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स्थापना के 35 वर्ष बाद भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से वंचित है गढ़वा

तीन राज्यों की सीमा से जुड़ा महत्वपूर्ण जिला आकांक्षी सूची में शामिल, फिर भी उपेक्षित

तीन राज्यों की सीमा से जुड़ा महत्वपूर्ण जिला आकांक्षी सूची में शामिल, फिर भी उपेक्षित अविनाश, गढ़वा झारखंड के गढ़वा जिले में सरकारी मेडिकल कॉलेज की स्थापना का सपना एक बार फिर अधूरा रह गया है. केंद्र सरकार ने हाल ही में राज्य के खूंटी, जामताड़ा, धनबाद और गिरिडीह में नये मेडिकल कॉलेजों की मंजूरी दी है, लेकिन इस सूची में गढ़वा का नाम एक बार फिर शामिल नहीं किया गया. गढ़वा जिला तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार की सीमाओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण जिला है. यह देश के 112 आकांक्षी जिलों में भी शामिल है. बावजूद इसके, गढ़वा लगातार शासन की प्राथमिकता सूची से दूर होता जा रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि आकांक्षी जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना होती, तो यहां के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूती मिलती, लेकिन इस बार भी यह मौका गढ़वा के हाथ से निकल गया. दूसरे चरण की सूची में भी नहीं है गढ़वा प्रथम चरण में जिन चार जिलों को मंजूरी मिली, उनमें गढ़वा शामिल नहीं है. इससे भी निराशाजनक बात यह है कि राज्य सरकार द्वारा तैयार किये गये दूसरे चरण के प्रस्तावित जिलों गोड्डा, साहेबगंज, सरायकेला और पाकुड़ को शामिल किया. इसमें में भी गढ़वा का नाम नहीं है. मेडिकल कॉलेज की मांग 35 साल पुरानी गढ़वा में सरकारी मेडिकल कॉलेज की स्थापना का मुद्दा लगभग 35 वर्ष पुराना है. 1 अप्रैल 1991 को अविभाजित बिहार के जमाने में पलामू से अलग होकर गढ़वा जिला बना था. अलग राज्य बनने के बाद इस क्षेत्र का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा, जनप्रतिनिधियों का कद भी बढ़ा, लेकिन मेडिकल कॉलेज का सपना अब तक अधूरा है. 2020 में भी हुआ था प्रयास साल 2020 में तत्कालीन मंत्री और गढ़वा विधायक मिथिलेश कुमार ठाकुर ने जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए भूमि चयन के लिए निरीक्षण किया था. इस दौरान ढोटी, नावाडीह और फरठिया जैसे स्थलों का सर्वेक्षण किया गया था. बताया गया कि स्थल चयन की प्रक्रिया लगभग पूरी भी हो चुकी थी, लेकिन मामला सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकल सका. जिले के लोगों की रांची और वाराणसी पर निर्भरता गढ़वा झारखंड का एक महत्वपूर्ण जिला है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है. भौगोलिक कठिनाइयों और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण जिले के हजारों लोग आज भी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए रांची या वाराणसी जैसे दूरस्थ शहरों पर निर्भर हैं. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी है. यदि मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो जाये, तो यह न केवल स्थानीय लोगों को राहत देगा बल्कि पूरे दक्षिण-पश्चिम झारखंड के स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त करेगा. ……………….. क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि मैंने बढ़ाया था काम, वर्तमान विधायक ने नहीं की : मिथिलेश ठाकुर (फोटो) पूर्व मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा कि उन्होंने गढ़वा में मेडिकल कॉलेज की स्थापना को लेकर सक्रियता से काम किया था और प्रक्रिया आगे भी बढ़ी थी. लेकिन वर्तमान विधायक ने इस मामले में रुचि नहीं दिखायी और फॉलोअप नहीं किया. उन्होंने कहा कि यदि 2024 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक परिस्थिति अलग होती, तो आज गढ़वा का नाम मेडिकल कॉलेज की सूची में होता. उन्होंने यह भी कहा कि अब वह फिर से इस दिशा में प्रयास तेज करेंगे, क्योंकि गढ़वा का सर्वांगीण विकास उनका राजनीतिक लक्ष्य है. राज्य सरकार ने की गढ़वा की उपेक्षा : भानु प्रताप शाही (फोटो) पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही ने कहा कि राज्य सरकार के स्तर से गढ़वा की उपेक्षा की गयी है. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार से राज्य द्वारा भेजी गयी सूची के आधार पर मंजूरी मिलती है. गढ़वा जैसे महत्वपूर्ण जिले की अनदेखी कर जामताड़ा को प्राथमिकता देना बताता है कि सरकार की मंशा क्या है. उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर ज्ञापन सौंपा था और भवनाथपुर के झगराखाड़ में उपलब्ध जमीन का प्रस्ताव भी दिया था. लोगों की प्रतिक्रिया सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाये : डॉ पतंजलि केसरी डॉ पतंजलि कुमार केसरी ने कहा कि जब प्रथम और द्वितीय दोनों चरणों की सूची में गढ़वा का नाम नहीं है, तो आखिर गढ़वा वासियों को कब न्याय मिलेगा? राज्य सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. दूसरे चरण के प्रस्तावित जिलों में शामिल हो गढ़वा : बबलू पटवा गढ़वा चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष बबलू पटवा ने कहा कि आकांक्षी जिला होने के बावजूद गढ़वा की लगातार अनदेखी अन्यायपूर्ण है. उन्होंने कहा कि सरकार को तत्काल हस्तक्षेप कर, दूसरे चरण की सूची में गढ़वा को प्राथमिकता के आधार पर शामिल करना चाहिए.

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