गीतों और ढोलक-मजीरा की जगह डीजे, हुड़दंग और नशाखोरी ने ले ली है
पारस्परिक मेल-मिलाप, उमंग और सांस्कृतिक परंपराओं से परिपूर्ण होली आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है. समय के साथ पर्व में काफी विकृति आ रही है. गांव की चौपालों में गूंजनेवाली होली के गीतों और ढोलक-झांझ की जगह डीजे, हुड़दंग और नशाखोरी ने ले ली है. फागुन शुरू होते ही गांव की चौपालों में होली खेले रघुबीरा अवध में…, काहे की बनी पिचकारी, काहे का गुलाल…, मुना तट पर श्याम खेले होली…, आज बिरज में होली है ये रसिया…, आदि गीत सुनायी पड़ने लगते थे. अब यह प्रथा विलुप्त होती जा रही है. फगुआरों का अता पता नहीं है. केवल मोबाइल पर ही बधाई का आदान-प्रदान होता है.कम हो रही होलिका दहन की होड़
गांवों और शहरों में पहले होलिका दहन की तैयारी एक पखवाड़े पूर्व से ही शुरू हो जाती थी. फागुन शुरू होते ही चौपालों में शाम से ढोल-तबले के बीच होली के मनभावन गीत गूंजने लगते थे. होलिका दहन को लेकर बच्चे उपले इकट्ठा करते थे, लेकिन बदलती जीवनशैली के कारण होलिका दहन में पहले जैसी होड़ नहीं रही है.
नदारद है होलियारों की टोली
होली पर मोहल्लों में होलियारों की टोलियां निकलती थीं. एक-दूसरे के घर जाकर रंग लगाते, गले मिलते और ठिठोली करते हुए होलियारों में उत्साह और उमंग का प्रवाह होता था. होली पर ठंडई के आनंद का स्वरूप बदल गया है. शराब और गांजा जैसी नशाखोरी का प्रचलन बढ़ने से त्योहार के माहौल में उन्माद और अशोभनीय घटनाएं बढ़ गयी हैं. रंग की बाल्टी की जगह अब शराब की बोतलों ने ले लिया है.
कम हो रही त्योहार की मिठास
पहले होली के कई दिन पहले से गुझिया, मालपुआ, दही-बड़े, ठंडाई, पापड़, चिप्स जैसी चीजें घरों में बनाई जाती थीं. गांवों में चूल्हे पर देसी घी में तली गई मिठाइयों की महक पूरे मोहल्ले में फैल जाती थी, जिससे त्योहारों की पारंपरिक मिठास धीरे-धीरे कम हो रही है.
होली के बदलते स्वरूप को लेकर लोग बोले
होली का त्योहार भक्त प्रह्लाद व हिरण्यकशिपु की बहन होलिका से जुड़ा हुआ है. यह त्योहार आपसी भाईचारे व पौराणिकता का प्रतीक है. आधुनिकता की दौड़ में यह अपना पौराणिक महत्व खोता जा रहा है. यह भविष्य के लिए ठीक नहीं है. इस दिशा में समाज के प्रबुद्ध लोगों को विचार करने की आवश्यकता है. -अनिल कुमार दुबे, व्यवसाई, गावां
होली का त्योहार अत्यंत विकृत होता जा रहा है. वर्तमान में युवा पीढी नशे की गिरफ्त में आ रही है. इस कारण त्योहार में हुड़दंग मचानेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है. वर्तमान में त्योहार की पौराणिकता को बरकरार रखना एक चुनौती हो गयी है. इस पर एक एक प्रबुद्ध लोगों को विचार करने की आवश्यकता है-प्रमोद कुमार, ग्रामीण, माल्डाहोली के अवसर पर कर्णप्रिय आवाज में बजनेवाले ढोलक, झांझ, मंजिरा आदि की धुन गायब होती जा रही है. हर जगह कर्कश आवाज में डीजे पर अश्लील गीतों की आवाज सुनाई पड़ती है जो माहौल को विषाक्त कर रहे हैं. समाज के लोगों को इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता है. ताकि पर्व की पवित्रता बनी रहे-नवीन प्रसाद यादव, ग्रामीण, गावां
होली का त्योहार पौराणिक महत्व व भाईचारे का प्रतीक है. वर्तमान में यह अपनी पौराणिकता खोता जा रहा है. इस दिशा में सभी गांव में प्रबुद्ध लोगों को होली के पूर्व विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर होली के महत्व पर विशेष चर्चा कर पौराणिक स्वरूप में होली का आयोजन करवाना चाहिए. नशाखोरी पर लगाम लगे-नंदलाल प्रसाद, ग्रामीण, हरिहरपुरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

