खनन स्थल तक जाने के लिए जेसीबी की मदद से पहाड़ों को काटकर रास्ता भी बना दिया गया है. उक्त रास्ते से उत्खनन किये गये सफेद पत्थरों को जंगल से निकालकर एक स्थान पर डंप किया जाता है जहां से उसे बाहर भेजा जाता है. पिछले लगभग दो तीन वर्षों से यह कार्य बेरोकटोक चल रहा है. कभी कभी विभाग द्वारा अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती है, लेकिन पुनः यह कार्य बेरोकटोक प्रारंभ हो जाता है. बरसात के खत्म होते ही यह कार्य युद्ध स्तर पर प्रारंभ हो जाता है.
पत्थरों को भेजा जाता है बाहर
खदानों से निकाले गये पत्थर को बल्हरा के रास्ते गिरिडीह, कोडरमा आदि के फैक्ट्रियों में भेजा जाता है. बताया जाता है कि वहां से इसकी पिसाई कर उसे राजस्थान आदि स्थानों में भेजा जाता है. फैक्ट्री तक ले जाते समय माफियाओं द्वारा सुरक्षित परिवहन के लिए रास्ते में रैकी की जाती है. रास्ते में पुलिस वाहन आदि को देखते ही वे पत्थर ले जा रहे ड्राइवर को फोन पर सूचित कर देते हैं और पत्थर लोड वाहन को सड़क से किनारे ले जाकर छिपा दिया जाता है.
पहाड़ों के अस्तित्व पर पड़ रहा है प्रतिकूल प्रभाव
लगातार पत्थर व माइका के उत्खनन से पहाड़ों के अस्तित्व पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है. इस कार्य में काफी संख्या में हरे भरे पेड़ पौधों को काटकर हटा दिया जाता है. कई पहाड़ तो विलुप्त होते जा रहे हैं. इन क्षेत्रों में दूर से ही पहाड़ों पर खुदायी के दौरान किये गये गड्ढे व सुरंगों को देखा जा सकता है. ये सभी क्षेत्र चुंकि सुदूर जंगलों में स्थित है जहां लगातार पैट्रोलिंग नहीं के बराबर हो पाता है जिससे माफियाओं के हौसले काफी बढे़ हुए हैं. यदि समय रहते इन अवैध धंधे पर लगाम नहीं लगाया गया तो वन संपदा व पर्वतों को व्यापक नुकसान पहुंच सकता है.
की जायेगी छापेमारी : रेंजर
मामले में रेंजर अनिल कुमार ने कहा कि समय समय पर संबंधित क्षेत्रों में अभियान चलाया जाता है. पिछले सप्ताह भी छापामारी कर दो लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी है. क्षेत्र में लगातार छापेमारी की जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

