय की आबादी कम है, उनकी आवाज पहुंच नहीं पाती. फिलहाल यहां भी वे सबसे पीछे है़ं इन्हीं आदिवासियों में एक वर्ग है, आदिम जनजाति का. इसी आदिम जनजाति की रक्षा के लिए सरकार अलग योजनाएं चलाती है, पैसा खर्च करती है. असुर इन्हीं आदिम जनजाति में आते हैं. बिल्कुल पिछड़े.
लेकिन इसी समुदाय से एक लड़की निकली है-सुनीता असुर. विशुनपुर की रहनेवाली है. आदिम जनजाति में बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई की़ लेकिन सुनीता असुर ने एमए (जीएलए कॉलेज) तक की पढ़ाई की़ इस उम्मीद के साथ कि उसे सरकारी नौकरी मिलेगी. एमए करने के बाद उसे नौकरी नहीं मिली. विवश होकर सुनीता असुर चंडीगढ़ चली गयी और अब वहां वह एक घर में नौकरानी का काम कर रही है, बरतन मांज रही है, झाड़ू-पोछा कर रही है. यह झारखंड का दुर्भाग्य है कि हम अपनी ही बेटियों को सम्मान नहीं दे पाये. प्रवीण मुंडा की रिपोर्ट
गुमला के विशुनपुर के सखोपानी गांव निवासी एमए पास सुनीता असुर चंडीगढ़ में नौकरानी का काम करती है़ आदिम जनजाति असुर समुदाय से काफी कम लोगों ने एमए तक की पढ़ाई की है, वह भी लड़की़ सुनीता असुर ने एमए तक की पढ़ाई की़ इसके बाद नौकरी के लिए काफी कोशिश भी की, पर उसे कहीं सफलता नहीं मिली़ बाद में वह चंडीगढ़ चल गयी़ अपने और परिवार के जीवकोपार्जन के लिए उसने वहां एक घर में नौकरानी का काम शुरू कर दिया़ एमए पास असुर समुदाय की यह युवती आज दूसरों के घरों में बरतन साफ कर रही है़ झाड़ृ-पोछा लगा रही है़ सुनीता पिछले दो माह से चंडीगढ़ में ही है़
बहन ने किया है बीए : संपर्क करने पर सुनीता असुर ने बताया : उसने 2009 में कार्तिक उरांव कॉलेज गुमला से बीए पास किया था़ इसके बाद मेदिनीगनर के जीएलए कॉलेज से इतिहास में एमए किया़ उसने बताया : पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने सरकारी नौकरी के लिए गुमला में ही कल्याण विभाग में आवेदन दिया. फिर रांची में प्रोजेक्ट भवन में संबंधित विभाग में जाकर अफसरों से मिली़ पर आज तक पता नहीं चला कि उसके दिये आवेदनों का क्या हुआ. काफी भटकने के बाद आखिर चंडीगढ़ में दाई का काम करने का प्रस्ताव मिला, तो हां कह दी.
आखिर कितना भटकती ? लोग (अफसर) तो ठीक से बात भी नहीं करते. सुनीता ने बताया : मेरी दीदी सुशीला असुर ने भी स्नातक की पढ़ाई की है. उसे भी नौकरी नहीं मिली. एक भाई बॉक्साइट माइंस में काम करता है. उसी की तनख्वाह पर घर का गुजारा चल रहा है. घर के लिए कुछ न कुछ करना था, इसलिए जो काम मिला वही कर रहे हैं.
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ : सुनीता के गांव की रहनेवाली उसी समुदाय की महिला सुषमा असुर बताती है : विशुनपुर क्षेत्र में चार आदिम जनजाति समुदाय असुर, बिरजिया, कोरवा व बिरहोर के कई लोगों ने मैट्रिक, स्नातक तक की पढ़ाई की, पर किसी को नौकरी नहीं मिली. हमलोगों ने 2008 में गुमला में 526 लोगों का आवेदन दिया था, पर आज तक हमलोगों को नौकरी नहीं मिली. हमलोगों के लिए सरकारी योजनाएं सिर्फ घोषणा ही है.
सीधी नियुक्ति का है प्रावधान
झारखंड में मैट्रिक पास आदिम जनजाति के लोगों को चतुर्थ वर्ग और स्नातक पास को तृतीय वर्ग में सीधी नियुक्ति की जानी है. जिला स्तर पर बने रोस्टर के मुताबिक ही इनकी नियुक्ति हाेनी है. 17 मई, 2006 को मधु कोड़ा की सरकार ने कैबिनेट में निर्णय लिया था कि स्नातक पास आदिम जनजाति के युवाओं-युवतियों की तृतीय वर्ग की सरकारी नौकरी में सीधी बहाली होगी. इसके बाद जब शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने भी यही घोषणा की. 31 अक्तूबर 2008 को कल्याण विभाग ने सीधी नियुक्ति के लिए आवेदन मांगा था, लेकिन इसमें शर्त जोड़ दी गयी थी. इसके बाद 8 नवंबर 2008 को शिबू सोरेन ने कहा था कि सिर्फ प्लस टू पास आदिम जनजाति के युवकों को भी सीधे बहाल किया जायेगा.