सनातन हिंदू परंपरा में भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का बहुत ज्यादा महत्व है. इसे हरितालिका तीज के नाम से जाना जाता है. यह व्रत सोमवार को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ. व्रती महिलाएं इसका समापन बुधवार की सुबह करेंगी. मान्यताओं के अनुसार सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को अपने पति की दीर्घायु की कामना को लेकर जबकि कुंवारी लड़कियां भगवान शिव की तरह योग्य जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती हैं. भगवान शिव तथा पार्वती के लिए हरितालिका तीज का यह व्रत समर्पित है. व्रत को लेकर शहर से लेकर गांव तक सर्वत्र चहल पहल है. व्रती महिलाओं ने सोमवार को नहाय खाय के साथ व्रत की शुरुआत की. जबकि मंगलवार को दिनभर निराहार रहकर सामूहिक रूप से पूजन करेंगी. वहीं रात भर भक्ति जागरण के पश्चात बुधवार की सुबह पारण किया जायेगा. इस व्रत को लेकर सरिया बाजार के विभिन्न पूजा तथा फलों की दुकानों में जमकर खरीदारी हुई. बताया जाता है कि पूजा के दिन स्त्रियां नदी किनारे पहुंचकर मिट्टी की प्रतिमा बनाती हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार के घास-फूस से सजाया जाता है. पूजा स्थल में सामूहिक रूप से उनकी पूजा की जाती है. ब्राह्मणों द्वारा हरितालिका तीज की कथा सुनायी जाती है. स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु संतान के सुख सौभाग्य की कामना करती हैं. पारण के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, वस्त्र, शृंगार सामग्री व धन आदि दान कर पारण करती हैं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

