विजय सिंह, भवनाथपुर गढ़वा जिले का भवनाथपुर प्रखंड तसर रेशम कीट पालन के लिए तेजी से एक उभरता केंद्र बन रहा है. यहां सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों की आय में वृद्धि हो सके. प्रखंड की कैलान पंचायत के कोणमंडरा, कैलान गांव और अमवाडिह टोला में किसानों के समूह बनाकर रेशम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. हालांकि इस वर्ष हुई अतिवृष्टि ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है. तसर कीट पालन के लिए भवनाथपुर के जंगलों में पाये जाने वाले कहुआ, करासन और सिधा प्रजाति के पेड़ सबसे अधिक उपयोगी हैं. किसानों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण श्री वंशीधर नगर स्थित अग्र परियोजना कार्यालय द्वारा दिया जा रहा है.
कैलान पंचायत के कोणमंडरा के खोह टोला और अधेलिया टोला में पिछले 30 वर्षों से करीब 50 एकड़ वन भूमि पर तसर कीट पालन हो रहा है. तीन साल पहले यह खेती अमवाडिह टोला में भी शुरू की गयी. खोह टोला के सलइयादामर जंगल और अधेलिया के गोरेयाखाला जंगल में दो समूहों के माध्यम से खेती चलायी जा रही है. प्रत्येक समूह में 25 किसान शामिल हैं और हर समूह के लिए एक-एक रेशम दूत नियुक्त हैं. खोह टोला के लिए रामदास उरांव और अधेलिया टोला के लिए नीलम देवी. ये दूत समय-समय पर किसानों को रख-रखाव और बेहतर उत्पादन संबंधी मार्गदर्शन देते हैं.
अतिवृष्टि से इस वर्ष भारी नुकसानरेशम दूत रामदास उरांव बताते हैं कि जुलाई 2025 में प्रत्येक किसान को 20–20 हजार कीट दिये गये थे, लेकिन इस वर्ष तेज हवा और लगातार बारिश के कारण अधिकांश कीट नष्ट हो गये. सामान्य स्थिति में एक पैकेट में 20 हजार कीट होते हैं, जो 45–60 दिनों में तैयार हो जाते हैं. तैयार होने पर कम से कम 10 हजार कीट श्री वंशीधर नगर कार्यालय में जमा किए जाते हैं, जहां प्रति कीट 5.75 रुपए की दर से भुगतान किया जाता है. अच्छे उत्पादन की स्थिति में किसानों को प्रति सीजन 20–25 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है.
किसानों रामदास उरांव, नीलम देवी, सोमारू राम, नितेश प्रजापति, प्रसेन प्रजापति, सोहन उरांव, तेतरी देवी, गणेश उरांव और मुनि उरांव का कहना है कि पिछले पांच साल से जंगलों में कहुआ, करासन और सिधा के पौधों की लगातार कटाई हो रही है. इससे तसर पालन के लिए जरूरी भोजन और पर्यावरण दोनों प्रभावित हो रहे हैं. इसके चलते उत्पादन निरंतर घट रहा है. किसानों ने यह भी बताया कि जुलाई–अगस्त में हुए नुकसान के बावजूद विभाग द्वारा फसल बीमा नहीं किया गया. पूर्व में उन्हें मेडिकल सुविधा और फसल बीमा का लाभ मिलता था, लेकिन अब यह सुविधा बंद हो चुकी है. इससे किसान अगला कदम उठाने को लेकर संशय में हैं.
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