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खतरनाक हो गया है बिशुनपुर का लोंगा पुल, जान हथेली पर रखकर पार करते हैं लोग

बिशुनपुर से अमिताभ/उत्पल/बसंत की रिपोर्ट बिशुनपुर प्रखंड का लौंगा पुल जो मुख्‍यालय से 25 गांव को जोड़ती है. इस पुल से हजारों लोग आना-जाना करते हैं, लेकिन वे अपनी जान हथेली पर रखकर उसे पार करने के लिए मजबूर हैं. इस पुल को देखकर आपकी रूह कांप उठेगी. लोंगा पुल तीन जगहों से टूटी हुई […]

बिशुनपुर से अमिताभ/उत्पल/बसंत की रिपोर्ट

बिशुनपुर प्रखंड का लौंगा पुल जो मुख्‍यालय से 25 गांव को जोड़ती है. इस पुल से हजारों लोग आना-जाना करते हैं, लेकिन वे अपनी जान हथेली पर रखकर उसे पार करने के लिए मजबूर हैं. इस पुल को देखकर आपकी रूह कांप उठेगी. लोंगा पुल तीन जगहों से टूटी हुई है और पुल के तीनों स्लैब धसे हुए हैं.

25 गांव को मुख्यालय से जोड़ने वाला लोंगा कोयल नदी में बना पुलिया पिछले 10 सालों से क्षतिग्रस्त है. पच्चीस गांव के लगभग 22 हजार ग्रामीण जान जोखिम में डालकर उक्त पुलिया से गुजर रहे हैं. गांव के लोग बताते हैं कि इस पुल का निर्माण 2009 में हुआ था और 2010 में ही ये टूट गया.

2010 से पुल का पाया नदी में धंसता जा रहा है और अब स्थिति ये है कि पुल कभी भी पूरी तरह से गिर सकता है. संबंधित गांव के ग्रामीण कहते हैं कि बच्चे विद्यालय के लिए या घर के अन्य सदस्य प्रखंड मुख्यालय के लिए निकलते हैं तो सकुशल लौट आने का हम लोग इंतजार करते हैं.

लोंगा महुआ टोली गांव के पूर्व प्रमुख जयमंगल उरांव ने बताया कि लगभग 10 वर्ष पूर्व जब पुल निर्माण हुआ था तब हम लोगों में बहुत खुशी थी कि अब आसानी से हम लोग मुख्यालय पहुंच जाएंगे, क्योंकि पुल नहीं होने के कारण गांव से बिशुनपुर पहुंचने में दिक्कत होती थी. नदी में उतरकर हम अपने गंतव्य तक पहुंचते थे. नाराज शब्दों में उन्होंने कहा कि पुल निर्माण में संवेदक एवं उक्त योजना से जुड़े अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा हम वर्षों से उठा रहे हैं. बडे वाहन तो गांव बरसों से नहीं पहुंचे हैं.

चातम गांव निवासी बुजुर्ग झड़ी उरांव का कहना है कि अब मेरी उम्र हो चली है, लेकिन जब भी मैं उक्त पुल से पार करने की सोचता हूं तो मेरी जान निकल जाती है. हमारे छोटे-छोटे बच्चे विद्यालय जाने के लिए इसी पुल का उपयोग करते हैं, आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि उन बच्चों के साथ क्या होता होगा जब वे पुल पार करते होंगे.

पुल से गुजरते हुए हमारी मुलाकात एक स्कूल टीचर से हुई. जो रोज चातम गांव बच्चों को पढ़ाने जातीं हैं. उन्होंने बताया कि जब पुल नहीं था तो मैं नदी में उतरकर अपने गंतव्य तक पहुंचती थी. पुल का निर्माण होने से खुशी हुई, लेकिन अब आप स्थिति तो देख ही रहे हैं.

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