अचार, निमकी, पापड़, लड्डू, केला चिप्स, महुआ अचार जैसे पारंपरिक व्यंजन अब ””””अबुआ स्वाद”””” के नाम से बाजार में बिक रहे हैं. यह पहल सरिता देवी, प्रियंका देवी, उषा देवी, सबिता देवी, रीना देवी और खुशबू देवी जैसी महिलाओं ने मिलकर शुरू की है. महज़ 6000 रुपये की पूंजी से शुरू हुआ यह काम आज ग्रामीण महिला स्वावलंबन की सशक्त गाथा बन गया है. खुशबू देवी, सरिता देवी और उषा देवी कहती हैं कि पहले कभी नहीं सोचा था कि अचार-पापड़ भी आमदनी का जरिया बन सकते हैं. अब हम न सिर्फ उत्पाद बनाते हैं, बल्कि उन्हें बेचने, प्रचार-प्रसार और पैसों के प्रबंधन का कार्य भी खुद करती है. प्रियंका देवी, रीना देवी और सबिता देवी कहती हैं कि स्किल अप के तहत हमें प्रशिक्षण मिला और बाजार से जुड़ने का मौका. अब हम खुद उत्पाद बनाते हैं. बेचते हैं और पैसों का प्रबंधन भी करते हैं. साथ ही कहा कि इसकी जानकारी हमें गांव की ममता देवी के द्वारा मिली. इनके नेतृत्व में हमलोगों ने इसकी ट्रेनिग ली. ममता देवी ने बताया कि उन्हें इस दिशा में काम करने की प्रेरणा अभिव्यक्ति फाउंडेशन की पहल स्किल अप परियोजना”””” से मिली. ममता देवी के नेतृत्व में 20 महिलाओं को देवीपुर देवघर में प्रशिक्षण दिलाया गया जहां उन्होंने सीखा कि कैसे घर में बनने वाले व्यंजन को व्यवसाय का रूप दिया जा सकता है. घर-घर जाकर महिलाओं को प्रक्षिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया तथा इसके लाभ को बताया. साथ ही कहा कि मार्केटिंग मैनेजर नीरज सिन्हा भी अबुआ स्वाद के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.
क्या-क्या बनाती हैं ये महिलाएं
इन महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पादों में शामिल है चना पापड़ी, मडुवा, निमकी, बंगला निमकी, केला, चिप्स, जीरा पाचन, मडुवा, लड्डू, पापड़, टमाटर सॉस, महुआ का अचार, आम व नींबू का अचार आदि है.आत्मनिर्भरता की ओर एक मजबूत कदम
मात्र एक माह के प्रशिक्षण और छह महिलाओं के समर्पण से शुरू हुई यह पहल आज गांव की बाकी महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई है. आने वाले समय में इस कार्य को और विस्तार देने की योजना बनाई जा रही है. कुम्हारलालो की महिलाएं आज यह साबित कर रही है कि अगर अवसर मिले और सही मार्गदर्शन हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

