व्यापारी से महंगी कीमत पर खरीद रहे कोकून, मुनाफा और रोजगार दोनों पर असर
असम के कोकराझाड़, सिलीगुड़ी व भागलपुर के व्यवसायी यहां के बुनकरों को बेचते हैं कोकून-झारक्राफ्ट के चहेते लोगों तक पहुंचता है सब्सिडी वाले कम दाम के कोकून निरभ किशोर /पवन कुमार सिंह, गोड्डा
सिल्क विलेज के रूप में प्रसिद्ध गोड्डा का भगैया गांव आज आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. चमकदार रेशम के लिए मशहूर यह गांव अब उस रेशम की मूल कड़ी कोकून से वंचित है. यहां के करीब 500 पंजीकृत और लगभग 4500 अपंजीकृत बुनकर अब सरकारी दर पर कोकून न मिलने के कारण महंगे दामों पर बाहर से खरीदने को मजबूर हैं. स्थानीय बुनकरों का कहना है कि झारक्राफ्ट के कलस्टर सेंटर से मिलने वाला सब्सिडी वाला कोकून अब कुछ चहेते लोगों तक सीमित हो गया है. आम बुनकरों को बाजार से कोकून खरीदना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ रही है और मुनाफा घटता जा रहा है.व्यापारी से खरीदना पड़ रहा कोकून
बुनकरों को अब कोकून असम के कोकराझाड़, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी और बिहार के भागलपुर से आने वाले व्यापारियों से खरीदना पड़ रहा है. एक खारी (लगभग ढाई किलो धागा) की कीमत अब 7000 रुपये तक पहुंच गयी है, जबकि पहले यह 5000 रुपये में मिल जाती थी. एक खारी से करीब 25 मीटर कपड़ा तैयार होता है. लागत बढ़ने से तैयार रेशमी कपड़े की कीमत में प्रतिस्पर्धा कठिन हो गया है. बुनकरों के मुताबिक, व्यापारियों से कोकून खरीदने से जहां उनके रोजगार पर असर पड़ रहा है, वहीं परिवार के बीच आर्थिक संकट आ रहा है.झारक्राफ्ट से नहीं मिल रही सुविधा
भगैया कलस्टर से जुड़े बुनकरों का आरोप है कि झारक्राफ्ट के स्थानीय प्रबंधक और सेंटर कर्मियों की मिलीभगत से कोकून वितरण में अनियमितता है. उनके मुताबिक, सब्सिडी वाले कोकून की आपूर्ति चयनित लोगों तक सीमित है, जबकि अधिकांश बुनकर बाजार मूल्य पर कोकून खरीदने को मजबूर हैं. रतन राम, मिलन राम, ज्योति देवी, करुणा देवी, सीमा देवी और शुभम कुमार जैसे बुनकरों ने बताया कि सेंटर सिर्फ नाम का रह गया है. झारक्राफ्ट से मिलने वाली सुविधाएं अब हम तक नहीं पहुंचतीं. पूंजी की कमी और सामग्री के अभाव में कई बुनकर परिवार इस धंधे को छोड़ रहे हैं. यही वजह है कि सामान्य बुनकर बाजार से कोकून खरीदकर जब कपड़े तैयार करते हैं, तब उन्हें बेहतर मुनाफा नहीं हो पा रहा है.रोजगार और उत्पादन पर असर
पहले सरकादी देर पर कोकून मिलने से मुनाफा ज्यादा हो रहा था. अब व्यापारी से कोकून खरीदने की वजह से मुनाफे में कमी के साथ साथ उनके रोजगार पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा है. झारक्राफ्ट द्वारा कुछ चहेते ही विशेष लाभ पा रहे है. सेंटर में बिचौलिया हावी है. इस पर नजर रखने की जरूरत है.-मो गुलाम अंसारी, बुनकर देश ही नहीं, विदेशों में भगैया के रेशम कपड़े भेजे जा रहे थे. कपड़े का बेहतर बाजार हो गया था, मगर अब कमी आ रही है. कोकून की बढ़ती कीमत व समय पर कोकून नहीं मिलने से उत्पादन पर प्रभाव पड़ रहा है. व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जरूरत है.
-गौतम कुमार, बुनकर व कपड़ा का स्थानीय सप्लायरकोट
क्लस्टर की ओर केवल महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर काम कर रहे बुनकरों को ही कोकून दिया जाता है. यहां सभी कार्यों में पारदर्शिता है. गलत आरोप लगाया जा रहा है.-राजकुमार, क्लस्टर प्रबंधक, भगैया, ठाकुरगंगटी
तसवीर–25 में बुनकर धागा बनाते, 26 में मो गुलाम 27 गौतम कुमार 28 में महिला बुनकर अपनी समस्या बतातीB
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