समिति ने अपनी मांग महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक पत्र के माध्यम से भेजी है. समिति के राष्ट्रीय सह संयोजक अशोक कुमार सिंह नयन द्वारा लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि 2 अक्टूबर 1975 को शुरू हुई आईसीडीएस योजना ने 2 अक्टूबर 2025 को अपने 50 साल पूरे कर लिए हैं. इन 50 वर्षों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने जमीनी स्तर पर महिला एवं बाल विकास के लिए सरकार की नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया है. हालांकि इतने वर्षों तक निस्वार्थ सेवा देने के बावजूद इनमें से कई कार्यकर्ता बिना किसी पेंशन या ग्रेच्युटी के ही सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि 2018 के बाद से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में केंद्र सरकार की ओर से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है जिससे वे आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रही है. यह भी बताया गया है कि ये कार्यकर्ता समाज के सबसे निचले स्तर के बच्चों और महिलाओं की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. वे पूर्व-विद्यालयी शिक्षा, टीकाकरण, पूरक पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा जैसे कार्यों के साथ-साथ पोषण ट्रैकर और चुनाव संबंधी कार्यों का भी निष्पादन करती है.
पूर्ण सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग पत्र में शामिल
पत्र में कोविड-19 महामारी के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के योगदान की भी सराहना की गई, जब उन्होंने फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में अपनी सेवाएं दी. पत्र में न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कई मांगें रखी गई जिसमें आंगनवाड़ी सेविका और सहायिका को ग्रेच्युटी का भुगतान करने, मानदेय के केंद्रीय हिस्से में बढ़ोतरी करने, सेवानिवृत्ति के बाद पूर्ण पेंशन प्रदान करने, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पूर्ण सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग शामिल है. समिति का मानना है कि आईसीडीएस के 50वें वर्ष के उपलक्ष्य में सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों के लिए सम्मान और राहत प्रदान करेगा.
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