जानकारी के अनुसार पहले यह खेल सीमित स्तर पर था और कुछ सहिया ही इसमें संलिप्त थीं. लेकिन, समय के साथ यह नेटवर्क काफी मजबूत हो गया है. आज स्थिति यह है कि सदर अस्पताल परिसर और आसपास की गलियों में हर समय कुछ ऐसे लोग मौजूद रहते हैं, जिनका काम मरीज और उनके परिजनों से संपर्क करना. इन्हें पहले अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी का डर दिखाया जाता है, फिर निजी नर्सिंग होम में बेहतर इलाज स्पेशल केयर और रिस्पॉन्सिबल डॉक्टर का विश्वास दिलाया जाता है. अस्पताल में प्रसव संबंधित सभी सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. जांच, दवाइयां से लेकर प्रसव तक लगभग मुफ्त. चौंकाने वाली बात यह है कि कई निजी अस्पतालों के कर्मचारी सदर अस्पताल में दिनभर आते-जाते रहते हैं. यह लोग प्रतीक्षारत परिजनों से बातचीत कर उनकी स्थिति और आर्थिक हालत समझकर सुविधा के नाम पर नर्सिंग होम भेजने की कोशिश करते हैं.
कार्रवाई के कुछ दिनों बाद फिर शुरू हो जाता है खेल
अस्पताल प्रशासन समय-समय पर कार्रवाई करता है, लेकिन यह सिर्फ औपचारिकता साबित होता है. कुछ दिनों तक परिसर से सहिया वेशधारी महिलाएं व बिचौलियों की सक्रियता कम हो जाती है. कुछ समय बाद पुन: धंधा शुरू हो जाता है. लोगों के अनुसार बिचौलियों कोई भय नहीं होता है. सुबह से लेकर देर शाम तक ये लोग वार्ड, ओपीडी और रजिस्ट्रेशन काउंटर के आसपास घूमते रहते हैं. कई बार तो यह लोग परिजनों को अस्पताल के अंदर से परिजन को निकाल कर बातचीत भी करते हैं. एक अस्पताल कर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस पूरे रैकेट में कमीशन की राशि लगभग आठ हजार रुपये तक होती है. उसने कहा कि इनका काम बस इतना है कि गर्भवती महिला और उसके परिवार को किसी तरह नर्सिंग होम पहुंचा दे. इसके बाद नर्सिंग होम वाले ही आगे का सब कर लेते हैं. मरीज भर्ती हो गयी, तो समझिये कमीशन तय है.महिलाओं का मजबूत नेटवर्क सक्रिय, सहिया का ड्रेस पहनकर केंद्र में घूमतीं हैं
चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे खेल में केवल अधिकृत सहियाएं ही शामिल नहीं हैं, बल्कि कई ऐसी महिलाएं भी अस्पताल परिसर में सक्रिय रहती हैं, जिनकी सरकारी स्तर पर कोई पहचान नहीं होती है. ये महिलाएं सहिया की ही तरह हरे और सादे रंग की साड़ी या यूनिफॉर्म पहनकर पूरे परिसर में घूमती रहती हैं. प्रसव कराने आयी महिलाओं के परिजनों से बातचीत कर वे खुद को सरकारी सहिया बतातीं हैं. उनका मुख्य उद्देश्य मरीज के परिजन में डर और भ्रम पैदा करना. वे परिजनों से कहती हैं कि यह सरकारी अस्पताल है, यहां ना तो डॉक्टर समय पर मिलते हैं और ना ही सुविधा मिलती है. सुरक्षित प्रसव के लिए अच्छे नर्सिंग होम जाने की सलाह देतीं हैं. ऐसी बातें सुनकर ग्रामीण इलाकों से आयी महिलाओं और उनके परिजन डर जाते हैं और तथाकथित सहिया की चक्कर में फंस जाते हैं. कई बार तो अस्पताल में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद भी ये महिलाएं परिजनों को अलग ले जाकर गुप्त रूप से मदद का प्रस्ताव देती हैं. इन महिलाओं को प्रति मरीज निर्धारित कमीशन मिलता है. यह कमीशन सीधे निजी नर्सिंग होम संचालकों या दलालों की चेन तक जुड़ा होता है. ये महिलाएं हर मरीज के परिवार की आर्थिक स्थिति देखकर उनके लिए नर्सिंग होम का पैकेज सुझाती हैं. जितना अधिक भुगतान करने वाला परिवार मिलेगा, उतनी ही अधिक कमीशन उन्हें मिलती है. यह पूरा नेटवर्क इतना व्यवस्थित हो गया है कि अब असली सहियाओं की पहचान में मुश्किल हो जाती है.क्या कहते हैं केंद्र के उपाधीक्षक
केंद्र के उपाधीक्षक (डीएस) डॉ प्रदीप बैठा ने बताया कि पहले भी कई बार की शिकायत मिली है. इसको गंभीरता से लेते हुए थाने में भी शिकायत दर्ज करायी गयी थी. इसके साथ ही अस्पताल परिसर में सहिया पहचान डेस्क भी बनाया गया है, ताकि केवल असली सहियाओं को ही अस्पताल में प्रवेश की अनुमति दी जा सके. कहा कि अस्पताल प्रशासन इस धंधा पर रोक लगाने के लिए गंभीर है. यदि कोई फर्जी सहिया या बाहरी व्यक्ति मरीजों को बहला-फुसलाकर निजी नर्सिंग होम भेजने में शामिल पाये गये, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी. उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पताल में सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं और प्रशासन यह सुनिश्चित करने की दिशा में लगातार प्रयासरत है कि मरीजों को किसी भी प्रकार से गुमराह ना किया जाये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

